भारत के खिलाफ मोर्चा खोले अमेरिकी राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार पीटर नवारो ने जिस तरह यह बेतुका आरोप उछाला कि यूक्रेन संघर्ष मोदी का युद्ध है, उससे भारतीय प्रधानमंत्री की वह आशंका ही रेखांकित होती है, जिसमें उन्होंने किसानों, मछुआरों आदि के हितों की रक्षा के लिए अडिग रहने की बात कहते हुए कहा था कि इनके हित के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से कीमत चुकानी पड़ेगी और वे इसके लिए तैयार हैं। क्या उनका आशय राजनीतिक नुकसान से था?

क्या इसका अंदेशा है कि ट्रंप प्रशासन मोदी को राजनीतिक रूप से कमजोर करने की कोशिश कर सकता है? पता नहीं ट्रंप के मन में क्या है, पर यह किसी से छिपा नहीं कि अमेरिका किस तरह दूसरे देशों में राजनीतिक हस्तक्षेप करता रहा है।

ट्रंप इस कारण भारत से चिढ़ गए लगते हैं कि आपरेशन सिंदूर पर भारतीय प्रधानमंत्री ने उनके अहं को तुष्ट नहीं किया। यह भी हो सकता है कि आपरेशन सिंदूर के बाद उनके भारत विरोधी तेवरों से मोदी ने भी उनसे दूरी बनाना उचित समझा हो। जो भी हो, पीटर नवारो वही हैं, जिन्हें ट्रंप की टैरिफ नीति का जनक माना जाता है।

पीटर नवारो भारत के खिलाफ पहले भी बेजा बयान दे चुके हैं। उनका यह कथन उनकी भारत विरोधी मानसिकता का ही परिचायक है कि भारत के उच्च टैरिफ के कारण हमारी नौकरियां, कारखाने, आय और उच्च वेतन खत्म हो रहे हैं। उनका यह कहना तो नितांत हास्यास्पद है कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध के लिए भारत जिम्मेदार है। वास्तव में इसके लिए यूरोप और खुद अमेरिका जिम्मेदार है।

इन देशों ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ खड़ा करने की हरसंभव कोशिश के तहत जब उसे नाटो का सदस्य बनाने की कोशिश की, तब रूस ने आक्रामक रवैया अपनाया और अंततः उस पर हमला कर दिया। तथ्य यह भी है कि यूक्रेन को रूस से लड़ते रहने के लिए हथियार और आर्थिक सहायता यूरोप एवं अमेरिका ही उपलब्ध करा रहे हैं। इन स्थितियों में मोदी सरकार को ट्रंप प्रशासन से और सतर्क रहना होगा।

इस सतर्कता के साथ ही उसे ट्रंप टैरिफ की चुनौती का सामना करने के लिए युद्धस्तर पर प्रयत्न करने होंगे। इसलिए करने होंगे, क्योंकि कई क्षेत्रों के निर्यातकों को नुकसान होने और कुछ नौकरियां जाने की आशंका निराधार नहीं। निर्यातकों और कामगारों को राहत देने के लिए सरकार को ठोस उपाय करने होंगे।

यह उचित ही है कि सरकार ने 50 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ लागू हो जाने के बाद भारतीय वस्त्रों के लिए अनेक ऐसे देशों की पहचान की है, जिन्हें निर्यात बढ़ाया जा सकता है। यह भी समय की मांग है कि भारत अमेरिका के खिलाफ चीन से रिश्ते सामान्य करने के साथ ब्रिक्स का इस्तेमाल करे। ऐसा करते हुए भारत को चीन से सावधान भी रहना होगा।