पूरी दुनिया को खगोल विज्ञान और गणित के सिद्धांत बताने वाले आर्यभट्ट के बिहार में नई पीढ़ी भाषा, गणित और पर्यावरण के ज्ञान में पिछड़ रही है। यह अफसोसजनक स्थिति सूबे में सरकारी शिक्षा व्यवस्था में और सुधार की मांग करती है। शिक्षा विभाग ने इसे जिस तरह चुनौती के रूप में लिया है, उससे भविष्य में सुधार की गुंजाइश दिखाई दे रही है। राज्य में प्राथमिक स्तर की शिक्षा व्यवस्था की हालत किसी से छिपी नहीं है। हर चार-छह महीने में मीडिया में बिहार के प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई की दुर्गति के किस्से सुर्खियों में रहते हैं। खासकर अंग्रेजी की पढ़ाई को लेकर प्राथमिक शिक्षक ज्यादा उपहास का पात्र बनते हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया का कैमरा घूमता और शिक्षकों से अंग्रेजी के मामूली शब्द पूछे जाते हैं तो वे न तो सही से स्पेलिंग बता पाते हैं और न उसका सही अर्थ। सामान्य ज्ञान में तो ये मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष को मुख्यमंत्री बता देते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये बच्चों को क्या पढ़ाते होंगे? लेकिन, गणित ज्ञान में उनका कमजोर होना खटकता है, क्योंकि बिहार में तथागत तुलसी जैसी मेधा ने किशोरावस्था में आइआइटी के प्रोफेसर बनने का गौरव प्राप्त किया है। पर्यावरण और खगोल की दुनिया को समझने के लिए आर्यभट्ट की प्रयोगशाला तारेगना का भ्रमण करने हर दिन देश-दुनिया से लोग पटना पहुंचते हैं। भौतिकी और गणित की नई थ्योरी का सूत्रपात करते हुए राज्य के कई शिक्षकों ने ऐसी किताबें लिखी हैं जो हाईस्कूल, इंटर के पाठ्यक्रमों के अलावा आइआइटी, मेडिकल के छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध हो चुकी हैं। वैसे सरकारी शिक्षा में निरंतर गुणवत्ता के अभाव का बड़ा कारण लंबे समय तक शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार का रहना और माफिया का बोलबाला होना है। नकल-धकल कर फस्र्ट क्लास का सर्टिफिकेट हासिल करने वालों की भी भरमार है, शिक्षक बनने के लिए इन्हें कोई विधिवत प्रशिक्षण की प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता।
नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) द्वारा नेशनल अचीवमेंट सर्वे (नास) की रिपोर्ट में यह साफ हुआ है कि राज्य के प्रारंभिक विद्यालयों में पांचवीं क्लास के बच्चे भाषा, गणित और पर्यावरण जैसे विषयों में राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे हैं। दरअसल एनसीईआरटी बच्चों की बौद्धिक क्षमता का पता करने को हर साल सितंबर में राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल अचीवमेंट सर्वे कराती है। सर्वे प्रत्येक जिले के बीस-बीस स्कूलों में कराया जाता है। पांचवीं तक के छात्र-छात्राओं को इसमें शामिल किया जाता है। 2015 में हुए सर्वे में भाषा, गणित तथा पर्यावरण अध्ययन को शामिल किया गया था। अच्छा यह है कि रिपोर्ट मिलने के बाद शिक्षा परियोजना परिषद ने तुरंत ध्यान देते हुए सभी जिलों के शिक्षा आधिकारियों को हिदायत दे डाली है। अफसरों से कहा गया है कि सूबे में एक से लेकर आठवीं तक के छात्रों की ग्रेडिंग की जा चुकी है। जिन बच्चों को 'ए तथा बीÓ ग्रेड मिला है उन्हें छोड़ शेष बच्चों के लिए लंच के बाद कम से कम दो पीरियड विशेष पढ़ाई की व्यवस्था की जाए। अफसरों को अभिभावकों के साथ इसी महीने बैठक करने का निर्देश भी दिया गया है। हालांकि इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि परियोजना परिषद शिक्षकों के विषय ज्ञान का भी सर्वे कराती ताकि यह तो पता चलता कि शिक्षक इन विषयों को पढ़ाने लायक हैं भी या नहीं।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]