मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करते ही यह स्पष्ट हो गया कि वही पार्टी की कमान संभालने वाले हैं। वास्तव में इसे इस रूप में कहना अधिक उपयुक्त होगा कि उन्हें कांग्रेस नेतृत्व यानी गांधी परिवार ने अध्यक्ष बनाने का फैसला कर लिया है। इसका कारण यह प्रकट करने में कोई संकोच तक न किया जाना है कि उन्हें किस तरह अशोक गहलोत के बाद गांधी परिवार का सबसे विश्वासपात्र समझा गया।

अशोक गहलोत इसलिए गांधी परिवार के विश्वासपात्र नहीं रह गए थे, क्योंकि राजस्थान में उनके समर्थक विधायकों ने वैसा प्रस्ताव पारित करने से इन्कार कर दिया, जैसा कांग्रेस नेतृत्व चाहता था। इस प्रस्ताव के तहत राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री के बारे में फैसला करने का अधिकार सोनिया गांधी को सौंपा जाना था। पता नहीं अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि उनकी जगह आगे किए गए मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय है।

हालांकि शशि थरूर उनका सामना करने के लिए चुनाव मैदान में हैं, लेकिन उनकी चुनौती प्रतीकात्मक ही होने वाली है। इसलिए होगी, क्योंकि अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया का संचालन जिनके हाथों में है, वे गांधी परिवार के न केवल विश्वासपात्र हैं, बल्कि उनका चयन भी उसकी ओर से किया गया है। इसी तरह यह भी स्पष्ट है कि जिन प्रतिनिधियों को अध्यक्ष पद के चुनाव में मतदान करना है, उनके चयन में भी उन्हीं नेताओं की भूमिका है, जिनकी नियुक्ति गांधी परिवार ने प्रदेश अध्यक्ष, नेता सदन आदि के रूप में की है।

आखिर जब यह हर तरह से स्पष्ट है कि कांग्रेस अध्यक्ष वही होगा, जिसे गांधी परिवार चाहेगा, तब फिर चुनाव कराने की आवश्यकता ही कहां रह जाती है? क्या ऐसे किसी चुनाव को लोकतांत्रिक, पारदर्शी और आंतरिक लोकतंत्र को बल देने वाला कहा जा सकता है, जिसमें सब कुछ और यहां तक कि उम्मीदवार का चयन भी पार्टी को नियंत्रित करने वाले परिवार ने किया हो?

भले ही अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर यह माहौल बनाने की कोशिश की जा रही हो कि कांग्रेस में संगठन के स्तर पर कोई बड़ा कायाकल्प होने जा रहा है, लेकिन ऐसा कुछ तो होता दिखता ही नहीं। जो दिख रहा है, वह यही कि पार्टी पहले भी गांधी परिवार के कहे अनुसार चलती थी और आगे भी चलेगी। अंतर होगा तो इतना ही कि अब परिवार बिना जिम्मेदारी और जवाबदेही के पर्दे के पीछे से पार्टी चलाएगा-ठीक वैसे ही जैसे अभी तक राहुल गांधी चला रहे थे।

इसका अर्थ है कि पार्टी परिवार का पर्याय बनी रहेगी। क्या कोई इसकी उम्मीद कर सकता है कि अध्यक्ष के रूप में खड़गे अपने हिसाब से फैसले कर पाएंगे? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि वह जिस परिवार की कृपा से राज्यसभा सदस्य हैं, उसने ही उन्हें इसके लिए आगे किया कि वह अध्यक्ष पद का नामांकन करें।