जागरण संपादकीय: भारत, चीन और अमेरिका, वैश्विक समीकरणों में बड़े परिवर्तन कब?
ट्रंप के बड़बोले सहयोगी पीटर नवारो यह कहकर भारत के खिलाफ अपने दुष्प्रचार को धार देते हैं कि रूसी तेल का फायदा ब्राह्मण उठा रहे हैं। अपने एक और बेतुके बयान से वह क्या कहना चाहते हैं यह वही जानें भारत की भलाई चीन और अमेरिका दोनों से सतर्क रहने में है।
शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन पहले भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के कारण चर्चा में आया, फिर उनकी चीनी और रूसी राष्ट्रपति से मैत्री वाले माहौल में बातचीत के लिए। इन मुलाकातों ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा, पर अभी यह कहना कठिन है कि भारत-चीन के संबंधों मे कोई व्यापक बदलाव आने जा रहा है। यह अभी भविष्य के गर्भ में है, क्योंकि दोनों देशों के बीच आपसी समझबूझ भले ही बनी हो, लेकिन ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई, जिससे यह कहा जा सके कि कोई नया अध्याय शुरू होने जा रहा है अथवा एससीओ के जरिये वैश्विक समीकरणों में कोई बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है।
मोदी-चिनफिंग के बीच आपसी रिश्तों को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ने की जैसी बातें हुईं, वैसी पहले भी होती रही हैं। इसके बाद भी तथ्य यही है कि दोनों के बीच अविश्वास की दीवार गिरने का नाम नहीं ले रही है। इसका कारण चीन का रवैया है। यदि एससीओ में कुछ उल्लेखनीय हुआ तो यह कि दोनों देशों में व्यापक संवाद-संपर्क का टूटा सिलसिला फिर कायम हो गया।
जब तक आपसी मतभेदों को दूर करने एवं आर्थिक सहयोग बढ़ाने को लेकर कुछ ठोस नहीं होता, तब तक बहुत उत्साहित नहीं हुआ जा सकता। इतना अवश्य है कि एससीओ के मंच से पहलगाम आतंकी हमले की निंदा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की उपस्थिति में हुई। यह इसलिए भारत की जीत है, क्योंकि कुछ समय पहले एससीओ के रक्षा मंत्रियों के मंच से आतंकवाद के संदर्भ में पहलगाम हमले का जिक्र करने से बचा गया था और इसके चलते भारत ने आपत्ति जताई थी।
इसके नतीजे में कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका था। इस बार ऐसा हुआ और इससे पाकिस्तान की फजीहत हुई, लेकिन कहना कठिन है कि उसकी सेहत पर फर्क पड़ेगा। फर्क शायद चीन पर भी न पड़े, क्योंकि आतंकवाद पर दोहरे रवैए का परिचय तो वह खुद देता है। एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री की चीन और रूस के राष्ट्रपति से बात-मुलाकात को विश्व मीडिया के साथ अमेरिकी प्रशासन ने भी नोटिस लिया।
उसकी ओर से जिस तरह भारत से अपनी दोस्ती को याद किया गया, उससे ऐसा लगता है कि वह और अधिक संबंध नहीं बिगाड़ना चाहता, लेकिन शायद ट्रंप प्रशासन इस पर एकमत नहीं या फिर उसे समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या किया जाए, क्योंकि जहां नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास की ओर से यह कहा जाता है कि दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में अपार संभावनाएं हैं, वहीं ट्रंप के बड़बोले सहयोगी पीटर नवारो यह कहकर भारत के खिलाफ अपने दुष्प्रचार को धार देते हैं कि रूसी तेल का फायदा ब्राह्मण उठा रहे हैं। अपने एक और बेतुके बयान से वह क्या कहना चाहते हैं, यह वही जानें, भारत की भलाई चीन और अमेरिका, दोनों से सतर्क रहने में है।
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