जागरण संपादकीय: थोड़ी तो शर्म करें, विपक्षी दल जानबूझकर चुनाव आयोग को बदनाम कर रहा
Election Commission विपक्षी दलों का रवैया चुनाव आयोग के साथ सुप्रीम कोर्ट का अनादर करने और संसद के भीतर-बाहर इस मुद्दे को तूल देकर चर्चा में बने रहने वाला है। क्या देश की औसत जनता इतनी नासमझ है कि उनकी सस्ती राजनीति और चालबाजी को न समझा पा रही हो?
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर जिस तरह यह कहा कि अब तक इस सूची के प्रारूप पर किसी भी दल से कोई आपत्ति नहीं मिली, उससे यही साफ होता है कि विपक्षी दल जानबूझकर इस संवैधानिक संस्था को बदनाम करने के साथ लोगों को गुमराह कर रहे हैं। लज्जा की बात यह है कि यह काम देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस भी कर रही है।
चुनाव आयोग पर उलटे-सीधे आरोप लगाने के मामले में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तो सारी हदें पार कर गए हैं। लगता है कि उनकी हताशा कुंठा में बदल गई है। वे लोकसभा में चुनाव आयोग को धमकी देने से भी बाज नहीं आए। उनकी नजरों में आने के लिए कांग्रेस के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता भी बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की चुनाव आयोग की आवश्यक और सुप्रीम कोर्ट की ओर से अनुमोदित पहल पर बेतुके बयान देने में लगे हुए हैं।
इसमें नया नाम जुड़ा है पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम का। उन्होंने पहलगाम हमले पर बेतुका बयान देकर कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस और अपनी फजीहत कराई है। अब वे नए सिरे से अपनी फजीहत करा रहे हैं। उन्होंने बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर यह कह दिया कि चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा है और इसका कानूनी तरीके से भी मुकाबला किया जाना चाहिए। आखिर उन्हें या अन्य विपक्षी नेताओं को चुनाव आयोग की कथित अनावश्यक एवं लोकतंत्र विरोधी पहल के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने से रोका किसने है? क्या ये वही लोग नहीं जो सुप्रीम कोर्ट गए थे और वहां उन्होंने मुंह की खाई?
अब इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि विपक्षी दल लोकतंत्र बचाने का नाटक करके लोकतंत्र की ही जड़ें खोदने का काम कर रहे हैं। उन्हें न तो एक संवैधानिक संस्था को बदनाम करने में शर्म आ रही है और न ही वे सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर ध्यान देना पसंद कर रहे हैं। विपक्षी दलों का रवैया चुनाव आयोग के साथ सुप्रीम कोर्ट का अनादर करने और संसद के भीतर-बाहर इस मुद्दे को तूल देकर चर्चा में बने रहने वाला है।
क्या देश की औसत जनता इतनी नासमझ है कि उनकी सस्ती राजनीति और चालबाजी को न समझा पा रही हो? इसका पता तो बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों के बाद ही चलेगा कि विपक्ष को मतदाता सूची के सत्यापन पर बेवजह आसमान सिर पर उठाने से क्या हासिल हुआ, लेकिन इतना तो है ही कि कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों के नेता मतदाता सूचियों को सही करने के चुनाव आयोग के एक जरूरी काम पर बहुत ही भद्दी और एक तरह से आम मतदाताओं के हितों को नुकसान पहुंचाने वाली हरकत कर रहे हैं। विडंबना यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक चुनाव आयोग के साथ खुलकर खड़े होना आवश्यक नहीं समझा।
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