जागरण संपादकीय: संसदीय प्रक्रिया से पलायन, राजनीतिक एवं चुनावी सुधारों पर असमंजस में विपक्षी दल
समझना कठिन है कि विपक्षी दल उक्त विधेयक पर अपनी आपत्ति दर्ज कराने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? कोई भी समझ सकता है कि उक्त विधेयक मुख्यतः भ्रष्ट नेताओं के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लाया जा रहा है। आखिर यह काम क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?
सपा, तृणमूल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना समेत आम आदमी पार्टी उस विधेयक पर विचार के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति में शामिल होने को तैयार नहीं, जिसके तहत आपराधिक मामलों में 30 दिन तक हिरासत अथवा जेल में रहने वाले प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और केंद्र शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं उनके मंत्रियों को पद छोड़ना होगा।
इन दलों के इस फैसले ने केवल कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी दलों का असमंजस बढ़ाने का ही काम नहीं किया, बल्कि विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए की एकजुटता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस अपने नेतृत्व वाले गठबंधन की एका का परिचय देने के लिए कुछ भी करे, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जो दल संसदीय समिति में शामिल होने को तैयार नहीं, वे वही हैं, जो व्यक्ति या परिवार विशेष की ओर से संचालित हैं।
यह पहली बार नहीं, जब व्यक्ति या परिवार केंद्रित दल राजनीतिक एवं चुनावी सुधारों की किसी पहल को प्रभावी बनाने में असहयोग कर रहे हों। अपने देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार एक कटु सच्चाई है, लेकिन जब भी उस पर लगाम लगाने की कोई पहल होती है, किसी न किसी बहाने उसका विरोध शुरू हो जाता है। इसका ही ताजा उदाहरण है 130वें संविधान संशोधन विधेयक का विरोध।
आम तौर पर जब विपक्ष सदन में किसी विधेयक का विरोध करता है तो उसे संसदीय समिति भेजने की भी मांग करता है। अब जब किसी मामले में फंसकर जेल गए सत्ताधारी नेता को हटाने के प्रविधान वाले विधेयक को ऐसी ही समिति में भेजने का फैसला कर लिया गया है, तब कई विपक्षी दल उसका बहिष्कार करना आवश्यक समझ रहे हैं। यह और कुछ नहीं, संसदीय परंपरा और प्रक्रिया से पलायन है।
समझना कठिन है कि विपक्षी दल उक्त विधेयक पर अपनी आपत्ति दर्ज कराने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? कोई भी समझ सकता है कि उक्त विधेयक मुख्यतः भ्रष्ट नेताओं के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लाया जा रहा है। आखिर यह काम क्यों नहीं किया जाना चाहिए? क्या यह किसी से छिपा है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किस तरह जेल से सरकार चलाने की जिद पकड़े थे?
हालांकि प्रस्तावित कानून पूर्ण राज्य का दर्जा वाले प्रांतों के लिए नहीं है, लेकिन सब जानते हैं कि कुछ समय पहले भ्रष्टाचार के एक गंभीर मामले में कई माह जेल में रहे तमिलनाडु के सेंथिल बालाजी किस तरह जमानत पाते ही मंत्री बना दिए गए थे। क्या विपक्षी दल यह चाहते हैं कि नेताओं को जेल से सरकार चलाने या जमानत पर होते हुए भी मंत्री बनने का अवसर मिलना चाहिए? यदि वे अपने लिए विशिष्ट नियम-कानून चाहते हैं तो यह विशेषाधिकारों की पराकाष्ठा ही है।
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