संसद में एक और दिन अदाणी प्रकरण के साथ कुछ अन्य मामलों को लेकर हंगामा हुआ और फिर वह दिन भर होता ही रहा। इस पर आश्चर्य नहीं कि हंगामा करने में कांग्रेस सबसे आगे रही। वह और विशेष रूप से उसके नेता राहुल गांधी न जाने कब से अदाणी समूह को कोस रहे हैं। एक अमेरिकी अदालत के फैसले के बाद वह हाथ धोकर इस समूह के पीछे पड़ गए हैं, लेकिन शायद वह यह देखने से इन्कार कर रहे हैं कि आइएनडीआइए के सभी घटक कांग्रेस के रवैये से सहमत नहीं।

ममता बनर्जी ने जिस तरह यह कहा कि उनका दल कांग्रेस की ओर से उठाए गए किसी एक मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देगा, उससे यही संकेत मिला कि वह नहीं चाहतीं कि अदाणी मामले को तूल दिया जाए। तृणमूल कांग्रेस के इस रवैये का कारण कुछ भी हो, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसी साल जून में अदाणी समूह को कोलकाता बंदरगाह के रखरखाव और संचालन का अनुबंध मिला था। कांग्रेस को इसकी भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि गत दिवस ही माकपा के नेतृत्व वाली केरल सरकार ने बंदरगाह के विकास के लिए अदाणी समूह के साथ एक पूरक समझौते को अंतिम रूप दिया। साफ है कि माकपा भी अदाणी मामले में कांग्रेस के रुख से सहमत नहीं। इस तथ्य को भी ओझल नहीं किया जाना चाहिए कि तेलंगाना सरकार ने अदाणी समूह के साथ एक समझौता कर रखा है और अतीत में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने भी राज्य में इस समूह के निवेश को हरी झंडी दी थी।

यदि राहुल गांधी को यह लगता है कि अदाणी समूह दागदार है तो वह अपनी सरकारों को उससे कोई नाता न रखने के लिए क्यों नहीं कह पा रहे हैं? यह समझना भी कठिन है कि कांग्रेस अमेरिकी अदालत के आकलन को अंतिम सत्य की तरह क्यों ले रही है और वह भी तब, जब उसने रिश्वत के कथित लेन-देन के कोई प्रमाण नहीं पेश किए हैं? इससे इन्कार नहीं कि अमेरिकी अदालत की कार्रवाई से जो सवाल उठे हैं, उनके जवाब सामने आने चाहिए, लेकिन इसका भी कोई मतलब नहीं कि जैसा राहुल गांधी चाह रहे हैं, वैसा हो।

वह चाह रहे हैं कि अदाणी समूह के प्रमुख गौतम अदाणी की तुंरत गिरफ्तारी हो। क्या यह विचित्र नहीं कि यह चाहत उन राहुल गांधी की है, जो खुद नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर चल रहे हैं? यह भी विचित्र है कि संयुक्त अरब अमीरात, तंजानिया और श्रीलंका तो अदाणी समूह पर अमेरिकी अदालत की टिप्पणी को महत्व नहीं दे रहे हैं, लेकिन भारत में कांग्रेस के नेता और कुछ अन्य लोग उसे बिनी किसी जांच-पड़ताल दंडित करने को उतावले हैं। यह उतावलापन इसलिए भी ठीक नहीं, क्योंकि निवेशक अदाणी समूह पर भरोसा जता रहे हैं और इसी कारण उसके शेयरों में तेजी देखने को मिल रही है।