विचार: जब जेल जैसा बन गया था देश, आपातकाल की बुरी यादें
आपातकाल के तहत अदालत जाने के अधिकार के साथ नागरिकों के कई मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। 25 जून की रात या फिर अगले दिन गिरफ्तार होने वालों में जेपी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, बीजू पटनायक, पीलू मोदी और राजनारायण आदि थे।
केसी त्यागी। आज से 50 वर्ष पहले देश पर थोपा गया आपातकाल एक ऐसा कालखंड है, जो गांधी, नेहरू, पटेल आदि के परिश्रम से बनी कांग्रेस की नेता इंदिरा गांधी के पदमोह का शिकार बना। उन्होंने तानाशाही, ज्यादती, निरंकुशता के बलबूते लोकतंत्र एवं स्वाधीनता पर बेरहमी से प्रहार किया। यह राजनीतिक अपराध था।
इंदिरा गांधी की ओर से थोपे गए आपातकाल के अध्याय की शुरुआत 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा के निर्णय से प्रारंभ होती है। 1971 के लोकसभा चुनावों में रायबरेली में इंदिरा का मुकाबला विपक्षी समाजवादी नेता राजनारायण से था। इंदिरा गांधी विजयी होती हैं, पर राजनारायण उनकी जीत को अदालत में चुनौती देते हैं।
उन्होंने उन पर अपने निजी सचिव एवं सरकारी अधिकारी यशपाल कपूर को चुनाव एजेंट बनाने, स्वामी अद्वैतानंद को 50 हजार रुपये घूस देकर निर्दलीय प्रत्याशी बनाने, वायुसेना विमानों का इस्तेमाल करने, चुनाव में डीएम और एसपी की अनुचित मदद लेने, वोटरों को शराब, कंबल बांटने आदि आरोप लगाए। जस्टिस सिन्हा ने श्रीमती गांधी का चुनाव रद कर छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया। उनके फैसले को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी और उन्हें पदोन्नति का भी प्रलोभन दिया गया था। वे टस से मस नहीं हुए।
हाई कोर्ट के फैसले के बाद नैतिकता का तकाजा था कि इंदिरा इस्तीफा देकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करतीं, पर 12 जून को ही भीड़ ने उनके आवास के समक्ष जस्टिस सिन्हा को सीआइए एजेंट बताकर नारेबाजी की। तब गुजरात और बिहार में कांग्रेस सरकारों के खिलाफ जारी आंदोलन को जेपी दिशा दे रहे थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय आने पर इंदिरा के त्यागपत्र की मांग लेकर विपक्षी दल लामबंद होने लगे और 25 जून को रामलीला मैदान, दिल्ली में सभा रखी गई। यह सभा 20 को होनी थी, पर जेपी के दिल्ली आने के पहले ही यहां आने वाली उड़ानें अचानक रद कर दी गईं।
अंततः सभा 25 जून को हुई। मैं लोकदल के प्रतिनिधि के रूप में वहां था। मंच का संचालन जनसंघ, जो बाद में भाजपा बनी, नेता मदनलाल खुराना कर रहे थे। जेपी ने इंदिरा सरकार को अवैध बताया और उनके इस्तीफे की मांग की तथा सरकारी कर्मियों एवं पुलिस वालों को ‘असंवैधानिक सरकार’ के आदेश न मानने को कहा। उन दिनों इंदिरा के बेटे संजय गांधी की सक्रियता बढ़ गई थी। वे आरके धवन, चौधरी बंसीलाल आदि से मिलकर विरोधियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई पर जोर दे रहे थे। कांग्रेस में एक गुट का नेतृत्व युवा नेता चंद्रशेखर कर रहे थे, जो जेपी से संवाद के समर्थक थे। उनके प्रयासों से जेपी की दो मुलाकातें श्रीमती गांधी से हुईं, पर वे बेनतीजा रहीं।
इंदिरा प्रेस के स्वतंत्र रुख से खफा थीं। 25 जून को रात 11:45 पर आपातकाल की घोषणा वाले अध्यादेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन के हस्ताक्षर कराए गए और अगली सुबह 6 बजे कैबिनेट की आपात बैठक बुलाकर उस पर मुहर लगाई गई। इंदिरा ने सुबह रेडियो संदेश दिया, ‘भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने की जरूरत नहीं है...।’ विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का सिलसिला 25 जून की मध्यरात्रि से कायम हो गया था। इन नेताओं की लिस्ट संजय गांधी और साथियों ने बनाई। तब अदालतों को भी निर्देश था कि बंदियों को जमानत न दी जाए।
आपातकाल के तहत अदालत जाने के अधिकार के साथ नागरिकों के कई मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। 25 जून की रात या फिर अगले दिन गिरफ्तार होने वालों में जेपी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, बीजू पटनायक, पीलू मोदी और राजनारायण आदि थे। यह सिलसिला कायम रहा। दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अखबारों के कार्यालयों की बिजली काट दी गई। 26 जून को दिल्ली से केवल वही अखबार दिखे, जिनके प्रेस बहादुरशाह जफर मार्ग पर नहीं थे। तमाम लोग 26 जून के बजाय 27 जून को जान पाए कि आपातकाल लग गया है। आपातकाल में सेंसरशिप के चलते कई संपादक-पत्रकार भी गिरफ्तार हुए और सरकार विरोधी समाचार छपने बंद हो गए।
(लेखक पूर्व सांसद हैं और आपातकाल में जेल में रहे)














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