श्रेयस-प्रेयस
श्रेय और प्रेय दो शब्द हैं। श्रेय पारलौकिक और आध्यात्मिक सुख है। वहीं प्रेय का अर्थ है सांसारिक सुख और ऐश्वर्य भोग। जो प्रिय लगे, जो हमें संसार से बांधे।
श्रेय और प्रेय दो शब्द हैं। श्रेय पारलौकिक और आध्यात्मिक सुख है। मनुष्य के जीवन का उद्देश्य ऐश्वर्य भोग नहीं है। उसे जिस आध्यात्मिक सुख को अंतिम समय में प्राप्त करना है, उसी को श्रेय कहते हैं। वहीं प्रेय का अर्थ है सांसारिक सुख और ऐश्वर्य भोग। जो प्रिय लगे, जो हमें संसार से बांधे। इस संसार की समस्त कामनाएं, ऐषणाएं, वासनाएं आदि। मनुष्य जिसे संसार सुख के लिए प्राप्त करे। श्रेय विराट का प्रत्यक्षीकरण है और प्रेय स्व का निजीकरण है, जैसे उपासना और आराधना। उपासना व्यक्तिगत पूजा है, आराधना सार्वलौकिक पूजा है। इसलिए प्रेयस व्यक्तिगत कामना की पूर्ति है, अनंत इच्छाओं की पूर्ति का प्रयास है और श्रेयस संपूर्ण मानवीय मूल्यों के लोक मंगलकारी विचारों को समझने का प्रयास है। मनुष्य जब तक कामनाओं में बंधा रहता है, तब तक पे्रयस के परिवेश में रहता है और ज्यों ही उसकी कामनाएं व्यापक बन जाती हैं, व्यष्टि से समष्टि की ओर चली जाती हैं, वह श्रेयस बन जाती हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है, स्वांत: सुखाय... अर्थात अपने सुख के लिए रामायण लिख रहा हूं, लेकिन उनका स्व, उनका स्वांत:पर बन गया, क्योंकि उनका स्व लोक मंगलकारी बन गया। स्व और पर विरोधी शब्द नहीं हैं। स्व का दायरा जब फैल जाता है, स्व का जब विस्तार हो जाता है, तब वह लोकमंगलकारी बन जाता है।
मनुष्य कोई कृति करता है, पुस्तक लिखता है, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल बनवाता है। पहले वह अपने सुख के लिए उसका निर्माण करता है, लेकिन जब उस निर्माण कार्य से जनकल्याण होने लगता है, तो वह उसका अपना सुख नहीं रहता। वह जनमानस का सुख बन जाता है। जब तक वह किसी व्यक्ति के हित के लिए था, तब तक वह प्रेयस था, लेकिन ज्यों ही यह जनकल्याण के लिए समर्पित हो गया तो यह श्रेयस बन गया। मनुष्य कृति करता है अपने लिए, लेकिन जब वह कृति लोक कल्याणकारी बन जाती है तो वह किसी व्यक्ति की नहीं रहती। कृति हमेशा जीवित रहती है। मनुष्य चला जाता है, लेकिन उसकी कीर्ति हमेशा जीवित रहती है। यह लोकमंगलकारी भाव है, वही श्रेयस है। श्रीकृष्ण की गीता, मात्र श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद है। युद्ध से भागते हुए एक योद्धा को श्रीकृष्ण ने समझाया है। यहां तक इन दोनों की व्यक्तिगत बातचीत है, लेकिन आज वह बातचीत पूरे विश्व ब्रह्मांड के लिए लोक मंगलकारी उपदेश बन गई है।
[ आचार्य सुदर्शन ]














कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।