देशघाती राजनीति: चीन की धोखेबाजी राजनीति पर देश को एकजुट होना ही नहीं, बल्कि दिखना भी चाहिए
यह अच्छा नहीं हुआ कि चीन की धोखेबाजी को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी कांग्रेस दलगत राजनीति से ग्रस्त दिखी।
चीन की धोखेबाजी पर जब देश को न केवल एकजुट होना चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए तब कुछ राजनीतिक दलों और खासकर कांग्रेस का व्यवहार ऐसा है जैसे गलवन घाटी का संगीन मामला चीन और भाजपा के बीच का हो। राष्ट्रीय सुरक्षा के इस गंभीर प्रसंग पर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बयानों को देखकर तो यह लगता है कि वह मोदी सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हिसाब चुकता करने के लिए ऐसे ही किसी मौके का इंतजार कर रहे थे। उनके गैर जिम्मेदाराना बयान यदि कुछ साबित कर रहे हैं तो यही कि दलगत राजनीति में डूबे नेता अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
आखिर राहुल गांधी प्रधानमंत्री के लिए ऐसे बिगड़े बोल बोलकर क्या हासिल कर रहे हैं कि वह कहां छिपे हैं, बाहर क्यों नहीं आते? ऐसी भाषा से तो प्रधानमंत्री के प्रति उनकी घृणा ही उजागर होती है। वह 50 साल के हो गए, लेकिन गंभीरता और परिपक्वता से उनका कोई लेना-देना नहीं दिखता। यह पहली बार नहीं जब रक्षा और विदेश नीति से जुड़े गंभीर मसलों पर उन्होंने घोर अपरिपक्वता का परिचय दिया हो। क्या कोई यह भूल सकता है कि डोकलाम विवाद के समय वह किस तरह गुपचुप रूप से चीन राजदूत से मिलने चले गए थे? तब चीनी दूतावास इस मुलाकात की सूचना दे रहा था, लेकिन कांग्रेसी नेता इससे इन्कार कर रहे थे।
चूंकि गलवन घाटी की घटना के बाद राहुल गांधी मौके की नजाकत को समझने के बजाय उलटे-सीधे बयान देने में लगे हुए हैं इसलिए उनके समर्थक उनसे भी दो हाथ आगे दिख रहे हैं। लगता है कांग्रेस यह सोचने की सामर्थ्य ही खो चुकी है कि ऐसी सस्ती राजनीति से देश का हित सधेगा या फिर जाने-अनजाने भारत विरोधी ताकतों को बल मिलेगा? किसी भी तरह का राष्ट्रीय संकट हो वह केवल सत्ताधारी दल की ही परीक्षा नहीं लेता, वह विपक्षी दलों की भी परख करता है।
यह अच्छा नहीं हुआ कि चीन की धोखेबाजी को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी कांग्रेस दलगत राजनीति से ग्रस्त दिखी। वाम दलों से तो कभी यह उम्मीद ही नहीं की जाती कि वे राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च महत्व देंगे, लेकिन कांग्रेस से इसकी ही अपेक्षा की जाती है। कहना कठिन है कि कांग्रेस इस अपेक्षा पर खरी उतरी। क्या यह उचित और आवश्यक नहीं था कि इस बैठक को दलगत से राजनीति से परे रखा जाता? क्या यह कोई बताने वाली बात है कि यह समय एकजुटता दिखाने और साथ ही विश्व को यह संदेश देने का है कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व चीन की गुंडागर्दी के खिलाफ एकजुट है?
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