अरविंद जयतिलक। देश में आर्थिक असमानता की खाई किस कदर चौड़ी होती जा रही है उसकी बानगी वित्तीय सेवा कंपनी क्रेडिट सूइस के उस रिपोर्ट से समझा जा सकता है जिसमें कहा गया है कि जून 2017 से जून 2018 के बीच देश में दस लाख डॉलर या आज की दर पर 7.3 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति वाले धनाढ़्यों की संख्या में 7,300 का इजाफा हुआ है। भारत में ऐसे धनाढ़्यों की संख्या 3.43 लाख तक पहुंच गई है जिनकी कुल संपत्ति 6,000 अरब डॉलर के बराबर आंकी गई है। इस रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत के कुल अति अमीरों में महिलाओं का अनुपात काफी ज्यादा है। देश में 18.6 प्रतिशत महिलाएं अति अमीर हैं।

रिपोर्ट से खुलासा
अभी पिछले दिनों ही बारक्लेज- हुरुन इंडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि भारत में विगत दो साल में ऐसे लोगों की संख्या दोगुने से ज्यादा हुई है जिनकी संपत्ति एक हजार करोड़ रुपये या इससे ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में ऐसे लोगों की संख्या 339 थी जो 2018 में बढ़कर 831 हो गई है। इन 831 अमीरों की कुल संपत्ति 719 अरब डॉलर है जो कि देश के सकल घरेलू उत्पाद के चौथाई हिस्से के बराबर है। बेशक देश में करोड़पतियों और अरबपतियों की तादाद बढ़ने से आर्थिक समृद्धि जाहिर होती है, लेकिन जिस अनुुुुपात से देश में अमीरों की संख्या में इजाफा हो रहा है उस अनुपात से गरीबों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालने में सफलता क्यों नहीं मिल रही है? जबकि सरकार की ओर से गरीबों के कल्याण व उत्थान के लिए ढेरों कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है।

अमीरों को अधिक फायदा
देखा गया है कि बेढब आर्थिक विकास से अमीरों को जितना फायदा होता है उससे कई गुना गरीबों का नुकसान होता है। भारत में आय में बढ़ती असमानता का ही नतीजा है कि गरीबी, भूखमरी और कुपोषण की समस्याएं गहरा रही हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो आज देश में 30 करोड़ लोग ऐसे हैं जो भयावह गरीबी का सामना कर रहे हैं। मैंकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआइ) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में बुनियादी सुविधाओं से महरुम 68 करोड़ लोग ऐसे हैं जो गरीबी का दंश ङोल रहे हैं। यह रिपोर्ट भारत में जीवन की बेहद बुनियादी आठ जरूरतों यानी सामाजिक कल्याण की परियोजनाओं मसलन खाद्य, ऊर्जा, आवास, पेयजल, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा के प्रदर्शन से जुड़े केंद्र व राज्य सरकारों के आंकड़ों पर आधारित है।

सरकारी आंकड़ों पर नजर
भारत सरकार के भी आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल 22 प्रतिशत आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। आंकड़ों पर गौर करें तो देश के 27 प्रतिशत आबादी वाले 126 जिले सबसे गरीब और सुविधाओं से वंचित हैं। इनमें अधिकतर जिले उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के हैं। इसी तरह 14 प्रतिशत आबादी वाले 151 जिले, जो गुजरात, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र से हैं कुछ बेहतर स्थिति में जरूर हैं, लेकिन समग्र रूप से मूलभूत सुविधाओं से संतृप्त नहीं हैं। इस रिपोर्ट में 18 प्रतिशत आबादी वाले देश के 177 जिलों को घरेलू सुविधाओं और 15 प्रतिशत आबादी वाले 127 जिलों को मध्यम रूप से मूल सुविधाओं से वंचित बताया गया है।

असमानता को दूर करने के लिए उपाय
इस ग्लोबल रिसर्च एजेंसी ने आय में बढ़ती असमानता को पाटने और गरीबमुक्त भारत के लिए कुछ अहम सुझाव दिए हैं। मसलन 11.5 करोड़ लोगों को गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार दिया जाए। खाद्य उत्पादकता मौजूदा 2.3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर चार टन किया जाए। इसके अलावा सामाजिक सेवाओं के सुधार पर वर्ष 2022 तक 10,88,000 करोड़ रुपया खर्च किया जाए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर सरकार इन सुझावों पर अमल करती है तो आय असमानता को पाटने में भरपूर मदद मिलेगी। पिछले दिनों वल्र्ड इनइक्वलिटी लैब के अध्ययन से भी उजागर हुआ है कि 1980 के दशक से ही भारत में आय असमानता बढ़ रही है।

अमीरों की अमीरी
वर्तमान में शीर्ष 0.1 प्रतिशत सबसे अमीर लोगों की कुल संपदा बढ़कर निचले 50 प्रतिशत लोगों की कुल संपदा से कई गुना अधिक हो गई है। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि आय असमानता में बढ़ोतरी 1947 में देश की आजादी के तीस साल की तुलना में उलट है। उस समय आय असमानता काफी घटी थी और निचले 50 प्रतिशत लोगों की संपत्ति राष्ट्रीय औसत की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ी थी, जबकि मौजूदा दौर में आम लोगों की आय के बनिस्पत कुछ लोगों की आय में बढ़ोतरी हैरान करने वाली है।

विश्व असमानता रिपोर्ट 2018

उल्लेखनीय है कि ‘विश्व असमानता रिपोर्ट 2018’ वाली इस रिपोर्ट को विश्व के जाने-माने अर्थशास्त्रियों द्वारा संयोजित किया गया है। इस रिपोर्ट में पिछले 40 वर्षो के दौरान वैश्वीकरण के असमानता वाले प्रभाव को दर्शाते हुए ‘भारतीय आय असमानता, 1922-2014 ब्रिटिश राज से करोड़पति राज’ शीर्षक से उद्घाटित किया गया है। इस रिपोर्ट पर गौर करें तो साल 2016 में देश की कुल दौलत का 55 प्रतिशत हिस्सा शीर्ष के 10 प्रतिशत अर्जकों के पास था। इसी तरह वर्ष 2014 में देश के शीर्ष एक प्रतिशत आय वाले लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 22 प्रतिशत था और शीर्ष 10 प्रतिशत के पास 56 प्रतिशत था। इस अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 1982-83 में देश के शीर्ष एक प्रतिशत लोगों की आय अगले एक दशक में छह प्रतिशत से बढ़कर 10 प्रतिशत हो गई।

असमानता में इजाफा
इस आय में वर्ष 2000 तक 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वर्ष 2014 में यह बढ़कर 23 प्रतिशत हो गई। शीर्ष के एक प्रतिशत जिसमें 78 लाख लोग शामिल हैं, उनकी आमदनी का एक तिहाई रही। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में निजीकरण, उदारीकरण और विनिवेश प्रक्रिया शुरू किए जाने के बाद से आर्थिक माहौल में तेजी से बदलाव हुआ है। भारत के विकास में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन सच यह भी है कि इससे आय असमानता में भारी इजाफा भी हुआ है। पेरिस स्थित आर्थिक विश्लेषण संगठन ‘ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में 1990 के दशक के बाद से आय असमानता में तेजी से वृद्धि हुई है। 

नीतिगत चुनौतियां
ओईसीडी ने यह खुलासा भारत, चीन, अर्जेटीना, ब्राजील, इंडोनेशिया, रूस और दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते देशों में असमानता ढांचा और इससे जुड़ी नीतिगत चुनौतियों पर जारी अपनी रिपोर्ट में किया है। ओईसीडी ने पाया है कि ब्राजील, अर्जेटीना और इंडोनेशिया ने कुछ मामलों में पिछले दो दशकों में असमानता घटाने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, लेकिन चीन, भारत, रूस और दक्षिण अफ्रीका में आय असमानता में कमी आने के बजाय वृद्धि हुई है। इस रिपोर्ट के आंकड़ों का महत्व इसलिए है क्योंकि 34 विकसित देशों के संगठन ओईसीडी का वैश्विक उत्पादन में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान है। याद होगा कि गत वर्ष वेल्थ रिसर्च फर्म न्यू वल्र्ड वेल्थ ने भी अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा असमान आय वाला देश है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)