असहयोग के मायने
अब ममता ने केंद्र-विरोध के मामले में संसद के अंदर-बाहर ‘एकला चलो’ की रणनीति अख्तियार की है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का केंद्र-विरोध जारी है। संसद में तृणमूल कांग्रेस के सांसद केंद्र सरकार की कथित जनविरोधी नीतियों का विरोध करते देखे जा रहे हैं। तृणमूल सांसदों ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य करने के खिलाफ जहां संसद परिसर में प्रदर्शन किया, वहीं शुक्रवार को कोलकाता में युवा तृणमूल कांग्रेस के नेता व सांसद अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रस्तावित फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफआरडीआइ) के विरोध में प्रदर्शन किया। वैसे तो ममता पहले भी केंद्र की मोदी सरकार का विरोध करती रही हैं, लेकिन इस बार उनकी रणनीति में थोड़ा बदलाव आया है। तृणमूल पहले संसद में कांग्रेस के साथ संयुक्त रूप से विरोध करती थी और बाहर राजनीतिक स्तर पर अकेले प्रदर्शन करती थी। अब ममता ने केंद्र-विरोध के मामले में संसद के अंदर-बाहर ‘एकला चलो’ की रणनीति अख्तियार की है। गुजरात चुनाव के नतीजे आने के बाद उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। कांग्रेस से ममता की दूरी बढ़ने के बाद भाजपा को लगता है कि कुछ मुद्दों पर संसद में उसे तृणमूल का समर्थन मिल सकता है। इसी उम्मीद के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ममता को फोन कर तीन तलाक के मुद्दे पर तृणमूल का समर्थन मांगा है। ममता ने शिष्टाचार के नाते रविशंकर प्रसाद से बातचीत जरूर की लेकिन तीन तलाक पर समर्थन देने का स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया है। संसद के चालू सत्र में ही तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए विधेयक पेश होगा। ममता के विरोधी रुख को देखकर यह नहीं लगता कि वह तीन तलाक विधेयक पर केंद्र का समर्थन करेगी क्योंकि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद तृणमूल के कई अल्पसंख्यक नेताओं ने इसका विरोध किया था। विपक्षी दल होने के नाते बेशक तृणमूल को केंद्र की नीतियों का विरोध करने का अधिकार है लेकिन सवाल यह है कि हर मुद्दे पर विरोध कहां तक जायज है। आधार का विरोध करना भी तर्कसंगत नहीं कहा जाएगा। जब पूरे देश के लिए एक व्यवस्था लागू हो चुकी है तो उसके विरोध करने पर सवाल खड़ा होता है। उसी तरह तीन तलाक पर सरकार जो विधेयक लाने जा रही है, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार है।
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