साइबर ठगी पर नहीं लग पा रही लगाम, जागरुकता के अभाव में लोग बन रहे शिकार
सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट के मामलों पर चिंता जताई है, पर जागरूकता की कमी के कारण साइबर ठगी के मामले कम नहीं हो रहे। अपराधी पुलिस या अन्य एजेंसियों के अधिकारी बनकर लोगों को धमकाते हैं। पढ़े-लिखे लोग भी इनके झांसे में आ रहे हैं और शिकायत करने से हिचकिचाते हैं। साइबर अपराध रोकने वाले तंत्र को और सक्षम बनाने की जरूरत है।
HighLights
- <p>सुप्रीम कोर्ट की डिजिटल अरेस्ट पर चिंता</p>
- <p>जागरूकता की कमी से बढ़ती ठगी</p>
- <p>अपराध रोधी तंत्र को सक्षम बनाने की जरूरत</p>
डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृहमंत्रालय और सीबीआई से जो जवाब मांगा, उसके नतीजे में इस तरह के मामले थमने के आसार कम ही हैं। इसलिए कम हैं, क्योंकि एक तो लोगों में जागरूकता की कमी है और दूसरे एजेंसियां डिजिटल अरेस्ट का भय दिखाकर ठगी करने वाले अपराधियों तक आसानी से पहुंच नहीं पा रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में एक बुजुर्ग दंपती से एक करोड़ रुपये से अधिक की ठगी के मामले का स्वतः संज्ञान संभवतः इसलिए लिया, क्योंकि इसमें अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेश का सहारा लिया गया। ऐसा एक अर्से से हो रहा है। साइबर अपराधी कभी पुलिस बनकर लोगों को डिजिटली अरेस्ट करने की धमकी देते हैं, कभी सीबीआई, ईडी, कस्टम अथवा नारकोटिक्स ब्यूरो का अधिकारी बनकर।
पिछले कुछ समय से वे फर्जी अदालती आदेशों की भी आड़ लेने लगे हैं। इसका अर्थ केवल यही नहीं कि साइबर अपराधी बेलगाम हैं, बल्कि यह भी है कि लोगों को इसका अनुमान ही नहीं कि कोई एजेंसी किसी को डिजिटली अरेस्ट नहीं करती। यह विडंबना ही है कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई व्यवस्था न होने के बाद भी साइबर अपराधी लोगों को धमकाकर उगाही करने में सफल हैं।
जागरूकता के अभाव ने साइबर अपराधियों का काम और आसान कर दिया है। एक से एक पढ़े-लिखे और यहां तक कि बैंकों और अपराध रोधी एजेंसियों में काम करने वाले भी साइबर अपराधियों के झांसे में आकर लाखों-करोड़ों गंवा रहे हैं। हाल में ही मुंबई में साइबर अपराधियों ने एक उद्यमी से 58 करोड़ रुपये ऐंठ लिए।
कई मामले ऐसे आए हैं, जिनमें लोग हफ्तों तक कथित रूप से डिजिटल अरेस्ट रहे और बैंक से पैसे निकालकर ठगों को देते रहे। समझना कठिन है कि ऐसे लोग पुलिस में शिकायत करना आवश्यक क्यों नहीं समझते? क्या उन्हें उस पर भरोसा नहीं? जो भी हो, कुछ मामले ऐसे भी आए हैं, जिनमें बैंक कर्मियों की भी मिलीभगत देखने को मिली। यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है। निःसंदेह चिंताजनक यह भी है कि डिजिटल अरेस्ट का दावा कर ठगी करने वाले आसानी से पकड़ में नहीं आते।
ज्यादातर मामलों में डूबी रकम वापस ही नहीं मिल पाती। इससे यही पता चलता है कि साइबर ठग अपराध रोकने वाले तंत्र से चार कदम आगे हैं। होना तो यह चाहिए अपराध रोधी तंत्र इतना सक्षम हो कि साइबर अपराधियों में भय व्याप्त हो। इसमें संदेह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश-निर्देश यह काम कर पाएंगे? आवश्यकता केवल साइबर अपराध रोधी तंत्र को और सक्षम बनाने की ही नहीं, लोगों को जागरूक करने के अभियान को प्रभावी ढंग से संचालित करने की भी है। बैंकों के साथ विभिन्न एजेंसियां यह समझें कि अभी यह अभियान सही तरह नहीं चल रहा है।
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