कैसे आएंगे अच्छे दिन
अच्छे दिन देने के वायदे के साथ केंद्र में गठित नरेंद्र मोदी की सरकार ने बिहार के गरीबों को ऐसा तोहफा दिया है, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्य में इंदिरा आवास के आवंटन में 50 फीसद से भी अधिक की कटौती करने का फैसला किया है। बिहार सरकार ने इसका पुरजोर विरोध किया है। अब यह केंद्र सरकार पर निर्भर है कि वह राज्य के विरोध को स्वस्थ ढंग से लेती है या राजनीतिक मुद्दा बनाकर इस महत्वपूर्ण विषय को उलझा कर रख देती है। राज्य में इंदिरा आवास न सिर्फ महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, बल्कि यह गृह विहीन आबादी के बीच राजनीतिक पैठ बनाने का भी यह बड़ा माध्यम भी है। अगर, इसमें कटौती होती है तो इसका प्रभाव राजनीति पर भी पड़ेगा। राजनीतिक नफा-नुकसान की बात न भी करें, फिर भी राज्य के गरीबों को पक्का आवास देना सरकार की जिम्मेवारी है। कितने लोग गृह विहीन हैं या कच्चे मकान या झोपड़ियों में रहते हैं, इसका सरकारी आंकड़ा उलझाने वाला रहता है। सरकारी आंकड़ों को दरकिनार कर ग्रामीण बिहार पर नजर डालें तो पता चलेगा कि कई योजनाओं के बावजूद बड़ी आबादी पक्के मकान की सुविधा से वंचित है। ऐसी आबादी सेहत और इज्जत के लिहाज से बहुत अधिक असुरक्षित परिवेश में रहने को विवश है। सबसे खराब आवासीय परिवेश उन लोगों का है, जिन्हें समाज का अंतिम व्यक्ति कहा जाता है। ये दलित हैं। महा दलित हैं। पिछड़े, अति पिछड़े, अल्पसंख्यक और यहां तक कि गरीब सवर्ण भी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों और महा दलितों की ऐसी बस्तियां आराम से मिल जाएंगी जहां लोग एकदम से अमानवीय परिवेश में रहने को मजबूर हैं। आदमी और जानवर एक ही घर में नजर आते हैं। शहरी नागरिक अगर ऐसी बस्तियों से गुजरते हैं तो नाक पर रूमाल रखना नहीं भूलते। इन सबको पक्के मकान की सुविधा मिलती है तो इनके जीवन स्तर में सुधार होता है। नई पीढ़ी के लोग अच्छे परिवेश में रहकर जीवन में भी अच्छा कर पाते हैं। मनुष्य के विकास में परिवेश की अहम भूमिका होती है। समुचित विकास के लिए जिस गरिमापूर्ण परिवेश की कल्पना की गई है, उसमें स्वच्छ आवास भी है। वैसे, बिहार में इंदिरा आवास में कटौती की यह पहली घटना नहीं है। कई बार तो कटौती इस आधार पर की गई कि राज्य सरकार की कमियों के चलते निर्धारित अवधि में आवास निर्माण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका। लेकिन, इसबार मामला दूसरा है। यह भी सही है कि इंदिरा आवास योजना में कभी भी सबकुछ ठीक नहीं रहा है। सरकारी अधिकारियों और बिचौलियों के चलते यह एक बदनाम योजना बनकर रह गई थी। इसका पूरा लाभ लक्षित समूह को नहीं मिल पा रहा था। मौजूदा राज्य सरकार ने बहुत हद तक इस योजना में लूट खसोट को रोकने की कोशिश की। नकद के बदले सीधे लाभुकों के खाता में धन जमा करने की नीति बनाई गई। बिचौलियों पर सख्त कार्रवाई की गई। योजना के कार्यान्वयन पर इन सबका असर नजर आ रहा है। लेकिन, योजना में ही कटौती हो जाए तो गरीबों को पक्का मकान का लक्ष्य कैसे पूरा होगा। अच्छे दिन तो उनके आने चाहिए न जो जन्म से मरण तक बुरे दिनों को देखने और उसमें जीने को अभिशप्त रहे हैं।
[स्थानीय संपादकीय: बिहार]














कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।