केंद्र सरकार ने पुलिस बल के आधुनिकीकरण की योजना जारी रखने का फैसला करते हुए इस मद में करीब 26 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का जो प्रविधान किया, वह समय की मांग के अनुरूप है। इस योजना के तहत पुलिस को आधुनिक बनाने के साथ उसके कामकाज में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस क्रम में जम्मू-कश्मीर के साथ पूवरेत्तर राज्यों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की पुलिस को आवश्यक संसाधनों से लैस करने पर विशेष बल दिया जाना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसी ही आवश्यकता दक्षिण भारत के राज्यों में भी है, क्योंकि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि में अतिवादी संगठन न केवल सिर उठा रहे हैं, बल्कि उनकी गतिविधियां भी बढ़ती जा रही हैं।

तथ्य यह भी है कि ऐसे अतिवादी संगठनों को बाहरी ताकतों का सहयोग-समर्थन मिल रहा है। ये वे ताकतें हैं, जो भारत को कमजोर करना चाह रही हैं। इसके लिए वे मतांतरण में लिप्त संगठनों से लेकर मादक पदार्थो की तस्करी करने वालों की मदद करने में लगी हुई हैं। इन बाहरी ताकतों में कुछ ऐसी भी हैं, जो कथित तौर पर नागरिक अधिकारों और पर्यावरण जैसे मसलों की आड़ में भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखती हैं। इसी कारण आंतरिक सुरक्षा के समक्ष खतरे बढ़ रहे हैं। चूंकि आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने तत्व आधुनिक तकनीक से लैस होकर नित-नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं इसलिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि हमारी पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ खुफिया तंत्र भी न केवल समुचित संसाधनों से सच्जित हो, बल्कि संख्या बल के अभाव से भी मुक्त हो।

यह ठीक नहीं कि अनेक राज्यों में पुलिस कर्मियों के हजारों पद रिक्त हैं। पुलिस बल को केवल आधुनिक तकनीक एवं संसाधनों से ही लैस नहीं होना चाहिए, बल्कि उसकी मदद के लिए उच्च गुणवत्ता वाली फोरेंसिक लैब भी विकसित की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त आपराधिक न्याय तंत्र को प्रभावी बनाने के साथ पुलिस कर्मियों को आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए, ताकि वे काम के बोझ से मुक्त हो सकें। यह ठीक है कि हाल के समय में ऐसे कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन वे अभी अपर्याप्त हैं। आधुनिकीकरण के साथ पुलिस को जरूरी संसाधनों और सुविधाओं से लैस करने के काम को वैसी ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जैसी सेनाओं को समर्थ बनाने के लिए दी जा रही है।