घुसपैठ का असल मकसद
काफी अरसे से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि भारत की हिमालयी सीमा पर चीनी घुसपैठ का मकसद क्या है? भारत को नीचा दिखाना-उसकी असली औकात जतला देना या उसके छोटे पड़ोसियों को अपनी सामर्थ्य और प्रभुता से अभिभूत कर भारत का कद बौना करना? कुछ विश्लेषक यह भी सुझाते रहे हैं कि यह सब दंड इसलिए पेले जा रहे थे कि इसका लाभ अंतररा
काफी अरसे से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि भारत की हिमालयी सीमा पर चीनी घुसपैठ का मकसद क्या है? भारत को नीचा दिखाना-उसकी असली औकात जतला देना या उसके छोटे पड़ोसियों को अपनी सामर्थ्य और प्रभुता से अभिभूत कर भारत का कद बौना करना? कुछ विश्लेषक यह भी सुझाते रहे हैं कि यह सब दंड इसलिए पेले जा रहे थे कि इसका लाभ अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में उठाया जा सके। ऊर्जा सुरक्षा हो या खाद्य सुरक्षा अथवा पर्यावरण सुरक्षा यह बात जगजाहिर है कि भारत और चीन ही कई मंचों पर एक दूसरे के प्रमुख प्रतिद्वद्वी हैं। साइबेरिया से ले कर अफ्रीका तथा लातीनी अमेरिका तक। इसके अलावा भारत का क्रमश: अमेरिका के साथ करीबी रिश्ते कायम करने की कोशिश चीन को दूरगामी सामरिक दृष्टि से आशंकित करता रहा है। इसीलिए पाकिस्तान के साथ उसकी भारत विरोधी जुगलबंदी हमेशा जारी रही है। विडंबना यह है कि संबंधों को सामान्य बनाने की एकतरफा पेशकश से दोस्ती कायम करने के हमारे नादान प्रयासों ने इस रिश्ते की असलियत के बारे में खतरनाक गलतफहमी पैदा की है। इस घड़ी अगर हालात अचानक विस्फोटक बन रहे हैं तो यह सरकार की लापरवाही और अदूरदर्शिता का ही नतीजा है।
आज इस बारे में शक की कोई गुंजाइश नहीं बची है कि चीन के इरादे क्या हैं? वह विवादस्पद जमीन पर निर्णायक तरीके से अपना कब्जा करना चाहता है। वैसे भी 1962 के युद्ध के बाद अपने लिए सामरिक महत्व की सारी भूमि पर उसी का अधिकार रहा है-लद्दाख में अक्साई चिन वाले इलाके में, गुलाम कश्मीर की गिलगिट एजेंसी में। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश के निर्जन दुर्गम विस्तार में उसकी घुसपैठ को जानबूझ कर हमारी सरकार अनदेखी करती रही है। उस प्रदेश में हमारी संप्रभुता को चीन लगातार चुनौती देता रहा है। कभी दलाई लामा के किसी मठ में प्रवचन पर आपत्ति दर्ज करा कर तो कभी भारतीय प्रधान मंत्री को यह चेतावनी दे कर कि उनका अरुणाचल दौरा भारत चीन संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है। यह बात भी भुलाई नहीं जा सकती कि इस प्रदेश में जलविद्युत परियोजना के लिए एशियाई बैंक की सहायता पर 'वीटो' जैसे निषेध का प्रयोग चीन कर चुका है। उसकी घुसपैठ भारत की वर्तमान कमजोरी का लाभ उठा कर भीतर तक धंसने की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। बाद में दो कदम आगे पैर पसार कर एक कदम पीछे हटना स्वीकार करने के बाद भी वह फायदे में ही रहेगा। इसके अलावा निर्वीर्य भारतीय नेताओं से इस 'रियायत' की बराबरी करने के लिए इतना ही पीछे हटने की मांग जायज समझी जाएगी। चीन वापसी के बाद भी हमारी भूमि में बना रहेगा जबकि हम अपनी कब्जे वाली जमीन उसके हवाले किश्तों में करते जाएंगे-सद्भावना बरकरार रखने या आर्थिक संबंधों कि नजाकत का बहाना बना। सबसे विचित्र बात तो यह है कि हमारे मौजूदा विदेश मंत्री यह समझाते हैं कि वास्तव में इस सीमा क्षेत्र में सरहद का मानचित्रण अस्पष्ट है और इसी कारण घुसपैठ अचानक-अनायास संभव है। उन्हें यह नहीं सूझता कि यह घुसपैठ हमेशा एकतरफा ही क्यों होती है और पकड़े जाने पर चीनी अपनी भूल कबूल कर वापस लौटने की जगह धक्का-मुक्की, धौंस-धमकी का सहारा क्यों लेते हैं?
-प्रो पुष्पेश पंत,
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।