जागरण संपादकीय: 'समय पर काम जरूरी', वायु सेनाध्यक्ष की खरी बात; रक्षा खरीद प्रक्रिया में हो रही देरी पर जताई नाराजगी
एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने रक्षा सौदों और सामग्री निर्माण में देरी पर चिंता जताई। तेजस जैसे प्रोजेक्ट्स और विदेशी आपूर्ति में विलंब की समस्या रही है। मोदी सरकार ने स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा दिया लेकिन और सक्रियता चाहिए। निजी क्षेत्र की भागीदारी और डीआरडीओ की तर्ज पर उन्नत हथियारों के विकास से आत्मनिर्भरता संभव है।
एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने भारतीय उद्योग परिसंघ के शिखर सम्मेलन में रक्षा सौदों और रक्षा सामग्री के निर्माण की परियोजनाओं में देरी को लेकर जैसी खरी बात कही, वह वैसी ही बातें करने के लिए जाने जाते हैं। यह अच्छा भी है, क्योंकि रक्षा के मोर्चे पर किसी भी तरह की देरी स्वीकार्य नहीं। इसके पहले उन्होंने लड़ाकू विमान तेजस के निर्माण में देरी पर भी अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की थी।
अब उन्होंने यह कहने में संकोच नहीं किया कि हथियारों एवं रक्षा उपकरणों के निर्माण की कोई परियोजना समय पर पूरी नहीं होती। उनकी यह बात भी सही है कि दूसरे देशों से रक्षा सामग्री की खरीद के जो सौदे होते हैं, उनके तहत मिलने वाली सामग्री की आपूर्ति में भी विलंब होता है। इसके कई उदाहरण हैं। पहले तो रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने में ही अच्छा-खासा समय लग जाता था।
इसके चलते जरूरी रक्षा सामग्री मिलने में और विलंब होता था। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मनमोहन सरकार लंबे समय तक राफेल या इस जैसे अन्य विमान की खरीद का फैसला ही नहीं कर पाई।
निःसंदेह मोदी सरकार ने रक्षा सौदे तत्परता से करने के साथ देश में ही सरकारी और निजी क्षेत्र के सहयोग से रक्षा सामग्री के निर्माण की ओर अतिरिक्त ध्यान दिया है और इसके सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं, लेकिन इस मोर्चे पर और सक्रियता दिखाने की आवश्यकता है। शायद इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय उद्योग परिसंघ के ही मंच से यह कहा था कि पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान देश में ही बनाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्र का भी सहयोग लिया जाएगा।
चूंकि बीते कुछ वर्षों में रक्षा सामग्री बनाने वाली हमारी कंपनियों ने अपनी क्षमता साबित कर दी है, इसलिए उन्हें और प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि आपरेशन सिंदूर ने यह सिद्ध किया कि भारतीय सेना उन्नत हथियारों से लैस होने के साथ ही उनके उपयोग में भी पारंगत है।
इसी कारण वायु सेनाध्यक्ष ने पाकिस्तान को बेदम करने और चीन की पोल खोलने वाले इस सैन्य अभियान को राष्ट्रीय विजय की संज्ञा दी। यह ध्यान रहे कि जनरल बिपिन रावत यह कहा करते थे कि भारत को अपनी जरूरत के हथियार खुद बनाने चाहिए, क्योंकि धीरे-धीरे वे उन्नत होते जाएंगे और हम रक्षा सामग्री के मामले आत्मनिर्भर हो जाएंगे।
इस तथ्य पर भी गौर किया जाना चाहिए कि जैसे हमारा डीआरडीओ है, वैसे ही अमेरिका का डारपा। उसने समय के साथ उन्नत हथियारों के अलावा उद्योग-धंधों के काम आने वाले ऐसे उपकरण भी बनाए, जो अमेरिका की प्रगति में सहायक बने। यही काम रक्षा क्षेत्र में उतरीं हमारी निजी कंपनियां भी कर सकती हैं।
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