जागरण संपादकीय: लड़कियों ने किया कमाल, विश्व कप जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया
बीसीसीआइ ने 2006 में महिला क्रिकेट की कमान अपने हाथ में ली थी। यदि उसने दो दशक के अंदर ही महिला क्रिकेटरों को शिखर पर पहुंचा दिया तो इसका कारण है उनके प्रोत्साहन के लिए उनकी पुरस्कार राशि पुरुषों के समान करना, उन्हें उनके जैसे संसाधन उपलब्ध कराना और महिला प्रीमियर लीग शुरू करना।
HighLights
भारत ने पहली बार महिला विश्व कप जीता
बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट को दिया बढ़ावा
भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार वनडे विश्व कप जीत कर केवल इतिहास ही नहीं रचा, बल्कि अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के साथ देश की लाखों लड़कियों के लिए खेलों और अन्य क्षेत्रों में संभावनाओं के द्वार खोलने का भी काम किया। इस जीत ने फिर यह सिद्ध किया कि लड़कियां लड़कों की ही तरह हर क्षेत्र में चुनौतियों से पार पा सकती हैं और अपने हौसले से देश-दुनिया को चमत्कृत कर सकती हैं।
यह जीत लड़कियों के प्रति हमारे पुरुष प्रधान समाज के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाने वाली सिद्ध होनी चाहिए। यह बदलाव उन्हें आगे बढ़ने और खुद को साबित करने के मौके तो देगा ही, भारतीय समाज में खेलों की महत्ता भी बढ़ाएगा। ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि आज के युग में खेल के मैदान में अर्जित की जाने वाली सफलताएं देश विशेष की प्रगति का सूचक हैं।
महिला विश्व कप की जीत इसलिए एक बड़ी सफलता है, क्योंकि इसके पहले किसी अंतरराष्ट्रीय खेल में भारतीय लड़कियों की टीम ने कोई खिताब नहीं जीता था। यह जीत इसलिए भी विशेष है, क्योंकि महिला विश्व कप क्रिकेट में आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड का दबदबा था।
इसके पहले के सभी महिला विश्व कप क्रिकेट आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के नाम रहे। एक तरह से भारतीय टीम ने अपनी जीत से विकासशील देशों की महिला क्रिकेट टीमों को भी प्रेरणा प्रदान करने का काम किया।
महिला वनडे विश्व कप जीत की प्रतीक्षा किस बेसब्री से की जा रही थी, इसका पता फाइनल मुकाबले को लेकर बने माहौल से भी चलता है और स्टेडियम में उमड़ी दर्शकों की भीड़ से भी। यह माहौल और भीड़ इस कारण थी कि खेल प्रेमियों को कप्तान हरमनप्रीत कौर और उनकी उत्साही टोली पर भरोसा था।
इस भरोसे का आधार उनके खेल में आए सुधार के साथ यह भी था कि भारतीय महिला टीम दो बार वनडे विश्व कप के फाइनल में पहुंच चुकी थी। यह स्वाभाविक है कि इस जीत को 1983 के वनडे विश्प कप में कपिल देव के नेतृत्व वाली टीम की ओर से हासिल की गई खिताबी जीत के समकक्ष बताया जा रहा है।
उस जीत ने भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदल दिया था। महिला क्रिकेट के साथ ऐसा होना और आसान है, क्योंकि तब के मुकाबले आज भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आर्थिक रूप से कहीं अधिक सक्षम है। वास्तव में क्रिकेट बोर्ड की इस आर्थिक सक्षमता ने ही महिला क्रिकेटरों के विश्व विजयी अभियान को सुगम बनाया।
बीसीसीआइ ने 2006 में महिला क्रिकेट की कमान अपने हाथ में ली थी। यदि उसने दो दशक के अंदर ही महिला क्रिकेटरों को शिखर पर पहुंचा दिया तो इसका कारण है उनके प्रोत्साहन के लिए उनकी पुरस्कार राशि पुरुषों के समान करना, उन्हें उनके जैसे संसाधन उपलब्ध कराना और महिला प्रीमियर लीग शुरू करना।













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