आदित्य सिन्हा। सुधारों को अक्सर इस तरह प्रस्तुत किया जाता है मानो इनसे हर किसी को लाभ पहुंचता है। वास्तविकता में सुधारों के भी दो पहलू होते हैं। इसमें भी किसी को लाभ होता और किसी को नहीं। सुधार इतना जरूर करते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों और लोगों पर बोझ की दिशा बदल देते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या सुधारों के नाम पर की जाने वाली पहल अर्थव्यवस्था को एक मजबूत, अधिक टिकाऊ विकास पथ पर ले जाती है।

हाल में 56वीं जीएसटी परिषद की बैठक में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के मोर्चे पर किए गए सुधार इसी गतिशीलता को दर्शाते हैं। इसके जरिये कर संरचना को सरल बनाकर, लोगों पर बोझ घटाकर, उत्पादकों के लिए विसंगतियों को दुरुस्त कर और विवाद समाधान प्रणाली को मजबूत कर परिषद ने जीएसटी को भ्रम और अनुपालन की जटिलता के जाले से बाहर निकालकर विकासोन्मुख ढांचे की ओर नए सिरे से उन्मुख किया है। इन सुधारों का सशक्त पहलू यह है कि इसमें मध्यमवर्गीय उपभोक्ता विजेता के रूप में उभरता दिखता है।

सबसे स्पष्ट परिवर्तन चार स्तरों वाले जीएसटी ढांचे से एक सरल और नागरिक हितैषी प्रणाली की ओर बढ़ना है, जिसमें केवल दो मुख्य स्लैब हैं। मेरिट वस्तुओं के लिए पांच प्रतिशत और मानक स्लैब के रूप में 18 प्रतिशत। जबकि 40 प्रतिशत की विशेष स्लैब केवल विलासिता और हानिकारक वस्तुओं जैसे कि सट्टेबाजी और कैसिनो, बड़े वाहनों और कुछ गैर-अल्कोहलिक पेय पदार्थों के लिए नियत की गई है। पुराने सिस्टम के तहत शब्दों में छोटा सा अंतर बड़ी विसंगति की वजह बनता रहा है।

जैसे क्या पराठा रोटी के समान था? पनीर को छूट और चीज पर टैक्स? ये अस्पष्टताएं वर्गीकरण विवाद, मुकदमेबाजी और प्रशासनिक बैकलाग की स्थिति को निर्मित करती रहीं। इसके चलते तमाम छोटे उद्यमों के लिए अनुपालन के मोर्चे पर अधिक समय, ऊर्जा और संसाधन खर्च करने पड़ते। स्वाभाविक रूप से इसका उत्पादन पर असर पड़ता। अब चार स्लैब वाली व्यवस्था को दो श्रेणियों में सिमेटकर परिषद ने विवादों की गुंजाइश को घटाते हुए कर प्रणाली में अनिश्चितताओं को दूर करते हुए उसे अधिक पूर्वानुमानित बना दिया है।

इस सुधार से लोगों को सीधी राहत भी मिलने वाली है। दूध, पनीर और ब्रेड अब जीएसटी से मुक्त हो गए हैं। जबकि साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट, साइकिल और रोजमर्रा उपभोग में आने वाली कई वस्तुएं जो पहले 12 या 18 प्रतिशत की श्रेणी में आती थीं, उन पर दर घटाकर 5 प्रतिशत कर दी गई है। इससे घरेलू बजट का संतुलन और बेहतर होगा। एसी, टीवी, बाइक से लेकर छोटी कारों समेत कई वस्तुओं पर दर को 28 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत करना भी लाभ पहुंचाने वाला सिद्ध होगा।

जीएसटी सुधार के पीछे मंशा एकदम स्पष्ट है कि लोगों के पास अधिक से अधिक पैसा रहे, जो खर्च होकर आर्थिकी को गति प्रदान करे। जहां निजी उपभोग की जीडीपी में करीब 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, वहां यह पहल मांग को तात्कालिक रूप से बढ़ाने का काम करेगी। स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च भी इस सुधार से घटेगा। पहली बार जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा को कर मुक्त कर दिया गया है।

कई जीवनरक्षक दवाएं भी कर मुक्त हो गई हैं, जबकि स्वास्थ्य परीक्षण से जुड़े उपकरणों पर भी टैक्स घटा दिया गया है। यहां मुद्दा केवल कल्याण का नहीं, बल्कि विकास का भी है। किफायती स्वास्थ्य देखभाल और व्यापक बीमा कवरेज लोगों को चिकित्सा खर्च के झटकों से बचाने का काम करते हैं। इससे अन्य खर्चों के लिए संसाधन बचेंगे। साथ ही, स्वस्थ और अधिक सुरक्षित कार्यबल बनाकर उत्पादकता में सुधार की संभावनाएं भी बढ़ती हैं। इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर के जरिये भी उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास किया गया है। यह स्थिति तब बनती है जब इनपुट पर तैयार उत्पादों की तुलना में अधिक कर लगता है।

यह उद्यमों के लिए अनुपयोगी क्रेडिट जमा करने, तरलता पर दबाव डालने और प्रतिस्पर्धा गंवाने का कारण बनता है। कपड़ा क्षेत्र इस समस्या से बहुत प्रभावित था, जहां मानव निर्मित फाइबर पर 18 प्रतिशत, यार्न पर 12 प्रतिशत और तैयार कपड़े पर पांच प्रतिशत कर था। उर्वरकों को भी ऐसी विसंगतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें कच्चे माल पर 18 प्रतिशत, लेकिन अंतिम उत्पादों पर पांच प्रतिशत कर लागू था। अब इन विसंगतियों को सुधारा गया है।

ट्रैक्टर और कृषि मशीनरी पर कर की दर को 12 से पांच प्रतिशत तक कम किया गया है, जिससे किसानों के लिए लागत घटेगी। नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों पांच प्रतिशत कर लगने से स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदमों को और मजबूती मिलेगी। एक महत्वपूर्ण सुधार संस्थागत स्तर पर भी है। जीएसटी प्रणाली की लंबे समय तक इसलिए आलोचना की गई कि उसमें राष्ट्रीय स्तर के उचित अपीलीय तंत्र का अभाव है। उद्यमों को अक्सर राज्यों के बीच असंगत निर्णयों का सामना करना पड़ा, जिसने अनिश्चितता को बढ़ाया। इस कड़ी में 2025 के अंत तक जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण यानी जीएसटैट को अमल में लाने का निर्णय महत्वपूर्ण है।

न्यायाधिकरण सितंबर से अपीलें स्वीकार करेगा और दिसंबर तक सुनवाई शुरू करेगा। जबकि बैकलाग यानी लंबित अपीलों के लिए जून 2026 की समयसीमा होगी। प्रिंसिपल बेंच भी अग्रिम निर्णयों के लिए राष्ट्रीय अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य करेगी, जिससे न्यायालयों के बीच स्थिरता बनेगी। यह संस्थागत सुधार विकास के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूर्वानुमानित विवाद समाधान निवेश जोखिम घटाता है। कंपनियां अधिक निवेश और विस्तार करने के लिए तभी तैयार होती हैं, जब उन्हें पता होता है कि असहमतियों एवं विसंगतियों का तत्परता के साथ निरंतर समाधान संभव होगा।

जीएसटी को तार्किक बनाना समय की आवश्यकता थी, क्योंकि इसकी जटिलताएं विवादों को बढ़ाकर विकृतियों को जन्म दे रही थीं, जिससे प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो रही थी। इसके समग्र परिणाम उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की मुसीबतें बढ़ा रहे थे। वास्तव में 2017 में अपनी शुरुआत के साथ जीएसटी ने जहां पूरे देश के बाजार को एकीकृत करने का काम किया तो 2025 का सुधार इसे विकास की गति बढ़ाने वाली परिपक्व प्रणाली के रूप में स्थापित करता है।

(लेखक लोक-नीति विश्लेषक हैं)