75वें स्वतंत्रता दिवस के साथ ही भारत ने एक नए युग में प्रवेश कर लिया है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष की हमारी गौरवशाली यात्रा यह उम्मीद जगाती है कि आने वाले समय में हम और अधिक तेज गति से आगे बढ़ेंगे और इस क्रम में उन सपनों को भी साकार करेंगे, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने भी देखे और हमारी आज की पीढ़ी भी देख रही है। ये सपने हैं सक्षम, आत्मनिर्भर और समरस भारत के-एक ऐसे भारत के, जिसमें सभी सुखी और समृद्ध हों और सबके बीच सद्भाव हो। भविष्य के भारत का निर्माण करने के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि हम केवल 75 साल पुराने राष्ट्र नहीं हैं। यह अच्छा हुआ कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री ने यह याद दिलाया कि विभाजन के दर्द को भूला नहीं जाना चाहिए। भारत का विभाजन केवल देश के लिए ही नहीं, दुनिया के लिए भी एक बड़ी त्रासदी था। इस त्रासदी ने जो सबक दिए, वे विस्मृत नहीं होने चाहिए। इसी तरह हमें अपनी उस सांस्कृतिक थाती को भी विस्मृत नहीं करना चाहिए, जो हमने अपनी परंपराओं में संजो रखी है। हमारी संस्कृति और उसकी समृद्ध परंपराओं ने हमें विशिष्ट रूप में गढ़ा है, इसलिए हमें उनका स्मरण भी करते रहना है और खुद को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में ढालना भी है, क्योंकि यही समय की मांग है।

हमें यह हर क्षण याद रखना होगा कि हम हजारों साल पुरानी उस संस्कृति और सभ्यता के वारिस हैं, जो समस्त वसुधा को एक परिवार मानती है और जो सबके कल्याण की कामना करती है। स्पष्ट है कि हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है, जो दुनिया के लिए एक प्रेरणास्नोत बने और उसका नेतृत्व करने की क्षमता से भी लैस हो। यह तनिक कठिन काम है, लेकिन असंभव नहीं। असंभव को संभव बनाने की चुनौती उस क्षण आसान हो जाएगी, जब राष्ट्र एकजुट होकर आगे बढ़ने के संकल्प से लैस हो जाएगा। स्वाधीनता का अमृत महोत्सव इस संकल्प शक्ति को जगाने में सक्षम हो, इसकी न केवल सबको कामना करनी चाहिए, बल्कि इसके लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास भी करने चाहिए। हमारे साझा प्रयास ही राष्ट्र की उन मुश्किलों को आसान करेंगे, जो घरेलू और बाहरी, दोनों मोर्चों पर हैं। ये मुश्किलें बढ़ने न पाएं, इसके लिए हर किसी को और विशेष रूप से हमारे राजनीतिक नेतृत्व को तत्पर रहना होगा। यह तत्परता उसके कार्य में भी दिखनी चाहिए और व्यवहार में भी। भविष्य के भारत का निर्माण करने और उसे निरंतर संवारने के लिए सबको मिलकर काम करना होगा। इस महायज्ञ में समाज के हर तबके का योगदान हासिल हो सके, इसके लिए हमारे राजनीतिक वर्ग को विशेष प्रयास करने होंगे। नि:संदेह वह ऐसा तब कर पाएगा, जब अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों का परित्याग करेगा और राष्ट्र सर्वोपरि के मंत्र को सदैव याद रखेगा। यह ठीक नहीं कि जब यह अपेक्षा की जा रही है कि हमारा राजनीतिक वर्ग अपनी क्षुद्रता का परित्याग कर राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य का संधान करे, तब यह देखने को मिल रहा है कि वह अपने संकीर्ण हितों की र्पूित में बुरी तरह उलझा है। यह उलझाव संसद के मानसून सत्र में देखने को मिला।

जब स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर संसद के मानसून सत्र को कोई नजीर स्थापित करनी चाहिए थी, तब उसने एक बेहद खराब उदाहरण पेश किया। इस पर चिंतन-मनन होना ही चाहिए कि आखिर न चलने वाली संसद देश को कहां ले जाएगी? जब हम अपनी स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तब भारतीय राजनीति का विषाक्त होते दिखना शुभ संकेत नहीं। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि राजनीति वह व्यवस्था है, जो देश को दिशा देने और उसे प्रेरित करने का काम करती है। बेशक समय के साथ हर व्यवस्था में सुधार आता है, लेकिन हमारी राजनीतिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार तीव्र गति से हों, इसके लिए जनता को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभानी होगी। इस जिम्मेदारी के अहसास के लिए स्वतंत्रता दिवस से बेहतर अवसर और कोई नहीं। आइए, इस अवसर का सदुपयोग करें और अपने शुभ संकल्पों से सफलता की एक नई गाथा लिखने का उपक्रम करें। जय हिंद।