राजीव सचान। अब इसमें कोई संदेह नहीं कि कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका आदि में खालिस्तानी चरमपंथी इन देशों की सरकारों के खुले-छिपे समर्थन से अपनी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। ये देश उन खालिस्तानी अतिवादियों की अराजक गतिविधियों से जानबूझकर आंखें मूंदे हुए हैं, जो भारत के लिए खतरा हैं।

इसका ताजा उदाहरण है सिख फार जस्टिस के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू की ओर से यह धमकी दिया जाना कि सिख 19 नवंबर को एअर इंडिया के विमानों में यात्रा करने से बचें। अमेरिका के साथ कनाडा की भी नागरिकता रखने वाला पन्नू यह कहना चाह रहा था कि इस दिन एअर इंडिया के विमानों का वही हश्र हो सकता है, जो कनिष्क विमान का हुआ था।

1985 में एअर इंडिया के इस विमान को खालिस्तानी आतंकियों ने आसमान में ही बम से उड़ा दिया था। इसमें 329 लोग मारे गए थे। पन्नू की इस धमकी के बाद भी न तो अमेरिका ने कुछ किया और न ही कनाडा ने। उलटे एक नया शिगूफा यह छेड़ दिया गया कि किसी भारतीय की ओर से पन्नू को मारने की कोशिश की गई थी। ऐसा ही शिगूफा खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर कनाडा सरकार ने छोड़ा था।

अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन आदि में खालिस्तानी किस तरह बेलगाम हैं, इसका पता बीते दिनों न्यूयार्क के गुरुद्वारे में भारतीय राजदूत के साथ धक्कामुक्की की कोशिश से चलता है। कुछ समय पहले ब्रिटेन के एक गुरुद्वारे में भी भारतीय उच्चायुक्त के साथ बदसुलूकी हुई थी। इसके पहले भी ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में भारत के उच्चायोगों अथवा दूतावासों के समक्ष खालिस्तान समर्थक अराजकता फैला चुके हैं। जहां सैन फ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास में आगजनी की जा चुकी है, वहीं लंदन में भारतीय उच्चायोग पर हमले की कोशिश के दौरान भारतीय ध्वज का निरादर किया जा चुका है। खालिस्तानी चरमपंथी कनाडा में भी भारतीय उच्चायोग पर बम फेंक चुके हैं। इसके अलावा वे कनाडा में कार्यरत भारतीय राजनयिकों के पोस्टर लगा कर उन्हें जान से मारने की धमकियां देते रहते हैं। कनाडा सरकार इन सब हरकतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में बता देती है।

चूंकि कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार राजनीतिक कारणों से खालिस्तान समर्थकों पर कुछ अधिक ही मेहरबान है, इसलिए वे पूरी तौर पर बेलगाम हैं। यह उनके बढ़ते दुस्साहस का ही प्रमाण है कि वे कनाडा में हिंदू मंदिरों को भी निशाना बनाने लगे हैं। हाल में दीपावली के अवसर पर भी कनाडा के हिंदू मंदिरों के समक्ष खालिस्तानी तत्वों ने न केवल उग्र प्रदर्शन किए, बल्कि हिंदुओं को मंदिरों में जाने से रोकने की कोशिश करने के साथ भारतीय ध्वज का निरादर भी किया।

कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में सक्रिय खालिस्तानी कभी भारतीय ध्वज जलाते हैं तो कभी उसे फुटबाल में लपेटकर उससे खेलते हैं। ऐसी हरकतें देखकर किसी भी भारतीय का खून खौल सकता है। कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका में खालिस्तान समर्थकों के उत्पात से इन देशों में रह रहे भारतीय आजिज आ चुके हैं और उनके सब्र का बांध टूटने लगा है। पिछले दिनों कनाडा में हिंदू समुदाय के लोग खालिस्तानियों के खिलाफ सड़कों पर उतरे भी। खालिस्तान समर्थकों की हरकतें जिहादियों सरीखी हो चली हैं। वे भारत सरकार ही नहीं, भारत से भी घृणा करते हैं और हिंदुओं को लांछित-अपमानित करने में गर्व महसूस करते हैं। वे उन सिखों को भी धमकाते और आतंकित करते हैं, जो खालिस्तान की मांग को बकवास बताते हैं।

खालिस्तानियों की हरकतों और विशेष रूप से उनकी ओर से भारतीय ध्वज का अपमान किए जाने के कारण न केवल विदेश में रह रहे भारतीयों, बल्कि भारत के लोगों में भी आक्रोश पनप रहा है। देश या विदेश में कभी भी ऐसा हो सकता है कि खालिस्तानियों से खार खाए लोग उनके झंडे के साथ वही व्यवहार करें, जैसा वे भारत के राष्ट्रीय ध्वज के साथ करते हैं। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो यह इसलिए अच्छा नहीं होगा, क्योंकि खालसा पंथ के झंडे में भी निशान साहिब यानी खंडा अंकित रहता है और खालिस्तान के झंडे में भी।

जहां खालसा पंथ का ध्वज केसरिया रंग का तिकोने आकार का होता है, वहीं खालिस्तानी झंडा पीले रंग का आयताकार होता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी और अकाल तख्त जैसी संस्थाओं को यह आवाज उठानी चाहिए कि खालिस्तानी अपने झंडे में पवित्र निशान साहिब का इस्तेमाल करने से बाज आएं। दुर्भाग्य से अभी तक ऐसी कोई आवाज सुनने को नहीं मिली है। यदि एसजीपीसी और अकाल तख्त सरीखी संस्थाएं निशान साहिब के सम्मान को बनाए रखना चाहती हैं तो उन्हें तत्काल प्रभाव से यह चेतावनी जारी करनी चाहिए कि खालिस्तानी अपने झंडे में निशान साहिब का उपयोग करना तुरंत बंद करें।

खालिस्तानियों की ओर से अपने झंडे में निशान साहिब का उपयोग करना वैसी ही नापाक हरकत है, जैसी खूंखार आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के आतंकी करते हैं। उन्होंने इस्लामिक स्टेट के अपने काले रंग के झंडे में अरबी भाषा में कुरान की एक आयत अंकित कर रखी है। इसे शहादा कहते हैं। इसे इस्लाम का मूल वक्तव्य माना जाता है।

कुछ वर्ष पहले राजौरी में इस्लामिक स्टेट समर्थकों की ओर से इस आतंकी संगठन के झंडे को रह-रहकर लहराए जाने से कुपित हिंदू संगठनों ने ऐसे ही एक झंडे को जला दिया था। इससे राजौरी में हिंसा भड़क उठी थी, क्योंकि कई मुस्लिम संगठन यह कहते हुए सड़कों पर उतर आए थे कि इस्लामिक स्टेट के झंडे में शहादा अंकित था और ऐसे झंडे को जलाकर उसका अपमान किया गया। इस्लामिक स्टेट के झंडे को जलाने वालों को इसका भान ही नहीं था कि इस झंडे में किसी पवित्र आयत का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने माफी भी मांगी, लेकिन इसके बाद भी राजौरी में कई दिन तक तनाव बना रहा।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)