संजय गुप्त। इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्षिक विजयदशमी कार्यक्रम की महत्ता इसलिए अधिक थी, क्योंकि उसने अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सामाजिक एकता पर जोर देते हुए बांग्लादेश, नेपाल की घटनाओं की भी चर्चा की और टैरिफ का भी उल्लेख किया। उन्होंने इस पर बल दिया कि स्वदेशी अपनाते हुए स्वावलंबी बनना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी देश अकेले आगे नहीं बढ़ता और उसकी निर्भरता दूसरों पर होती है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि यह निर्भरता लाचारी बन जाए।

संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है। वह भारत की प्रगति सुनिश्चित करने और संस्कृति के निर्माण को बल देने के साथ भारतीय समाज में राष्ट्रीयता का बोध जगाने को लेकर प्रतिबद्ध है। यदि आज भारत ने विश्व में अपनी एक पहचान बना ली है तो उसके पीछे आजादी के बाद हम भारतीयों की भारतीयता के प्रति अपनी आस्था बनाए रखना भी एक बड़ा कारण है और संघ भारतीयता के प्रति समर्पित है। इस समर्पण के लिए उसे साधुवाद दिया जाना चाहिए। वह इसके लिए प्रयासरत है कि हमारे अपने सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास न होने पाए।

संघ की बात लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचती है और लोग उससे प्रभावित होते हैं। हो सकता है कुछ लोगों को संघ की ओर से किए जा रहे समाज और राष्ट्र निर्माण के कार्यों का भान न हो, पर वे उसके प्रभाव से इन्कार नहीं कर सकते। उसका यह प्रभाव उसके अनगिनत संगठनों की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे कार्यों के कारण है। संघ के एक संगठन के रूप में भाजपा का प्रभाव इसलिए अधिक है, क्योंकि वह राजनीतिक संगठन है और पिछले 11 वर्षों से केंद्र की सत्ता में है।

संघ के विभिन्न संगठन सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक क्षेत्रों में सक्रिय हैं। वे समाज सेवा के साथ देश की एकता और अखंडता के लिए समर्पित हैं। संतों, विचारकों, बुद्धिजीवियों समेत न जाने कितने लोगों के भारतीयता के प्रति समर्पित होने के पीछे एक अदृश्य शक्ति के रूप में संघ और उसके विभिन्न संगठन हैं।

संघ की जब स्थापना हुई थी, तब भारतीय समाज विघटन से ग्रस्त था। हिंदू-मुस्लिम खाई चौड़ी हो रही थी, क्योंकि अंग्रेजों ने उसे जानबूझकर बढ़ाया था। उस समय कांग्रेस नेताओं में भारतीयता को लेकर वैसी स्पष्टता न थी, जैसी आवश्यक थी। यह वह कालखंड था, जब मुस्लिम लीग की स्थापना हो चुकी थी और वह कांग्रेस को इस रूप में पेश कर रही थी कि उसे मुसलमानों की चिंता नहीं। इससे कांग्रेस दबाव में थी। तब अंग्रेजी सत्ता मुस्लिम लीग को अहमियत दे रही थी। संघ जब अस्तित्व में आया, तब अंग्रेजों के करीब 200 वर्ष के शासनकाल के चलते भारतीय सभ्यता चोटिल थी।

इसके पहले वह मुगलों के लंबे शासन के चलते प्रताड़ित थी। उस समय कांग्रेस की राजनीति आजादी पर केंद्रित थी। उसके सामने यह लक्ष्य नहीं था कि कैसे भारतीय मूल्यों और संस्कारों को स्थापित किया जाए। इसके चलते सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र के अनेक विचारक इससे चिंतित थे कि कैसे राजनीतिक ताकतें अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के अनुचित तौर-तरीकों का प्रतिकार नहीं कर पा रही हैं।

इसी पृष्ठभूमि में संघ की स्थापना हुई। चूंकि कांग्रेस राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीयता के मूल्यों को अक्षुण्ण रखने पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे पा रही थी, इसलिए उसे संघ के विचार स्वीकार नहीं थे। दोनों के बीच मतभेद उभरने शुरू हुए और वे बढ़ते ही गए। खुद कांग्रेस के अनेक नेताओं के बीच मतभेद उभरे और वे उससे अलग भी हुए। इस दौर में कांग्रेस ने संघ को सांप्रदायिक बताना शुरू कर दिया।

जब आजादी के बाद नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी तो कांग्रेस ने संघ पर हमला बोल दिया। उसने उसे गांधीजी की हत्या के लिए दोषी ठहराया, जबकि गोडसे संघ की रीति-नीति से असहमत होकर उससे अलग हो चुका था और हिंदू महासभा में सक्रिय था। संघ को तभी से कठघरे में खड़ा करने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक कायम है। विपक्षी दलों में उसे सांप्रदायिक बताने की होड़ सी लगी रहती है, लेकिन वह अपना प्रभाव लगातार बढ़ाता गया। आज वह सबसे व्यापक प्रभाव वाला संगठन है।

यदि भाजपा विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन है तो इसके पीछे संघ का योगदान है। भाजपा सामाजिक-सांस्कृतिक मामलों में संघ के विचारों को ही आगे बढ़ाती है। संघ ने हमेशा कहा है कि वह उन सभी संगठनों के साथ है, जो भारत के सामाजिक विकास और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए प्रतिबद्ध हैं। कुछ समय पहले दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने इसे स्पष्ट रूप से रेखांकित किया था।

आज भारतीय समाज के सामने जो चुनौतियां हैं, उनका सामना करने के लिए संघ हरसंभव प्रयत्न कर रहा है। इसीलिए उसने पंच परिवर्तन को अपना संकल्प बनाया है। ये हैं स्व-बोध (औपनिवेशिक मानसिकता त्यागकर स्वदेशी अपनाना), सामाजिक समरसता (वंचित वर्गों के लिए न्याय एवं समानता सुनिश्चित करना), कुटुंब प्रबोधन (पारिवारिक मूल्यों को सशक्त करना), नागरिक शिष्टाचार (नागरिक कर्तव्यों का पालन) और पर्यावरण संरक्षण (प्रकृति की रक्षा)। इन संकल्पों को सामने रखकर संघ अपनी दूसरी शताब्दी की यात्रा शुरू कर रहा है।

संघ का उद्देश्य भारतीय समाज का निर्माण करते हुए राष्ट्र निर्माण करना है।

चूंकि समाज पर संघ के प्रभाव से भाजपा को बल मिलता है, इसलिए उसके विचारों का विरोध करना कांग्रेस की मजबूरी है। इस मजबूरी के कारण भी वह संघ को लांछित करती रहती है, लेकिन वह अपना काम करता रहता है। आज संघ का प्रभाव बढ़ रहा है, लेकिन कांग्रेस का घट रहा है।

इसका एक कारण भारतीय समाज को समझने में उसकी नाकामी और तुष्टीकरण की नीति है। आज की कांग्रेस राजनीतिक भटकाव का शिकार है। कांग्रेस और अन्य विरोधी दल संघ और भाजपा को पुराने चश्मे से ही देखने के आदी हैं। वे यह समझने को तैयार नहीं कि संघ के विचार तो भारतीय समाज के डीएनए का हिस्सा हैं और वह अपने इन्हीं विचारों के कारण सफल है। उसकी सफलता में ही भाजपा की सफलता निहित है।