ऋतु सारस्वत। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर आत्मनिर्भर भारत की बात की। स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर उन्होंने कहा, ‘एक राष्ट्र के लिए आत्मसम्मान की सबसे बड़ी कसौटी आज भी उसकी आत्मनिर्भरता है। विकसित भारत का आधार भी है आत्मनिर्भर भारत। आत्मनिर्भरता का नाता हमारे सामर्थ्य से जुड़ा हुआ है और जब आत्मनिर्भरता खत्म होने लगती है, तो सामर्थ्य भी निरंतर क्षीण होता जाता है और इसलिए हमारे सामर्थ्य को बचाए, बनाए और बढ़ाए रखने के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत अनिवार्य है।’

आत्मनिर्भरता भारत की संकल्पना ही नहीं, अपितु वह सत्य है, जो आत्मबल की कथा लिखती है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महिलाओं की भूमिका अपेक्षित ही नहीं, अपरिहार्य भी है। नारी शक्ति अब केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय अभियान बनना चाहिए। विगत एक दशक में महिलाएं केवल योजनाओं की लाभार्थी नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की सक्रिय भागीदार भी बन चुकी हैं। देश की आधी आबादी का सशक्तीकरण अब सामाजिक सुधार नहीं, बल्कि विकास की रणनीति बनने को है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने भारत में महिला श्रम भागीदारी दर में उल्लेखनीय वृद्धि को उजागर किया, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की कार्यक्षमता में वृद्धि के कारण हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में मुद्रा योजना से बदलते आर्थिक परिदृश्य और महिलाओं के सशक्तीकरण में उसकी अहम भूमिका की चर्चा की। मुद्रा योजना के कुल लाभार्थियों में 68 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो देश भर में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को आगे बढ़ाने में इस योजना की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। वित्त वर्ष 2016 और वित्त वर्ष 2025 के बीच प्रति महिला प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की वितरण राशि 13 प्रतिशत से बढ़कर 62,679 रुपये तक पहुंच गई, जबकि प्रति महिला वृद्धिशील जमा राशि वर्ष दर वर्ष 14 प्रतिशत बढ़कर 95,269 रुपये हो गई।

ऋण वितरण में महिलाओं की अत्यधिक हिस्सेदारी वाले राज्यों ने महिलाओं के नेतृत्व वाले एमएसएमई के माध्यम से काफी अधिक रोजगार सृजन किया है, जो महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और श्रम बल भागीदारी को बढ़ाने में लक्षित वित्तीय समावेशन को मजबूत करता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार यह योजना महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों को वित्त तक पहुंच प्रदान करने में सहायक रही है।

आत्मनिर्भर भारत की एक सुदृढ़ नींव के शिल्पकार ‘महिला स्वयं सहायता समूह’ भी हैं, जिनकी प्रधानमंत्री ने लाल किले से प्रशंसा करते हुए कहा, ‘पिछले 10 साल में वूमेन सेल्फ हेल्प ग्रुप ने कमाल करके दिखाया है। आज उनके प्रोडक्ट दुनिया के बाजार में जाने लगे हैं।’ स्वयं सहायता समूह आत्मनिर्भर भारत का नवीन कथानक लिख रहे हैं। 31 जनवरी, 2025 तक लगभग 10.05 करोड़ महिला परिवारों को 90.90 लाख स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में शामिल किया गया है। स्वयं सहायता समूह आमतौर पर समान सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि वाली 10-12 महिलाओं का एक समुदाय होता है।

एसएचजी से जुड़ी महिलाएं संयुक्त आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए अपने वित्तीय संसाधनों को एकत्रित करने या सदस्यों को छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए उचित ब्याज दर पर ऋण देने के लिए संगठन बनाती हैं। भारत के स्वयं सहायता समूहों को सामूहिक रूप से दुनिया की सबसे बड़ी माइक्रोफाइनेंस परियोजना माना जाता है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार स्वयं सहायता समूह की बैंक पुनर्भुगतान दर 96 प्रतिशत से अधिक है, जो उनके ऋण अनुशासन और विश्वसनीयता को रेखांकित करती है।

प्रधानमंत्री ने ‘नमो ड्रोन दीदी नारी शक्ति योजना’ का भी उल्लेख किया। 15 अगस्त, 2023 को प्रारंभ की गई नमो ड्रोन दीदी योजना स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को कृषि में ड्रोन के उपयोग के लिए 80 प्रतिशत सब्सिडी (आठ लाख रुपये तक) और प्रशिक्षण प्रदान करके सशक्त बनाती है, जिससे उनकी आय सालाना एक लाख रुपये से अधिक तक बढ़ जाती है, टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिलता है और ग्रामीण रोजगार एवं वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।

इस योजना का उद्देश्य 2024-25 से 2025-2026 की अवधि के दौरान 15,000 चुनिंदा महिला स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन प्रदान करना है, ताकि कृषि उद्देश्यों के लिए किसानों को किराए की सेवाएं प्रदान की जा सकें। लीक से हटकर करने की चाह को जब सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन प्राप्त हो तो महिलाओं को सशक्त और संबल होने से कोई नहीं रोक सकता। राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंतर्गत देश भर में महिला सशक्तीकरण परियोजना चल रही है।

इस परियोजना के अंतर्गत महिला किसानों को कृषि के आधुनिक तौर-तरीके सिखाए जा रहे हैं। इन्हीं प्रयासों की परिणति ‘देसी कोल्ड स्टोर’ है, जो झारखंड की महिला किसान बांस से बना रही हैं। इसकी लागत पंद्रह सौ से दो हजार रुपये आती है और इससे छह महीने तक आलू खराब नहीं होते। महिलाओं के उत्थान में स्थानीय समुदायों और राष्ट्र को समग्र रूप से बदलने की क्षमता है।

(लेखिका समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं)