सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कालेजों में प्रवेश की परीक्षा-नीट के मामले में अपने विस्तृत निर्णय में इस परीक्षा के साथ अन्य अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करने वाली संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी अर्थात एनटीए को कई दिशानिर्देश देते हुए उसे अपनी कार्यप्रणाली सुधारने की जो नसीहत दी, उस पर हर हाल में अमल होना चाहिए।

इसलिए होना चाहिए, क्योंकि उसके कामकाज को लेकर गंभीर सवाल उठने के साथ ही उसकी प्रतिष्ठा को क्षति भी पहुंची है। यह ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने नीट में गड़बड़ियों के चलते उसे दोबारा कराए जाने की मांग इस आधार पर ठुकरा दी कि परीक्षा के आयोजन में गड़बड़ी केवल पटना और हजारीबाग में हुई थी और उसका राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि एनटीए की साख को चोट न पहुंची हो।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि नीट में गड़बड़ी के आरोपों के बीच सरकार ने एनटीए प्रमुख को हटा दिया था और इस संस्था की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए एक समिति गठित कर दी थी, क्योंकि यह सब बहुत पहले होना चाहिए था। ध्यान रहे यह पहली बार नहीं है, जब एनटीए की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठे हों। जब नीट का मामला चर्चा में था, तभी एनटीए को कम से कम तीन परीक्षाओं को इस अंदेशे के चलते टालना पड़ा था कि कहीं उनके प्रश्नपत्र लीक न हो गए हों।

यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने एनटीए के कामकाज में सुधार के लिए गठित समिति का विस्तार किया। आशा की जाती है कि एनटीए इस समिति के सुझावों पर अमल करके परीक्षाओं की शुचिता सुनिश्चित करने में समर्थ होगी। यह तभी संभव हो पाएगा, जब वह अपनी कमियों को दूर करने के लिए कमर कसेगी।

इस एजेंसी की ओर से कराई जाने वाली परीक्षाओं में उन्नत तकनीक का उपयोग बढ़ाना होगा और परीक्षाएं कंप्यूटर से ही करानी होंगी, लेकिन ऐसा करते समय इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि उसके तकनीकी तंत्र में सेंध न लगने पाए। इसके अतिरिक्त उसे प्रश्नपत्रों के कई सेट तैयार करने होंगे, ताकि यदि कहीं कोई गड़बड़ी हो जाए तो उससे देश भर की परीक्षा प्रभावित न होने पाए।

समझना कठिन है कि सूचना तकनीक में उन्नत समझा जाने वाला देश अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन में उसका सही उपयोग क्यों नहीं कर पा रहा है? वास्तव में एनटीए को अपनी कार्यप्रणाली सुधार कर परीक्षाओं का आयोजन इस तरह करना होगा, जिससे वह प्रतियोगी परीक्षाएं कराने वाली अन्य संस्थाओं के समक्ष उदाहरण पेश कर सके और वे उससे कुछ सीख सकें।

पिछले कुछ वर्षों में अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक हुए हैं। इनमें कई परीक्षाएं राज्य सरकारों की संस्थाओं द्वारा कराई गई थीं। इन परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने से लाखों छात्र प्रभावित हुए। उनके समय के साथ संसाधन की बर्बादी हुई और उनका सरकारी तंत्र पर भरोसा भी डिगा।