प्रो. निरंजन कुमार: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में 29 जुलाई, 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का अवतरण हुआ। नई सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिस्थितियों से निपटने के लिए बनी इस नीति को देश-दुनिया में सराहा गया। इसके बावजूद, विभिन्न हलकों में इसकी सफलता को लेकर संदेह भी व्यक्त किया गया। ऐसे में, इस नीति के तीन वर्ष पूरे होने पर इसका लेखाजोखा प्रस्तुत करना आवश्यक है। ऐसा करने से पहले हमें यह समझना होगा कि इस नीति के प्रमुख उद्देश्य और लक्ष्य क्या हैं? इस शिक्षा नीति के चार वैचारिक आधार स्तंभ हैं।

भारतीय ज्ञान परंपरा, महात्मा गांधी का विजन, डा. आंबेडकर का सामाजिक न्याय और आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न। इन्हें साकार करने में विद्यार्थी को एक प्रमुख अंशभागी बनाया गया है। नीति के आधारभूत सिद्धांतों विशेषकर उच्चतर शिक्षा के स्तर पर दृष्टिपात करें तो विद्यार्थियों के लिए लचीलापन, शैक्षणिक धाराओं के बीच अलगाव की समाप्ति, बहु-विषयकता और समग्र शिक्षा, रटने के बजाय वैचारिक समझ और अनुभवजन्य ज्ञान पर जोर, बहुभाषावाद, कौशल विकास, व्यावसायिकता और रोजगारपरकता, शोध एवं नवाचार के साथ-साथ मानवीय एवं संवैधानिक मूल्यों पर बल और चरित्र निर्माण एवं छात्रों का समग्र विकास आदि एनईपी के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं।

इन तत्वों को यथार्थ के धरातल पर मूर्त रूप देना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन शिक्षा मंत्रालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अन्य अंशभागियों के समग्र प्रयासों से इस मोर्चे पर प्रगति के संकेत स्पष्ट दिखते हैं। फिर भी, जहां तमाम शैक्षणिक संस्थाएं अभी भी दुविधा में हैं कि शिक्षा नीति को कैसे क्रियान्वित करें, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय यानी डीयू इसमें एक पथप्रदर्शक की भूमिका में दिखता है। डीयू ने इस नीति को शब्द और भाव दोनों ही स्तरों पर व्यवस्थित, संगठित और समग्रता से लागू किया है। यहां पहले चरण में इसका कार्यान्वयन स्नातक स्तर पर हुआ है। अब अगले चरण की तैयारी है।

लचीलापन एनईपी, 2020 की एक प्रमुख विशेषता है ताकि अपनी प्रतिभा एवं अभिरुचि के अनुरूप छात्र पाठ्यक्रम चुन सकें। इस संदर्भ में डीयू के नवनिर्मित करिकुलम फ्रेमवर्क में छात्रों को न केवल मनोनुकूल विषय से जुड़े पाठ्यक्रम चुनने का अधिकार है, बल्कि सामान्य ऐच्छिक कोर्स में भी वह अन्य स्ट्रीम के कोर्स पढ़ सकेंगे। यानी विज्ञान वाला छात्र मानविकी से संगीत या भूगोल अथवा कामर्स के मैनेजमेंट या मार्केटिंग का कोर्स पढ़ सकता है। रुचि के विषय के विशेष ज्ञान के साथ-साथ बहुविषयक ज्ञान प्राप्त करने के पूरे अवसर उपलब्ध होंगे।

खास बात यह है कि पूरा पाठ्यक्रम इस तरीके से विन्यस्त है कि हर वर्ष की पढ़ाई अपने में पूर्ण है। किसी कारणवश पढ़ाई छूट जाती है तो डीयू एक साल बाद उसे सर्टिफिकेट और दो वर्ष बाद डिप्लोमा दे देगा। यही नहीं, एक बार छोड़कर जाने के बाद वापस आकर अपनी शेष पढ़ाई को पूरा करने का अवसर भी मिलेगा। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण हेतु एनईपी, 2020 कौशल विकास, व्यावसायिकता और रोजगारपरकता पर बल देती है। डीयू इस दिशा में भी पूरी तरह सक्रिय है। यहां हर स्ट्रीम के विद्यार्थी को कौशल शिक्षा मिलेगी।

विश्वविद्यालय में संचालित सौ से अधिक कौशल विकास पाठ्यक्रम स्वरोजगार को विस्तार देने का निमित्त बनेंगे। विद्यार्थी एक उद्यम खड़ा करेगा तो डीयू उसे एक कोर्स के रूप में मानकर क्रेडिट यानी अंक प्रदान करेगा। बहुभाषावाद भी शिक्षा नीति का एक प्रमुख बिंदु है। इस मोर्चे पर भी डीयू अग्रणी है। संविधान के अनुच्छेद आठ में उल्लिखित सभी भारतीय भाषाओं की पढ़ाई डीयू में जारी है। राष्ट्र की उन्नति में शोध एवं नवाचार की अहम भूमिका को समझते हुए एनईपी में इस पर बहुत जोर है। इसकी महत्ता को समझते हुए डीयू ने शोध एवं नवाचार को स्नातक स्तर पर ही पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया है।

छात्रों का समग्र विकास मानवीय एवं नैतिक मूल्यों के अभाव में संभव नहीं। पश्चिमी जीवनशैली, तकनीक में सिमटती दुनिया, रियल के बजाय वर्चुअल लाइफ, शारीरिक खेलकूद की जगह गैजेट गेम्स और बढ़ते एकाकीपन आदि ने युवाओं को एक खतरनाक गिरफ्त में लेना शुरू किया है। इसके दुष्परिणाम से आकार लेने वाले असंतुलित व्यक्तित्व समाज एवं देश के लिए अनुत्पादक, बोझ और खतरनाक साबित होंगे। इस समस्या के समाधान के लिए डीयू की मूल्य संवर्धन समिति ने अभिनव पाठ्यक्रमों तैयार किए हैं। इनमें छात्रों के चरित्र निर्माण तथा समग्र विकास और साथ ही उनमें भारतीय ज्ञान परंपरा और मानवीय मूल्यों का सम्यक संचार करने के लिए गांधीवादी पद्धति का अनुसरण करते हुए ऐसे वैल्यू एडिशन पाठ्यक्रम बनाए हैं जिनमें 50 प्रतिशत अध्ययन व्यावहारिक और अनुभवजन्य है।

यहां सभी पाठ्यक्रम क्रेडिट कोर्स हैं और विज्ञान, मानविकी और वाणिज्य सभी के छात्रों के लिए चार सेमेस्टर पढ़ना अनिवार्य है। एनईपी में रीस्किलिंग अर्थात पुनर्शिक्षण की भी बात है। इस संदर्भ में अपनी योग्यता वृद्धि योजना (सीईएस) के तहत डीयू अधिक उम्र वालों को भी प्रवेश देगा जिससे वे स्वयं की योग्यता में वृद्धि कर सकें। अध्यापन-शोध की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एनईपी में ‘क्लस्टर’ की परिकल्पना योजना है। इसमें एक संस्थान के विद्यार्थी किसी विषय या कोर्स पढ़ने के लिए दूसरे संस्थान में जा सकेंगे। इस संदर्भ में भी डीयू ने पहल करते हुए विभिन्न कालेजों के लिए ‘क्लस्टर’ माडल बनाया है।

नि:संदेह, एनईपी के पूर्ण कार्यान्वयन में अभी भी तमाम चुनौतियां शेष हैं। आर्थिक संसाधनों की कमी, आधारभूत संरचना की समस्याएं, शोध एवं विमर्श की भारतीय दृष्टि का अभाव, शोध के अहम पड़ाव पीएचडी में प्रवेश प्रक्रिया की सीमा, विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ समन्वय आदि कई बिंदु हैं, जिन पर गंभीरता से विचार करना होगा। इसके बावजूद समग्रता में देखें तो छात्रों को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए निर्मित एनईपी-2020 का कार्यान्वयन डीयू ने श्रेष्ठ तरीके से किया है। यह अन्य उच्चतर शिक्षण संस्थानों के लिए एक आदर्श सिद्ध होगा।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में डीन, योजना एवं एनईपी सेल के सदस्य हैं)