मोक्ष का द्वार
यदि हम चाहते हैं कि सदा सर्वदा सुख ही सुख मिलता रहे तो भगवद् स्मरण एवं भगवद कृपा ही इस अपार आनंद को प्राप्त करा सकती है। जब तक विषयों में अनुराग रहता है तब तक ईश्वर प्राप्ति के चरम ध्येय पर दृढ़ता से स्थित रहना संभव नहीं। विषयों में लगाव के मुख्य रूप से चार कारण होते हैं। विषयोविशेष का अस्तित्व बोध, विषयों की रमणीयता का बोध, विषयों में सुख का अनुभव तथा विषयों में प्रीति का बोध। विषयों के अस्तित्व का बोध तब तक बना रहेगा जब तक कि यह धारणा दृढ़ नहीं होगी कि जब मनुष्य स्वयं ही अपना नहीं है तो धन संपत्ति और संतान ही अपने कैसे हो सकते हैं। जब संसार की नश्वरता, क्षणभंगुरता एवं अनित्यता का भाव पुष्ट हो जाएगा तो स्वत: ही विषयों का अस्तित्व बोध बाधित हो जाएगा। तब न उसमें रमणीयता रह जाएगी और न सुख और प्रीति की अनुभूति। यदि यह न होता तो एक ही विषय किसी को सुखकर तो किसी को कष्टकर प्रतीत न होते। उस क्षण को जिसमें भगवान का चिंतन न हो अथवा शुभ विचार न हो वह विकट हानि, भ्रांति और विपत्ति का पल मानना चाहिए। इसलिए हर किसी को भगवान के चिंतन में लीन रहना चाहिए।
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में आसक्ति के दस बिंदु उद्घाटित किए हैं। वे हैं-जननी, जनक, बंधु, सुत, दारा, तन, धन, धाम, सुहृद, परिवार। इन दस बिंदुओं की आसक्ति सहित प्रभु चरणों में विनीत होने से भगवान से संबंध बन जाता है और वैराग्य भाव का उदय हो जाता है। वैराग्य भाव के उदय के साथ ही साथ मनुष्य कष्टों के बंधन से मुक्त हो सर्वदा सुख ही सुख में विचरण करने लगता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने वैराग्य व भगवद् समर्पण के साथ सभी धर्म-कर्म प्रतिपादित करने को कहा। समत्वरूप निष्काम कर्मयोग का अवलंबन कर संपूर्ण कर्मो के फल आश्रय को त्यागकर परमात्मा की अनन्यशरण में जाने वाला विरागी महात्मा मोक्ष का अधिकारी होता है। यही मोक्ष का द्वार है।
[डॉ. कन्हैयालाल पांडेय]
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।