विचार: साकार होता भविष्य का सैन्य बल, रूद्र जैसी ब्रिगेड से विभिन्न सैन्य क्षमताओं में बेहतर समन्वय स्थापित होगा
इस पर भी ध्यान देना होगा कि इसके माध्यम से किस प्रकार की विशिष्ट क्षमताओं का विकास किया जा रहा है। इसमें कमांड एवं कंट्रोल के स्तर पर भी स्पष्टता और संतुलन साधने की आवश्यकता होगी जिसमें केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण की संकल्पना को इस प्रकार मूर्त रूप दिया जाए कि रूद्र ब्रिगेड का कमांडर पूरी स्वतंत्रता के साथ काम कर सके।
जगतबीर सिंह। बीते दिनों सेना में रूद्र ब्रिगेड के गठन की घोषणा हुई। यह एक ‘आल-आर्म्स ब्रिगेड्स’ होगी। इसका अर्थ है कि इसमें विभिन्न प्रकार की युद्धक इकाइयों को एक साथ जोड़ा जाएगा। कारगिल विजय दिवस के अवसर पर इसकी घोषणा करते हुए सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा कि यह भारतीय सेना के आधुनिकीकरण और सैन्य बलों के कायाकल्प की योजना का हिस्सा है।
उन्होंने बताया कि आल-आर्म्स ब्रिगेड और लीथल स्पेशल फोर्सेज इकाइयों का गठन भविष्य के सैन्य बलों की संकल्पना के अनुरूप ही किया जा रहा है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार दो इन्फैंट्री ब्रिगेड को पहले ही रूद्र ब्रिगेड में बदला जा चुका है। रूद्र ब्रिगेड का गठन भारतीय सेना की पूर्ववर्ती इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स यानी आइबीजी के आधार पर ही किया जा रहा है।
इसी कड़ी में ‘भैरव’ कमांडो यूनिट एक लीथल स्पेशल फोर्स यूनिट होगी। इसे त्वरित हमले और तत्काल सीमा तैनाती के उद्देश्य को ध्यान में रखकर विकसित किया जाएगा। कुल मिलाकर, विभिन्न कांबैट, कांबैट सपोर्ट और लाजिस्टिक अमले का एकीकरण बहुत सार्थक पहल है, जिससे बहुस्तरीय मोर्चे पर लड़ाई में मदद मिलेगी।
रिपोर्टों के अनुसार रूद्र ब्रिगेड अलग-अलग बटालियनों और रेजिमेंटों से मिलकर बनेगी। इसकी संरचना कार्य विशेष की प्रकृति या परिचालन आवश्यकताओं के आधार पर तय होगी। ये ड्रोन सर्विलांस उपकरणों और एरिया सेचुरेशन हथियारों से भी लैस होंगी, जिससे इनकी क्षमताएं खासी बढ़ जाएंगी।
उदाहरण के लिए पर्वतीय इलाकों में यह दो इन्फैंट्री बटालियनों और आर्टिलरी रेजिमेंटों से मिलकर बनी हो सकती है। मैदानी इलाकों में यह दो आर्मर्ड रेजिमेंट, एक मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री बटालियन, एक सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टिलरी रेजिमेंट और एक एयर डिफेंस रेजिमेंट से मिलकर बन सकती है, जो आक्रामक परिचालन के दृष्टिकोण से अधिक उपयुक्त होगी।
नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पर यह स्पेशल फोर्सेज एलीमेंट्स के साथ इन्फैंट्री बटालियनों के रूप में हो सकती है। इस संदर्भ में यह एक प्रश्न अवश्य उठ रहा है कि क्या रूद्र ड्रोन और आइएसआर यानी आर्मी इंटेलिजेंस, सर्विलांस एंड रिकानिसंस अर्थात सैन्य खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं के साथ मौजूदा स्वतंत्र ब्रिगेडों का ही संशोधित एवं उन्नत स्वरूप है?
अमेरिका, रूस और चीन जैसे सामरिक रूप से शक्तिशाली देशों में सैन्य बलों के बीच बेहतर समन्वय के लिए ऐसी इकाइयां स्थापित हैं। भारत में भी इसके लाभ देखने को मिलेंगे। जब आर्मर, इन्फैंट्री, मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री बटालियन, इन्फैंट्री, आर्टिलरी, एयर डिफेंस आर्टिलरी, स्पेशल फोर्स और ड्रोन एक ही ब्रिगेड के अंतर्गत संचालित होंगे तो सैन्य बलों में बेहतर समन्वय सुनिश्चित होगा। इससे त्वरित तैनाती की सुविधा से लेकर सामरिक लचीलापन भी मिलेगा।
कुछ विशेष भौगोलिक क्षेत्रों को ध्यान में रखकर की गई तैयारी से वहां आक्रामक या रक्षात्मक कार्रवाई को प्रभावी रूप से संपादित करना भी सुगम हो जाएगा। वैसे भी मौजूदा दौर में जब तकनीक ने समर क्षेत्र में अपनी पैठ गहरी बना ली है, तब ड्रोन निगरानी, एरिया सेचुरेशन वेपंस जैसी प्रणालियों की उपयोगिता काफी अधिक बढ़ गई है। आर्टिलरी, एयर डिफेंस, इंजीनियर और कम्युनिकेशन के साथ-साथ अंतर्निहित रसद आपूर्ति के साथ गठित समर्पित कांबैट सहायता जैसी पहल परिचालन स्वतंत्रता के साथ ही स्थिरता भी प्रदान करेगी। प्रस्तावित एकीकृत युद्धक समूह-आइबीजी तत्परता बढ़ाने के साथ ही विकल्प भी बढ़ाएंगे।
वैसे तो सेना इस प्रकार के पुनर्गठन को लेकर काफी लंबे समय से काम कर रही है, लेकिन जिस समय इसकी घोषणा हुई, उसे लेकर कुछ लोग इसे आपरेशन सिंदूर के बाद के घटनाक्रम से भी जोड़कर देख सकते हैं। यह पुनर्गठन केवल खतरे की धारणाओं और युद्ध की प्रकृति में आ रहे परिवर्तनों पर ही आधारित नहीं, बल्कि यह डोकलाम और गलवन के साथ ही नियंत्रण रेखा पर जारी संघर्षों से मिली सीख को देखते हुए भी किया जा रहा है।
रूद्र के माध्यम से त्वरित, बेहतर आइएसआर और संयुक्त सैन्य शक्ति के दम पर सामरिक बढ़त संभव हो सकेगी। इसका स्वरूप आधुनिक एवं लचीला है, लेकिन इसे ऐसे बहुउद्देश्यीय टास्क फोर्स के रूप में ढालना होगा, जो हवाई हमले, साइबर एवं इलेक्ट्रानिक वारफेयर के साथ ही दुश्मन के रडार को बंद करने में भी सक्षम हो सके।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए विभिन्न हथियार प्रणालियों के बीच सुसंगति आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य हो चली है। इसमें धरती और आसमान से संचालित होने वाली प्रणालियों के साथ ही स्पेस और साइबर जैसे मोर्चों को भी साधना होगा। हालांकि प्रत्येक नई क्षमताएं, जिनका इसमें एकीकरण होगा, उस स्थिति में यह प्रक्रिया कुछ जटिल भी हो जाएगी।
रूद्र ब्रिगेड की सफलता की कुंजी उसके प्रशिक्षण में निहित होगी। साथ ही इस पर भी ध्यान देना होगा कि इसके माध्यम से किस प्रकार की विशिष्ट क्षमताओं का विकास किया जा रहा है। इसमें कमांड एवं कंट्रोल के स्तर पर भी स्पष्टता और संतुलन साधने की आवश्यकता होगी, जिसमें केंद्रीकरण एवं विकेंद्रीकरण की संकल्पना को इस प्रकार मूर्त रूप दिया जाए कि रूद्र ब्रिगेड का कमांडर पूरी स्वतंत्रता के साथ काम कर सके।
उसे पर्याप्त स्वायत्तता प्राप्त हो, जिससे वह परिचालन के लिए निर्णायक बिंदुओं को चिह्नित करते समय पर अपनी सभी क्षमताओं को जुटा सके। अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति के लिए दुश्मन से निपटने के लिए भी उसे आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिए।
(लेखक सेवानिवृत्त मेजर जनरल एवं यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में फेलो हैं)
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