जागरण संपादकीय: आफत बनी बरसात, जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम चक्र में बड़ा बदलाव
यही स्थिति जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को बढ़ाने वाले कारणों का निवारण करने के उपायों के मामले में भी है। एक बड़ी व्यथा यह है कि मानसून विदा होते ही यह भुला दिया जाएगा कि देश के लोगों को अति वर्षा बाढ़ जल भराव आदि के कारण कैसे-कैसे संकटों से जूझना पड़ा?
जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम चक्र में आई तब्दीली का परिणाम है आवश्यकता से अधिक बारिश अथवा कम समय में ज्यादा वर्षा। इसके नतीजे में देश के एक बड़े हिस्से में बाढ़ और जल भराव के चलते लोगों को गंभीर समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। चूंकि इस बार अर्से बाद इतनी लंबी अवधि तक बरसात हो रही है, इसलिए वर्षा जनित समस्याएं कहीं अधिक देखने को मिल रही हैं।
सबसे अधिक समस्याओं से दो-चार हैं देश के पर्वतीय राज्य। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर में अधिक बारिश के कुछ ज्यादा ही दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं। इन राज्यों में भूस्खलन की जितनी अधिक घटनाएं सामने आ रही हैं, वे गंभीर चिंता का कारण हैं, लेकिन यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि चेतने से इन्कार किया जा रहा है। इसका एक प्रमाण यह है कि उन कारणों के चलते जान-माल की अधिक क्षति हो रही है, जो ज्ञात हैं और जिनका निवारण किया जाना चाहिए था।
समझना कठिन है कि पहाड़ों से अनावश्यक छेड़छाड़ और पहाड़ी नदियों के किनारे अंधाधुंध निर्माण कार्य से क्यों नहीं बचा जा रहा है? आखिर इस तथ्य को क्यों ओझल किया जा रहा है कि यदि नदियों के स्वाभाविक मार्ग को बाधित किया जाएगा तो वे तबाही का कारण बनेंगी? पर्वतीय राज्यों को इससे भी चिंतित होना चाहिए कि आखिर अब बादल फटने की इतनी अधिक घटनाएं क्यों हो रही हैं?
इस बार बारिश पर्वतीय राज्यों के साथ-साथ मैदानी राज्यों में भी कहर ढा रही है। इसका कारण केवल जरूरत से ज्यादा बारिश होना नहीं है। इसका एक कारण कमजोर आधारभूत ढांचे का निर्माण और जल निकासी के उपयुक्त उपाय न किया जाना है। यही कारण है कि नई बनी सड़कों और यहां तक कि एक्सप्रेसवे और हाईवे तक पर जाम लग रहे हैं। शहरों के अंदर की सड़कें भी जल भराव और जाम से जूझ रही हैं।
स्थिति यह है कि महानगर तक की सड़कों में जल निकासी के पर्याप्त उपाय नहीं दिख रहे हैं। निश्चित रूप से यदि कहीं पर भी ज्यादा बारिश होगी तो उससे कुछ न कुछ समस्याएं उपजेंगी ही, लेकिन इन समस्याओं पर एक बड़ी हद तक काबू पाया जा सकता है। यह तभी संभव है, जब बुनियादी ढांचे का निर्माण भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाए और जल निकासी के बेहतर उपाय किए जाएं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बेहतर उपायों की बातें तो खूब होती हैं, लेकिन उनके अनुरूप कुछ ठोस होता हुआ नहीं दिखता। यही स्थिति जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को बढ़ाने वाले कारणों का निवारण करने के उपायों के मामले में भी है। एक बड़ी व्यथा यह है कि मानसून विदा होते ही यह भुला दिया जाएगा कि देश के लोगों को अति वर्षा, बाढ़, जल भराव आदि के कारण कैसे-कैसे संकटों से जूझना पड़ा?
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