अंततः वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में सुधार की प्रतीक्षा पूरी हुई। यह एक बड़ा सुधार है और चूंकि इसका लाभ आम लोगों के साथ कारोबार जगत को भी मिलेगा, इसलिए यह स्वाभाविक है कि इससे अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा और वह भी ऐसे समय जब उसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मनमानी टैरिफ नीति की चुनौतियों से दो-चार होना पड़ रहा है।

आठ वर्ष बाद जीएसटी को युक्तिसंगत बनाए जाने के फैसले के साथ ही यह देखा जाना चाहिए कि उपभोक्ताओं को इसका वास्तविक लाभ मिले। उन आशंकाओं का निवारण किया जाना चाहिए, जिनके तहत यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि कुछ उत्पादों और सेवाओं के मूल्य में वास्तव में कमी आएगी या नहीं?

इन आशंकाओं का निवारण करके ही 22 सितंबर से लागू होने वाले जीएसटी सुधार को देश को दीवाली के उपहार की संज्ञा दी जा सकेगी। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस सुधार के साथ जीएसटी के क्रियान्वयन की जटिलताएं सचमुच खत्म हों और छोटे कारोबारियों को बेवजह की कागजी कार्यवाही पूरी न करनी पड़े।

जीएसटी में बड़े सुधार को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच जो आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है, वह इसलिए औचित्यहीन और व्यर्थ है, क्योंकि जीएसटी परिषद ने आम सहमति से यह फैसला लिया कि अब इस टैक्स की दो ही श्रेणियां-5 और 18 प्रतिशत होंगी।

यह ठीक है कि आम सहमति से लिए गए इस फैसले को लेकर कुछ गैर-भाजपा शासित राज्यों ने राजस्व में होने वाले नुकसान की भरपाई करने की मांग की है, लेकिन एक तो यह नुकसान बहुत अधिक नहीं और दूसरे, वह तात्कालिक रूप से ही होगा। जीएसटी की दो श्रेणियां किया जाना समय की मांग थी। ऐसा करने से केवल रोजमर्रा की तमाम वस्तुएं सस्ती ही नहीं होंगी, बल्कि उनकी खपत भी बढ़ेगी।

इसके नतीजे में अर्थव्यवस्था का पहिया और तेजी से घूमेगा। इसे सुनिश्चित करने के लिए अगली पीढ़ी के उन अन्य आर्थिक सुधारों को भी गति देनी होगी, जिनके बारे में प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से घोषणा की थी।

आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना केवल इसलिए आवश्यक नहीं है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति टैरिफ के मामले में भारत के आर्थिक हितों पर चोट पहुंचाने पर आमादा हैं, बल्कि इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि भारत को विकसित देश बनने के लिए तेजी से प्रगति करना आवश्यक है। इसके लिए केवल सभी अपेक्षित सुधार ही नहीं किए जाएं, बल्कि उन पर अमल की ठोस व्यवस्था भी की जानी चाहिए।

यह भी जरूरी है कि आर्थिक सुधारों के मामले में दलगत हितों की संकीर्ण राजनीति को तिलांजलि दी जाए। यह अपेक्षा सबसे अधिक कांग्रेस से है, क्योंकि उसने हर मामले में सस्ती राजनीति करना अपना एजेंडा बना लिया है।