जागरण संपादकीय: देश हित पर भारी दल हित, ओछी टिप्पणियों के सहारे राजनीति करता विपक्ष
मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए तो यही अंदेशा है कि संसद में भी तू तू-मैं मैं होगी क्योंकि वहां सांसद कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र होंगे। वे वहां भी देश हित के बजाय दल हित को पहली प्राथमिकता देते दिखें तो आश्चर्य नहीं। भारत सरीखे राष्ट्र को कठिन समय में परिपक्व देश की तरह व्यवहार करना आना चाहिए।
पहलगाम में बर्बर आतंकी हमले पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के चंद दिन बाद ही राजनीतिक दलों पर देश हित के स्थान पर किस तरह दलगत हित हावी हो गए हैं, इसका पता कांग्रेस की ओर से एक इंटरनेट मीडिया पोस्ट में प्रधानमंत्री को गायब बताते हुए उन्हें बिना सिर के दिखाए जाने से चलता है।
इस पर हैरानी नहीं कि भाजपा ने यह कह कर जवाब दिया कि यह तो सिर तन से जुदा वाली मानसिकता दर्शाने वाली पोस्ट है। क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि देश-दुनिया को दहलाने वाले आतंकी हमले के एक सप्ताह के अंदर हमारे राजनीतिक दल एक-दूसरे की ओछी टिप्पणियों का जवाब देने में अपना समय जाया करने में लगे हुए हैं?
आखिर ऐसा करके वे इसके अलावा देश के शत्रुओं को और क्या संदेश दे रहे हैं कि संकट के समय भारत का राजनीतिक वर्ग एकजुट नहीं है? आखिर वे सुरक्षा बलों और साथ ही आम नागरिकों को क्या संदेश दे रहे हैं? प्रश्न यह भी है कि इस कलह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को क्या संदेश जा रहा होगा?
इसकी अनदेखी न की जाए कि राजनीतिक माहौल में नकारात्मकता घोलने वाली उक्त पोस्ट के पहले विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस के कई नेताओं के ऐसे बेतुके बयान आ गए थे, जिनमें कोई कह रहा था कि पाकिस्तान से युद्ध की क्या जरूरत, कोई पूछ रहा था कि आतंकियों के पास इतना समय कहां था कि वे लोगों को उनका मजहब पूछकर मारते?
यदि यह सब सामान्य और सहज है तो फिर सर्वदलीय बैठक में बनी सहमति किस बात की थी? कांग्रेस की ओर से पहलगाम हमले पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग के पहले ही जिस तरह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया, उसे देखते हुए संदेह है कि ऐसा कोई आयोजन संभव हो पाएगा और उसमें देश-दुनिया को सही संदेश दिया जा सकेगा।
मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए तो यही अंदेशा है कि संसद में भी तू तू-मैं मैं होगी, क्योंकि वहां सांसद कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र होंगे। वे वहां भी देश हित के बजाय दल हित को पहली प्राथमिकता देते दिखें तो आश्चर्य नहीं। भारत सरीखे राष्ट्र को कठिन समय में परिपक्व देश की तरह व्यवहार करना आना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि सबसे पहले राजनीतिक दल अपने आचरण से उदाहरण पेश करें।
वे नहीं करेंगे तो फिर उनके कार्यकर्ता और समर्थक कैसे करेंगे? इसमें संदेह नहीं कि पहलगाम हमले को लेकर सतर्कता में कमी से जुड़े कई सवाल हैं। इन सवालों को पूछने में हर्ज नहीं, लेकिन उन्हें इस मौके पर जरूरत से ज्यादा तूल देना आवश्यक है या फिर देश की एका का संदेश देना और खतरे का मिलकर मुकाबला करना?














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