जागरण संपादकीय: अनुसंधान को विकास से जोड़ने की पहल, अपने मिशन की दिशा में बढ़ता हुआ दिख रहा एएनआरएफ
1990 के बाद उदारवादी अर्थव्यवस्था लागू होने के बाद भारत में विकास का स्वरूप बदला एवं उसकी गति तेज हुई या यूं कहें तब से भारत में विकास का विमर्श ही बदल गया। 2014 में मोदी द्वारा देश की सत्ता संभालने के बाद विकास की यह गति और तेज हुई। विकास को एक मिशन मोड में लाया गया। इसका विस्तार हुआ और इसके स्वरूप एवं प्रक्रिया में नया मोड़ आया।
बद्री नारायण। पिछले दिनों नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की पहली बैठक हुई। इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने भी शिरकत की। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को पांच फरवरी, 2024 को एनआरएफ एक्ट बना कर स्थापित किया गया है। इसे “अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन” यानी एएनआरएफ नाम दिया गया है। एएनआरएफ अब अपने मिशन की दिशा में बढ़ता हुआ दिख रहा है। उम्मीद है कि यह भारत में विकास एवं शोध के सूत्रों को जोड़ने का काम करेगा।
विकास और शोध में गहरा संबंध होता है। सतत शोध विकास को दिशा देता है। यह जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का सतत मूल्यांकन कर विकास की गति, प्रक्रिया एवं प्रभावों की पड़ताल करता रहता है। भारत में आजादी के बाद से विकास की अवधारणा विकसित करने का काम राजनीतिक नेतृत्व, नौकरशाही, विद्वानों की टीम सार्थक रूप से करती रही है। इसमें शोध की भूमिका ज्यादातर परियोजनाओं के महज मूल्यांकन तक ही सीमित रहती थी। देश में विकास परियोजनाओं को संकल्पित करने एवं उनको कार्यान्वित करने में शोध की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण नहीं मानी जाती थी। साथ ही विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में कुछ केंद्र, कुछ व्यक्तित्वों के इर्द-गिर्द ही शोध का दायरा सीमित रहता था।
1990 के बाद उदारवादी अर्थव्यवस्था लागू होने के बाद भारत में विकास का स्वरूप बदला एवं उसकी गति तेज हुई या यूं कहें तब से भारत में विकास का विमर्श ही बदल गया। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश की सत्ता संभालने के बाद विकास की यह गति और तेज हुई। विकास को एक मिशन मोड में लाया गया। इसका विस्तार हुआ और इसके स्वरूप एवं प्रक्रिया में नया मोड़ आया। इसमें राज्यसत्ता, सरकार, जनता, नेतृत्व के साथ ही उद्योग, उदारशील समूहों एवं कारपोरेट भी नए भागीदार बन कर उभरे। विकास के इस नए परिदृश्य में देश में शोध की जरूरत एक नए सपोर्ट इंजन के रूप में सबको महसूस हो रही थी। इसी जरूरत को महसूस करते हुए मोदी सरकार ने भारत में शोध को विकास की एक आत्मिक अंत:दृष्टि के रूप में विकसित करने के लिए अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन स्थापित करने का काम प्रारंभ किया। इसकी अवधारणा का एक और मूलाधार देश में शोध को संयोजित कर उसे बड़े विचार एवं नवोन्मेष के क्षेत्र के रूप में बदलना है।
यह देखना सुखद है कि अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन ने भारत में विकास को दिशा देने, उसे “आइडिया सपोर्ट” देकर उसे प्रभावी बनाने एवं उसकी सतत समीक्षा कर उसके प्रभावों को सार्थक बनाने का काम करना प्रारंभ कर दिया है। सरकार की इस पहल ने देश में एक तो अभी तक बिखरे पड़े एवं अनेक तरह के शोध के प्रयासों को एकजुट एवं समायोजित कर उसमें नए भागीदारों को जोड़कर उसे सम्यक रूप से नियोजित कर विकसित भारत के महाअभियान से जोड़ने का काम किया है।
दूसरा, इससे देश में शोध का न्याय संगत एवं जनतांत्रिक वितरण भी संभव हो पाएगा। तीसरा, इससे इंडस्ट्री, कारपोरेट, प्राइवेट शोध फाउंडेशन सभी एक मंच पर आकर एक साथ अपने विचार, आंकड़े एवं संसाधनों का आदान-प्रदान कर देश में विकसित भारत के महाअभियान में अपना योगदान दे पाएंगे। इससे अनेक प्रकार के शोध के संसाधन एवं स्रोत जो इधर-उधर बिखरे हैं, सब एक होकर विज्ञान, तकनीक एवं सामाजिक शोध के परिक्षेत्र को प्रभावी बना पाएंगे। एएनआरएफ की शीर्ष समिति शोध की महत्वपूर्ण संस्थाओं के शोध लीडर शामिल हैं। विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र के अनेक बड़े विद्वान इस अवधारणा को जमीन पर उतारने के कार्य में लगे हैं। इसका एक महत्वपूर्ण लक्ष्य नवोन्मेषी शोध का एक ऐसा परिक्षेत्र विकसित करना है, जिसमें राज्य निर्देशित विकास की अवधारणा, परियोजनाओं एवं प्रयासों को जनता, समाज एवं राष्ट्र के जीवन को बदलने में सर्वाधिक उपयोगी साबित हो सके।
यह जानना जरूरी है कि एएनआरएफ न केवल विज्ञान, तकनीक, औद्योगिक उत्पादन, चिकित्सा के क्षेत्रों में ही शोध के लिए न्याय संगत, नवोन्मेषी एवं जनतांत्रिक इकोसिस्टम रचने का काम करेगा, बल्कि यह लिबरल आर्ट, समाज विज्ञान जैसे शोध को मानवीय एवं सामाजिक आधार देने वाले ज्ञान के क्षेत्रों में भी बदलाव लाने की कोशिश करेगा। इसके कारण नवोन्मेषी शोधों का एक ऐसा माहौल बन सकेगा, जिसमें भारतीय विश्वविद्यालयों एवं शिक्षा संस्थानों में शोध की पारंपरिक प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन हो सकेगा। इससे विश्वविद्यालयों में आमजन के जीवन से जुड़े मुद्दों और जरूरतों पर शोध के कार्य तो होंगे ही, साथ ही आम आदमी की लोक मेधा एवं जन-अंतर्दृष्टि को भी आकादमिक शोधों में महत्व मिलेगा। इससे शोध जगत में समाज को स्वयं एक शोध की प्रयोगशाला के रूप में देखने की प्रवृत्ति विकसित होगी। इससे एक ऐसा अकादमिक इकोसिस्टम बनेगा, जिसमें जन-विज्ञान, लोक तकनीकी, लोक ज्ञान, लोक चिकित्सकीय व्यवहारों को महत्व मिलेगा, जो एक तरह से राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का मूल आत्मा है। दुनिया के विकसित देशों में ऐसे रिसर्च फाउंडेशन कई दशकों से कार्य करते हुए उनके विकास को दिशा एवं दृष्टि दे रहे हैं। भारत में भी इधर-उधर बिखरे एवं अनियोजित ऐसे प्रयासों को एक सूत्र में जोड़कर विकसित भारत के मिशन में उपयोग किया जा सकता है। साथ ही इसके बनने से भारत में अकादमिक संस्थानों के शोधों एवं सरकार नियोजित विकास के बीच की दूरी कम होगी एवं उनके बीच संवाद होगा।
प्रसिद्ध फ्रांसीसी विचारक मिशेल फुको ने कहा है कि नालेज ही पावर है। इस वाक्य को थोड़ा बदल दें तो कहा जा सकता है कि नालेज ही विकास का आधार है अर्थात ज्ञान ही शक्ति का मूल स्रोत है। यह ज्ञान हमें अनुसंधान से मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित बनाने का लक्ष्य रखा है। एएनआरएफ उस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है।
(लेखक जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक हैं)