अरुंधति भट्टाचार्य। भारत का उद्देश्य 2047 तक एक विकसित और समृद्ध राष्ट्र बनना है। इस परिवर्तन में टेक्नोलाजी की मुख्य भूमिका रहने वाली है, जिसका नेतृत्व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक करेगी। भारत में आधार से लेकर यूपीआई तक डिजिटल सार्वजनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर ने व्यापक समावेशन की नींव तैयार कर दी है। आधार दुनिया का सबसे बड़ा बायोमीट्रिक आईडी सिस्टम है। इसने 100 करोड़ से अधिक नागरिकों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में सक्षम बनाया है। यूपीआई ने डिजिटल भुगतान में क्रांति ला दी है, जिसके तहत 2025 के पहले पांच महीनों में ही 101 लाख करोड़ रुपये से अधिक के लेन-देन हुए हैं।

इसरो और आईआईटी जैसे संस्थानों ने यह दिखाया है कि जब भारत निर्माण करता है, तो उसका लाभ पूरे विश्व को मिलता है। आईआईटी जैसे शिक्षा संस्थानों ने विश्व अर्थव्यवस्था में अनुमानित 300 से 400 अरब डालर का योगदान दिया है, पर इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इन संस्थानों ने भारत की जरूरत के अनुसार समस्या समाधान की संस्कृति का निर्माण किया है।

पेटेंट फाइलिंग में आईआईटी प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में लगातार आगे बढ़ रहे हैं, जिससे शोध और इनोवेशन में उनकी भूमिका स्पष्ट होती है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स-2024 में भारत का स्थान 2015 में 81वें स्थान से बढ़कर 39वें स्थान पर आ गया है, जो इस गति को दर्शाता है। स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और अटल इनोवेशन मिशन जैसे अभियानों और मजबूत नीतियों के साथ भारत तेजी से एक ग्लोबल इनोवेशन केंद्र के रूप में उभर रहा है।

भारत में अगला बड़ा परिवर्तन एआई की ओर होगा। इसकी नींव इनोवेशन की संस्कृति द्वारा तैयार हो रही है। एआई ने हमारे सीखने, खेती करने, इलाज करने और शासन करने के तरीकों में परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है, लेकिन इसकी वास्तविक सामर्थ्य इसमें निहित है कि हम इसका उपयोग कैसे करते हैं। हम एआई की मदद से केवल आउटपुट को ही बेहतर नहीं कर सकते, बल्कि असमानता को दूर करते हुए उपलब्धता और अवसरों का विस्तार भी कर सकते हैं।

एक्वाकनेक्ट और फाइलो जैसे स्टार्टअप एआई की मदद से किसानों को फसल की पैदावार बढ़ाने, पानी का प्रभावशाली उपयोग करने तथा लागत कम करके लाखों लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में मदद कर रहे हैं। मल्टी-लिंग्वल एआई चैटबाट और किसान ई-मित्र जैसे सरकारी अभियान किसानों को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले फसल के नुकसान को कम करने में सहायता कर रहे हैं। आंध्र सरकार प्रोड्यूसर ट्रस्ट और एजेंटफोर्स की मदद से कृषि विधियों का विस्तार कर रही है।

हेल्थकेयर के क्षेत्र में एम्स का एआई प्लेटफार्म कैंसर की तुरंत पहचान करने में सक्षम बना रहा है। एआई-संचालित टेलीमेडिसिन प्लेटफार्म ग्रामीण और शहरी हेल्थकेयर के बीच के अंतर को दूर कर रहे हैं, ताकि गुणवत्तायुक्त मेडिकल केयर की उपलब्धता सभी जगह बढ़ाई जा सके। शिक्षा में एआई भाषा की बाधा को दूर कर रही है और विस्तृत रूप से व्यक्तिगत लर्निंग संभव बना रही है।

एंबाइब जैसे प्लेटफार्म एआई-संचालित व्यक्तिगत लर्निंग अनुभवों की मदद से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं, वहीं स्पीकएक्स प्रोफेशनल्स और व्यवसायों के लिए संचार कौशल में सुधार ला रहा है, युवाओं को नौकरी के लिए तैयार कर रहा है तथा व्यावसायिक विकास कर रहा है। एआई की मदद से सरकारें नागरिक केंद्रित सेवाएं देने और नीति की कमियों को अधिक स्मार्ट तरीके से पहचानने में सक्षम बन रही हैं। ये संकेत हैं कि टेक्नोलाजी जब उद्देश्य के साथ विकसित होती है, तो वह जनकल्याण का शक्तिशाली साधन बन जाती है।

एआई भारत में विकास की समस्याओं को दूर कर सकती है, लेकिन इसके लिए एआई का हर व्यक्ति तक पहुंचना आवश्यक है। इसीलिए हमें केवल इनोवेशन पर नहीं, अपितु इन्फ्रास्ट्रक्चर, कौशल, नीति और विश्वास पर भी ध्यान केंद्रित करना जरूरी है। हमें डाटा कलेक्शन, स्टोरेज और विश्लेषण के लिए एक मजबूत सिस्टम की भी जरूरत है। अपनी विशाल आबादी की क्षमता का पूरा उपयोग करने के लिए भारत में डिजिटल परिवर्तन के एक विस्तृत एजेंडे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एआई साक्षरता, मानव-एआई सहयोग पर ध्यान केंद्रित करके भारत में एक ऐसे कार्यबल का निर्माण संभव है, जो न केवल टेक्नोलाजी में कुशल हो, बल्कि इनोवेशन और विकास लाने में सक्षम भी हो।

यह दृष्टिकोण विभिन्न प्रोफेशनल्स को समर्थ बनाएगा। जहां फैक्ट्री कर्मचारी क्वालिटी कंट्रोल के लिए एआई का उपयोग कर सकेंगे, वहीं शिक्षक व्यक्तिगत शिक्षा प्रदान करने के लिए एआई की मदद ले सकेंगे। वे टेक्नोलाजी का अधिक आत्मविश्वास के साथ उपयोग करेंगे, जिससे इंटेलिजेंट युग में भारत की सफलता सुनिश्चित होगी। यह केवल तकनीकी नहीं, बल्कि एक सामाजिक आवश्यकता भी है। लिहाजा हमें एक ऐसा एआई सिस्टम निर्मित करना चाहिए, जो मानव क्षमता बढ़ाते हुए समानता, गरिमा और न्याय के सिद्धांतों की रक्षा करे। एआई के विकास और क्रियान्वयन का एक नया मानक स्थापित करने और नियामक ढांचे को भी इनोवेशन के अनुरूप विकसित किए जाने की आवश्यकता है।

(लेखिका भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व चेयरपर्सन और सेल्सफोर्स साउथ एशिया की प्रेसिडेंट एवं सीईओ हैं)