राहुल गांधी भले ही नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने का दावा कर रहे हों, लेकिन इस दुकान से वह जैसे बयान दे रहे हैं, वे विभाजनकारी, उकसावे वाले और भारत विरोधी ताकतों को बल देने वाले हैं। इसका ताजा प्रमाण है सैन फ्रांसिस्को में उनकी ओर से दिया गया यह बयान कि आज भारत में मुसलमानों की जो स्थिति है, वह ठीक वैसी ही है, जैसी पिछली सदी के नौवें दशक में उत्तर प्रदेश में दलितों की थी। उनके अनुसार, आज जिस स्थिति में मुस्लिम समुदाय है, वैसी ही देश के सभी अल्पसंख्यक समुदायों यानी सिखों, ईसाइयों के साथ दलितों एवं आदिवासियों की भी है। उनकी मानें तो मुस्लिम समेत अन्य अल्पसंख्यक डरे हुए हैं।

राहुल गांधी ने कुछ इसी तरह का बयान कुछ समय पहले अपनी लंदन यात्रा के दौरान भी दिया था। तब उनकी जमकर आलोचना हुई थी, लेकिन साफ है कि उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। वह किस तरह बिना सोचे-समझे बोलते हैं, इसका प्रमाण उनका यह कहना है कि आज मुसलमानों की वही स्थिति है, जो एक समय उत्तर प्रदेश में दलितों की थी। वह उस समय का जिक्र कर रहे थे, जब उत्तर प्रदेश के साथ केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार थी। क्या वह यह कहना चाहते हैं कि कांग्रेस के शासन के समय दलितों का उत्पीड़न हो रहा था? साफ है कि वह यह भी भूल गए कि 1984 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तब दिल्ली और कुछ और शहरों में सिखों का कैसा संहार हुआ था। किसी को उन्हें यह भी याद दिलाना चाहिए कि कांग्रेस के शासन के समय हाशिमपुरा, मलियाना, भागलपुर आदि में क्या हुआ था?

राहुल गांधी का बार-बार यह कहना कि मुसलमान समेत अन्य अल्पसंख्यक डरे हुए हैं और उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है, उन देसी-विदेशी ताकतों के मन की मुराद पूरी करने वाला है, जो यह दुष्प्रचार करने में लगे हुए हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से मुसलमानों की मुसीबत बढ़ गई है। ऐसा दुष्प्रचार करने वालों में पाकिस्तान भी है और अलकायदा जैसा आतंकी संगठन भी। हैरानी नहीं कि पाकिस्तान के साथ जिहादी संगठन और खालिस्तान समर्थक उनके इस बयान को हाथों-हाथ लें।

इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि कश्मीर को लेकर दिए गए उनके कुछ बयानों को पाकिस्तान और चीन अपनी ढाल बना चुके हैं। राहुल गांधी कहीं भी कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें इसकी परवाह तो करनी ही चाहिए कि उनके कहे का क्या और कैसा असर होगा? वैसे इसकी उम्मीद कम ही है, क्योंकि उनका मोदी विरोध अंधविरोध में तब्दील हो चुका है। राहुल गांधी का ताजा बयान इसकी ही पुष्टि करता है कि कांग्रेस मुसलमानों के मन में काल्पनिक भय का भूत खड़ा कर उनके वोट हासिल करने की अपनी पुरानी नीति पर लौट आई है।