विचार: सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत की क्रांति, 'मेड इन इंडिया' की दुनिया में धूम
भारत की सेमीकंडक्टर यात्रा प्रधानमंत्री मोदी के बड़े विजन का हिस्सा है। यह डिजिटल इंडिया से शुरू हुई। इंडिया स्टैक यूपीआई आधार और टेलीकाम नेटवर्क ने हर भारतीय को तकनीक उपलब्ध कराई। हमने इलेक्ट्रानिक्स उत्पादन इकोसिस्टम को भी मजबूत किया है। अब हम सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रानिक कंपोनेंट्स और उपकरणों के निर्माण का इकोसिस्टम बना रहे हैं।
अश्विनी वैष्णव। शुरुआती दिनों में कंप्यूटर आज के आधुनिक और आकर्षक उपकरणों के बजाय पुराने टेलीफोन एक्सचेंज जैसे दिखते थे। अब अरबों ट्रांजिस्टर वाले एक नाखून से भी छोटे चिप में कहीं अधिक शक्ति समाई हुई है। ये चिप्स मोबाइल फोन, कार, ट्रेन, फ्रिज, टीवी, स्कूटी, फैक्ट्री मशीनों, हवाई जहाजों को चलाते हैं और उपग्रहों को भी दिशा दिखाते हैं। ये इतने छोटे हैं कि अब आपकी अंगुली में भी फिट होकर आपके दिल की सेहत तक नापते हैं। यही सेमीकंडक्टर का जादू है।
किसी भी राष्ट्र की तरक्की के लिए जरूरी है कि वह अपने विकास के प्रमुख क्षेत्रों- स्टील, बिजली, दूरसंचार, रसायन और परिवहन आदि में महारत हासिल करे। सेमीकंडक्टर भी अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह लगभग हर चीज के अंदर छिपा है, चाहे वे स्मार्टफोन, कार, ट्रेन, मेडिकल डिवाइस हों या फिर एआई, रक्षा प्रणाली, पावर ग्रिड, सेटेलाइट। सेमीकंडक्टर के बिना डिजिटल अर्थव्यवस्था संभव नहीं है। इनके बिना आधुनिक संचार, डाटा प्रोसेसिंग, एआई, नवीकरणीय ऊर्जा या सुरक्षित रक्षा प्रणाली की कल्पना नहीं की जा सकती। जो देश सेमीकंडक्टर का डिजाइन और उत्पादन नहीं कर सकता, वह स्वास्थ्य से लेकर सुरक्षा तक अपनी आवश्यक सेवाओं के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाता है। सेमीकंडक्टर में मजबूती पाना भविष्य को आकार देने का सवाल है।
कोविड महामारी ने हमें सेमीकंडक्टर की अहमियत बताई। उस समय जब चिप की ग्लोबल सप्लाई चेन डगमगाई तो तमाम उद्योगों का उत्पादन प्रभावित होने से अरबों रुपये का नुकसान हुआ। आज सेमीकंडक्टर वैश्विक राजनीति के केंद्र में हैं। चिप बनाने का काम अभी सिर्फ कुछ गिने-चुने देशों में ही होता है। इसलिए जरा-सी रुकावट पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती है। हाल में रेयर अर्थ मैग्नेट पर बढ़ता ध्यान हमें याद दिलाता है कि किस तरह महत्वपूर्ण संसाधनों पर नियंत्रण वैश्विक शक्ति का स्वरूप तय करता है। डिजिटल युग का सबसे अहम संसाधन बन चुके सेमीकंडक्टर की मांग और तेजी से बढ़ेगी।
भारत में इलेक्ट्रानिक्स की खपत और उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। आज हमारे पास 65 करोड़ से ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स हैं और इलेक्ट्रानिक्स मैन्यूफैक्चरिंग सालाना 12 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। हम एआई आधारित सिस्टम, डाटा सेंटर और इलेक्ट्रिक वाहन भी विकसित कर रहे हैं, जिनमें चिप्स की जरूरत होती है। ऐसे में जरूरी है कि भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन में अपनी मजबूत जगह बनाए। दशकों तक यह कहा जाता रहा कि सेमीकंडक्टर की दौड़ में भारत पीछे छूट गया है। अब यह सच नहीं। इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के तहत 10 चिप प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है। इस साल पहला ‘मेड इन इंडिया’ चिप बाजार में आ जाएगा। गुजरात के साणंद में एक यूनिट में पायलट प्रोडक्शन लाइन शुरू हो चुकी है। एक साल में चार और यूनिट्स के उत्पादन शुरू करने की उम्मीद है।
एप्लाइड मटेरियल्स, लैम रिसर्च, मर्क और लिंडे जैसी ग्लोब कंपनियां भी भारत में फैक्ट्रियों और सप्लाई चेन को मजबूत बनाने में निवेश कर रही हैं। भारत की असली ताकत उसके लोग हैं। इसका सही उपयोग करने के लिए नीतियां और निवेश जरूरी हैं। आज भारत के पास वैश्विक सेमीकंडक्टर डिजाइन कार्यबल का 20 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। अनुमान है अगले दशक की शुरुआत तक दुनिया में 10 लाख से ज्यादा सेमीकंडक्टर प्रोफेशनल्स की कमी होगी। भारत इस कमी को पूरा करने की तैयारी कर रहा है।
सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए विश्वस्तरीय इलेक्ट्रानिक डिजाइन आटोमेशन (ईडीए) टूल्स का उपयोग 350 संस्थाओं और स्टार्टअप्स के 60,000 से अधिक लोग कर रहे हैं। 2025 में ही इनका इस्तेमाल 1.2 करोड़ घंटे से अधिक हो चुका है। सरकार के सपोर्ट से स्टार्टअप्स भारत के चिप डिजाइन इकोसिस्टम को नई ऊर्जा दे रहे हैं। माइंडग्रोव टेक्नोलाजीज ऐसी आईओटी चिप्स बना रही है, जो आईआईटी, मद्रास में विकसित किए गए स्वदेशी ‘शक्ति प्रोसेसर’ पर आधारित है। नेत्रसेमी नामक स्टार्टअप ने हाल में 107 करोड़ रुपये की रिकार्ड फंडिंग हासिल की है, जो भारत के डिजाइन स्पेस में सबसे बड़ा निवेश है।
कई ऐसे स्टार्टअप सरकार की डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव (डीएलआई) योजना के तहत विकसित हो रहे हैं। मोहाली की सेमीकंडक्टर लैबोरेटरी में 17 कालेजों के छात्रों ने अब तक 20 चिप्स बना लिए हैं। ग्लोबल कंपनियां भी भारतीय प्रतिभा में निवेश कर रही हैं। लैम रिसर्च भारत में 60,000 इंजीनियरों को प्रशिक्षित करेगी। आईआईएससी, आईआईटी और अन्य संस्थानों के साथ साझेदारी से ‘लैब से फैक्ट्री तक’ कार्यबल तैयार हो रहा है। भारत अमेरिका, जापान, यूरोपीय संघ और सिंगापुर आदि से मिलकर केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए निर्माण करने में सक्षम बन रहा है।
भारत की सेमीकंडक्टर यात्रा प्रधानमंत्री मोदी के बड़े विजन का हिस्सा है। यह डिजिटल इंडिया से शुरू हुई। इंडिया स्टैक, यूपीआई, आधार और टेलीकाम नेटवर्क ने हर भारतीय को तकनीक उपलब्ध कराई। हमने इलेक्ट्रानिक्स उत्पादन इकोसिस्टम को भी मजबूत किया है। अब हम सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रानिक कंपोनेंट्स और उपकरणों के निर्माण का इकोसिस्टम बना रहे हैं। सेमीकंड इंडिया समिट-2025 इसी यात्रा का ही अगला पड़ाव है। प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करेंगे।
इस साल इसमें 48 देशों से 500 से ज्यादा ग्लोबल इंडस्ट्री लीडर भाग ले रहे हैं, जबकि पिछले साल केवल लगभग 100 नेता शामिल हुए थे। पूरी दुनिया हमारे दरवाजे इसलिए आ रही है, क्योंकि वह अनिश्चितताओं से जूझ रही है और स्थिर भारत ही आशा की किरण है। हमारा लक्ष्य भारत को ‘प्रोडक्ट नेशन’ बनाना है। हमारी सेमीकंडक्टर फैक्ट्रियों से निकलने वाले चिप न केवल भारत, बल्कि दुनिया के टेलीकाम, आटोमोबाइल, डाटा सेंटर, कंज्यूमर इलेक्ट्रानिक्स और इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रानिक्स जैसे अहम क्षेत्रों की जरूरत पूरी करेंगे। इस तरह भारत पूरे सेमीकंडक्टर सेक्टर में एक मजबूत और प्रतिस्पर्धी केंद्र बनकर उभरेगा।
(लेखक रेल, सूचना एवं प्रसारण, इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।