हृदयनारायण दीक्षित: मंदिर सीमेंट और कंक्रीट से निर्मित स्थापत्य मात्र नहीं होते। प्रत्येक मंदिर का एक उद्देश्य होता है। विशेष वास्तु होता है। मंदिर में स्थापित देवता की प्राण प्रतिष्ठा होती है। एक इतिहास होता है। संस्कृति भी होती है। नया संसद भवन ऐसा ही सत्य, शिव और सुंदर आधारित जीवंत स्थापत्य है। भारत का समग्र वैभव इस भवन का उद्देश्य है। यह राष्ट्र देवता को अर्पित है। भवन में प्रदर्शित लगभग 5000 कलाकृतियां वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के लोकतांत्रिक विकास की गाथा हैं। समुद्र मंथन पौराणिक इतिहास की घटना है। इसकी कलाकृति मनमोहक है।

देवों और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। प्राचीन भारतीय तत्ववेत्ताओं ने संसार को सागर कहा है। संसार में विष और अमृत दोनों हैं। शिव विषपायी हैं। मनुष्य अमृत के प्यासे हैं। अमृत प्यास ही सागर मंथन का कारण है। मंथन से प्राप्त विष शंकर पी गए। मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ को लेकर आपाधापी हो गई। गरुण अमृत कुंभ लेकर भाग निकले। भागमभाग में अमृतघट चार जगह छलका। स्कंद पुराण के अनुसार हरिद्वार, प्रयाग, धारा नगरी (उज्जैन) और नासिक में गोदावरी के तट पर अमृत गिरा। ये स्थान भारतीय संस्कृति में अजर अमर हो गए। संसद भी इसी तरह वैचारिक सागर मंथन का तीर्थ है।

नए संसद भवन की कृतियों में अखंड भारत का भाव भी है। तक्षशिला दुनिया का सबसे बड़ा और प्राचीन शिक्षा केंद्र रहा है। संप्रति देश विभाजन के कारण पाकिस्तान में है। एक भित्तिचित्र में चाणक्य हैं। कौटिल्य ने दुनिया का पहला अर्थशास्त्र लिखा था। राजनीतिक विवेचन के लिए इसकी तुलना मैक्यावली की 'प्रिंस' से की जाती है। एक भित्तिचित्र में ओडिशा के कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर को भी दर्शाया गया है। इसे यूनेस्को ने बहुत पहले ही विश्व विरासत घोषित किया था। एक दीर्घा में स्वाधीनता संग्राम के योद्धा महात्मा गांधी भी प्रदर्शित किए गए हैं। राष्ट्रीय एकीकरण के महानायक सरदार पटेल भी यहां हैं। संविधान के शिल्पी डा. बीआर आंबेडकर भी संसद भवन की कलाकृतियों में विराजमान हैं। डा. आंबेडकर ने आर्यों के विदेशी होने के सिद्धांत को चुनौती दी थी। कहा था कि आर्य भारत के ही निवासी हैं।

नए संसद भवन में प्राचीनता और आधुनिकता का अंतर्संगीत है। भारतीय संस्कृति में हजारों वर्ष प्राचीन निरंतरता है। मार्क्सवादी लेखक डीडी कोसंबी ने लिखा है, 'मिस्र की महान अफ्रीकी संस्कृति में वैसी निरंतरता नहीं है जैसी भारत में 3000 या उससे भी अधिक वर्षों में देखते हैं। मिस्री या मेसोपोटामियाई संस्कृतियों का अतीत अरबी संस्कृति के पीछे नहीं जाता। इसके विपरीत भारत की ओर से बल प्रयोग के बिना ही भारतीय धर्म दर्शन का चीन और जापान में स्वागत हुआ। भारतीय संस्कृति की बड़ी विशेषता है इसकी निरंतरता।' इस संस्कृति का विकास दर्शन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हुआ था। इसमें कालबाह्य को छोड़ने और कालसंगत को अपनाने की आश्चर्यजनक क्षमता है।

वैदिक साहित्य प्रश्न परंपरा एवं वाद, विवाद, संवाद से भरा पूरा है। सभा और समिति ऋग्वेद में हैं। अथर्ववेद में हैं। महाकाव्यों में हैं। कलाकृतियों में प्रश्न और तर्क परंपरा की वैदिक प्रतिनिधि गार्गी भी हैं। उत्तरवैदिक काल के महाज्ञानी याज्ञवल्क्य से पूछे गए गार्गी के प्रश्न अतिमहत्वपूर्ण हैं। गार्गी ने पूछा था, 'सब जल में ओत प्रोत हैं। जल किस तत्व में ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'वायु में।' गार्गी ने पूछा, 'वायु किसमें ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'अंतरिक्ष में।' गार्गी ने पूछा, 'अंतरिक्ष किसमें ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'गंधर्व लोक में।' गार्गी ने पूछा, 'गंधर्व लोक किसमें ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य का उत्तर था, 'आदित्य लोक में।' गार्गी ने पूछा, 'आदित्य लोक किसमें ओत प्रोत है?' उत्तर मिला, 'चंद्र लोक में।'

गार्गी ने प्रश्न किया, 'चंद्र लोक किसमें ओत प्रोत है।' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'नक्षत्र लोक में।' 'तब नक्षत्र लोक कहां ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'देवलोक में।' गार्गी ने पूछा, 'देवलोक किसमें ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, 'इंद्र लोक में।' अगला प्रश्न था, 'इंद्रलोक कहां ओत प्रोत है?' उत्तर मिला, 'प्रजापति लोक में।' गार्गी ने फिर पूछा, 'प्रजापति लोक कहां ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'ब्रह्मलोक में।' गार्गी ने पूछा, 'ब्रह्मलोक कहां ओत प्रोत है?' याज्ञवल्क्य ने कहा, 'यह अतिप्रश्न है। तुझे अतिप्रश्न नहीं करना चाहिए।' संसद में भी प्रश्न स्वाभाविक हैं। अतिप्रश्न नहीं। अतिप्रश्न संसदीय कार्यवाही में बाधक होते हैं।

नए भवन में अध्यक्षीय आसान के पास राजदंड सेंगोल है। लोकसभा कक्ष का आंतरिक भाग राष्ट्रीय पक्षी मोर आधारित है। राज्यसभा के कक्ष में राष्ट्रीय पुष्प कमल को दर्शाया गया है। कमल भारत का सांस्कृतिक प्रतीक है। अथर्ववेद के ऋषि अथर्वा ने भूमि की स्तुति की है कि, 'हे माता आपकी संपूर्ण गंध कमल में प्रकट हुई है। इस गंध को देवताओं ने सूर्य पुत्री के विवाह में फैलाया था।' संगीत गैलरी में देश की नृत्य, गीत और संगीत परंपराओं को प्रदर्शित किया गया है। उस्ताद अमजद अली खान, बांसुरी वादक पं. हरी प्रसाद चैरसिया, शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, सितार के पं. रविशंकर आदि संगीतकारों के वाद्ययंत्र भी इस गैलरी में सम्मिलित हैं।

नए भवन में प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण साम्राज्यों के भित्तिचित्र भी हैं। दक्षिण भारत के चोल, पांड्य, द्रविड़ को दिखाया गया है। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक की सांस्कृतिक धारा प्रदर्शित की गई है। अलग-अलग भंगिमाओं के माध्यम से प्राचीन नृत्य कला को दर्शाया गया है। भारतीय विचार और संस्कृति का प्रवाह उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में वर्तमान ईरान से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया तक विस्तृत है। यह गांधार में भी प्रवाहित थी। खोतान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, थाइलैंड, कंबोडिया, चंपा और मलेशिया तक विस्तृत थी। इंडोनेशियाई आज भी इसी संस्कृति से जुड़े हुए हैं।

कथित उदारवादी प्राचीनता को पिछड़ापन मानते हैं और उसे कालबाह्य घोषित करते हैं। प्राचीनता को आधुनिक बनाकर और आधुनिकता को प्राचीनता से जोड़कर ही भारत के वैभव का मार्ग बनाया जा सकता है। सारा पुराना कालबाह्य नहीं होता। सारा नया स्वागत योग्य नहीं होता। प्राचीनता को युगानुकूल और आधुनिकता को परंपरानुकूल बनाना होगा। नए संसद भवन के निर्माण में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम है। यह लोकतंत्र का आधुनिक तीर्थ बनकर उभरा है। प्रेरणादायी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका लोकार्पण किया। इसके पूर्व अप्रिय बयानबाजी हुई थी। ऐसे लोगों ने संविधान और लोकतंत्र के इस नवनिर्मित तीर्थ की महत्ता पर ध्यान नहीं दिया। यह राष्ट्रीय विमर्श को लोकमंगल से जोड़ने वाली प्रेरक शक्तिपीठ है। भारत को लोकतंत्र के नवनिर्मित इस महातीर्थ पर गर्व है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)