[प्रो. लल्लन प्रसाद]। Coronavirus कोविड-19 ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को अव्यवस्थित कर दिया है। वर्ष 2008-09 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के बाद वर्ष 2020 में पुन: अप्रत्याशित असाधारण आर्थिक मंदी की स्थिति आ गई है। तब दुनिया की वित्त व्यवस्था चरमरा गई थी, आज पूरी अर्थव्यवस्था और मानव जाति का स्वास्थ्य एवं जीवन संकट में है। कलकारखाने, बाजार बंद हैं। आवागमन रुक गया है। पर्यटन, आयात-निर्यात, आंतरिकविदेशी व्यापार सब कुछ ठप हो गया है।

लॉकडाउन के कारण जीवन ठहर गया है। वर्ष 2008 में मंदी अमेरिका से शुरू हुई थी। वर्ष 2020 का संकट विश्व को चीन की देन है। दुनिया का कोई भी देश बचा नहीं है, जहां कोरोना वायरस पहुंचा नहीं है। विकसित देश इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं। भारत में समय रहते कदम उठा लिया गया जिससे क्षति अपेक्षाकृत कम हुई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार इससे निपटने के लिए विश्व की जीडीपी का दस प्रतिशत तक खर्च करना होगा। जी 20 के सदस्य देशों ने पांच खरब डॉलर की निधि गठित करने का निश्चय किया है।

कोरोना जनित कारणों से देश की जीडीपी नीचे जा रही है। अभी यह पांच प्रतिशत के आसपास है। विभिन्न रेटिंग एजेंसियों का वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अलग-अलग अनुमान है। जहां एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार यह चार प्रतिशत तक जा सकता है, वहीं एसीपी ग्लोबल रेटिंग 3.5 प्रतिशत, चार्टर्ड बैंक 2.7 प्रतिशत तक का अनुमान दे रही हैं। ये अनुमान भी इस आधार पर हैं कि अगली तिमाही से कोरोना का असर कम हो जाएगा और अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगेगी। शेयर बाजार की हालत भी पस्त है। शेयरधारकों को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसमें कब और कितना सुधार होगा इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

कारखानों के उत्पादन में भारी गिरावट आई है। आवश्यक वस्तुएं बनाने वाले कारखाने जो कुल विनिर्माण का करीब एक-तिहाई हिस्सा हैं, उसके अलावा कारखानों में या तो पूरा लॉकडाउन है या आंशिक रूप से उत्पादन हो रहा है। ऑटो उद्योग रोजगार का बड़ा साधन है, वह पूरी तरह से ठप है। यातायात सेवाएं बंद हैं। रेलें केवल आवश्यक वस्तुएं ढो रही हैं। घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद हैं। मेट्रो स्टेशनों पर ताला लगा है, कुछ सरकारी बसों को छोड़कर बस सेवाएं बंद हैं। होटल, रेस्टोरेंट और टूरिज्म से संबंधित सारे उद्योग एवं सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। खाने-पीने और दवा की दुकानों को छोड़कर खुदरा व्यापार नहीं के बराबर रह गया है जिससे करोड़ों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है।

खेतों में फसल तैयार है, किंतु किसान उसे अपने घरों तक नहीं ला पा रहे हैं। मंडी तक अनाज, सब्जियां, फल आदि लाने के साधनों की कमी है, सरकारी खरीद भी रुकी हुई है। विदेश व्यापार में गिरावट आई है, क्योंकि लॉकडाउन तकरीबन विश्वव्यापी है, आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर बाकी चीजों के ऑर्डर नहीं आ रहे हैं। हालांकि इसके कारण व्यापार घाटे में कमी आई है। विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट आई है जिससे विदेशी मुद्रा की बचत अवश्य हो रही है, तेल का भंडार बढ़ाने का भी अच्छा अवसर आया है। सरकारी राजस्व के अधिकांश स्रोत घटे हैं, जबकि खर्चों में व्यापक वृद्धि हुई है। मार्च महीने में जीएसटी वसूली 97,597 करोड़ रुपये हुई जो लक्ष्य से 27,403 करोड़ रुपये कम है। आयकर, कस्टम, टोल टैक्स और सभी राजस्व के स्रोतों से वसूली में कमी आएगी।

कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था और लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन पर जो भारी संकट आया है उससे निपटने के लिए सरकार ने एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है। इसके अंतर्गत विभिन्न मदों में खर्च किए जाने का प्रावधान है। इसके अलावा अन्य अनेक प्रावधान किए गए हैं जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-गरीबों के लिए पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल प्रति व्यक्ति तीन माह के लिए, जन-धन खाता धारकों के लिए 500 रुपये प्रति माह प्रति खाता तीन माह के लिए, मनरेगा के श्रमिकों को 182 की जगह 202 प्रति दिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से, गरीब वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं एवं दिव्यांगों को एक हजार रुपये का अनुदान, प्रधानमंत्री किसान योजना में अप्रैल में मिलने वाले दो हजार रुपये प्रति किसान की किश्त का अग्रिम भुगतान। इसके अलावा लघु, छोटे एवं मध्यम क्षेत्र के उद्यमियों को कारोबार के लिए कर्ज के ब्याज दर में तीन प्रतिशत तक की कमी एवं इन उद्योगों की परिभाषा में बदलाव किया जा रहा है, ताकि अधिक संख्या में ये उद्योग लाभान्वित हो सकें। करों की अदायगी एवं दिवालिया नियमों में कुछ ढील दी गई है।

लॉकडाउन के कारण नकदी की कमी न हो और उद्योगों तथा व्यक्तिगत कर्ज बैंक कम दर पर मुहैया करा सकें इसके लिए रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 90 बेसिक प्वाइंट की कटौती की है जो पिछले कुछ वर्षों की सबसे बड़ी कटौती है। सभी कर्जों की अदायगी पर तीन महीने का समय बढ़ा दिया गया है। रिजर्व बैंक के ये कदम वित्तीय व्यवस्था में 1.37 लाख करोड़ रुपये तक की बढ़ोतरी में सहायक होंगे।

कोरोना ने आज स्वास्थ्य क्षेत्र को सरकार की पहली प्राथमिकता बना दी है। इस क्षेत्र की मूलभूत सुविधाएं बढ़ाने के लिए 15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस धन का उपयोग अस्पतालों में आइसोलेशन वार्ड एवं आइसीयू बढ़ाने, वेंटिलेटर और डॉक्टरों के लिए पीपीई यानी पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट के निर्माण समेत हेल्थ वर्कर्स के प्रशिक्षण हेतु किया जाएगा। निजी क्षेत्र की कंपनियों को वेंटिलेटर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। चालीस हजार वेंटिलेटर बनाने के ऑर्डर भी दिए जा चुके हैं। यह सब बताता है कि सरकार अब स्वास्थ्य क्षेत्र को गंभीरता से ले रही है।

[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विवि]