[डा. ऋतु सारस्वत]। आत्मनिर्भर भारत का विचार पुरातन संस्कृति और संस्कार का वह प्रस्फुटन था, जिसने भारत को संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था का चालक और नियंत्रक बनाया था। विभिन्न कालखंडों में अनेकानेक आक्रांत विचारधाराओं ने आत्मनिर्भर भारत के भाव को धूमिल अवश्य कर दिया था, परंतु अपने अथक प्रयासों के उपरांत भी उसे नष्ट नहीं कर पाए। आत्मनिर्भरता का वास्तविक अर्थ गैर-भावनात्मक निर्भरता से है। स्पष्ट है यह वह स्वरूप है जहां हमारी आंतरिक प्रसन्नता बाह्य उपलब्धि पर निर्भर नहीं होती। आज ग्रामीण महिलाओं के लिए उद्यमिता न केवल उनके आर्थिक संबल को विस्तार दे रही है, बल्कि उनके व्यक्तित्व को भी सशक्त कर रही है।

इन प्रयासों में तीव्रता लाई जाती है तो 2030 तक महिलाओं के स्वामित्व वाले 3.15 करोड़ उद्यम हो सकते हैं। देश में अगर बहुतायत संख्या में महिलाओं ने उद्यमिता को अपनाया तो इस समय सीमा के भीतर लगभग 15 से 17 करोड़ रोजगार सृजित किए जा सकते हैं। यदि अधिक महिलाएं कार्यबल का हिस्सा बनती हैं तो यह 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 0.7 ट्रिलियन डालर की वृद्धि करेगा। मुद्रा योजना, दीनदयाल अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी अनेक योजनाओं ने महिलाओं के आर्थिक संबलीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वस्तुत: अवसरों की उपलब्धता और भागीदारी महिलाओं के लिए सशक्तीकरण की असीम संभावनाएं बनाती है।

महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण राष्ट्र और आत्मनिर्भर भारत के विकास लक्ष्यों के साथ महिलाओं को एकीकृत करने का सबसे व्यावहारिक समाधान है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं, सामाजिक-आर्थिक उन्नति और डिजिटल माध्यमों का प्रभावी रूप से प्रयोग कर अपने समुदाय के भीतर अपने लिए विश्वसनीयता और नेतृत्व क्षमता को स्थापित किया है। ये वे महिलाएं हैं जिन्होंने न केवल धन अर्जन में अपनी भूमिका दर्ज कराई है, अपितु भावी संगठनों का निर्माण करते हुए अभिकर्ताओं का स्वरूप भी परिवर्तित किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाएं कृषि कार्य, डेयरी उद्योग, पशुपालन, मत्स्य पालन और कुटीर उद्योगों सहित आर्थिक गतिविधियों के विस्तृत दायरे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

बचत, उपभोग-अभिवृत्ति और पुनर्चक्रण-प्रवृत्ति के संदर्भ में किंचित संदेह नहीं कि भारत की अर्थव्यवस्था महिला केंद्रित है। वे भूमि की तैयारी से लेकर विपणन तक कृषि से संबंधित सभी गतिविधियों में संलग्न हैं। पशुधन एक प्रथम आजीविका गतिविधि तो है ही साथ ही इसका उपयोग घरेलू खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी किया जाता है। मत्स्य पालन में प्रसंस्करण महिलाओं द्वारा किया जाता है। ये वे महिलाएं हैं, जिन्होंने तमाम मिथकों को ध्वस्त करते हुए अपना नया अस्तित्व गढ़ा है। साथ ही स्थानीकरण और विकेंद्रीकरण को मजबूती देते हुए उस धारणा को भी गलत सिद्ध किया है, जो इस सोच के साथ उभरती है कि अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ीकरण उद्योगीकरण से ही हो सकता है।

आज आत्मनिर्भर भारत की स्वप्निल छवि भारत के उन गांवों में प्रतिबिंबित हो रही है, जहां गांव के नाम, उसकी पहचान वहां की महिलाओं के नाम से हो रही है। वे न केवल स्वयं को सशक्त कर रही हैं, अपितु अपने समुदाय को भी सुदृढ़ कर रही हैं। कृषि मित्र, आजीविका पशु मित्र, वीसी सखी जैसी उपमाओं से विभूषित महिलाएं ‘स्वायत्तता’ के वास्तविक अर्थ को उद्घाटित करने में अनवरत प्रयास कर रही हैं। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और धीरे-धीरे इसकी कमान महिलाओं के हाथ में आ गई है।

राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंतर्गत सरकार महिला सशक्तीकरण परियोजना चला रही है। इस परियोजना के अंतर्गत महिला किसानों को कृषि के आधुनिक तौर-तरीके सिखाए जा रहे हैं। यहां स्वायत्तता का अर्थ किसी भी स्थिति से निपटने की क्षमता से भी है। ग्रामीण महिला उद्यमियों में उच्च स्वायत्तता उनकी रुचि के व्यवसाय को चुनने की उनकी क्षमता प्रकट करती है। वहीं महिला उद्यमियों में व्यक्तिगत विकास उनके विकास के तरीके को निर्धारित करता है। ग्रामीण महिलाओं के उत्थान में स्थानीय समुदायों और राष्ट्र को समग्र रूप से बदलने की क्षमता है। उत्तर प्रदेश की महिलाएं इसकी एक मिसाल के रूप में उभरी हैं, जिन्होंने मिशन शक्ति के तहत गाय के गोबर से दीये एवं गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर स्वयं के लिए आत्मनिर्भरता का नया मार्ग प्रशस्त किया है। इसका उन्हें बहुत लाभ मिला है।

कुल मिलाकर आत्मनिर्भर भारत का विशाल दृष्टिकोण उस केंद्रीय भाव और विचारधारा पर आधारित है जहां मिट्टी, पेड़, तालाब, नदी, पहाड़ हमारी अर्थव्यवस्था को संवारने के बीज मंत्र बने हैं। महिला स्वायत्तता देश की अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण का महत्वपूर्ण स्तंभ होने के साथ ही महिलाओं की प्रसन्नता एवं संतुष्टि का भी एक प्रमुख कारक है। यह उन चीजों को करने का विकल्प है, जो एक व्यक्ति स्वयं की संतुष्टि के लिए चुनता है और बिना किसी सामाजिक और पारिवारिक दबाव के मनोनुकूल परिवेश में कार्य करता है।

हाल में भारत सरकार द्वारा देश के ग्रामीण क्षेत्रों की महिला उद्यमियों के बीच खुशी का आकलन करने के लिए एक अध्ययन किया गया है। उसके परिणाम बताते हैं कि स्वायत्तता, व्यक्तिगत विकास, आत्म-स्वीकृति, जीवन में उद्देश्य, प्रामाणिकता, क्षमता और निपुणता वे कारक हैं, जो खुशी के स्तर को बढ़ाते हैं। यह बताने के लिए काफी है कि महिला स्वायत्तता को लेकर केंद्र सरकार के अथक प्रयास न केवल आत्मनिर्भर भारत की नींव के पत्थर बनेंगे, बल्कि खुशहाल भारत के सुदृढ़ स्तंभ का आधार भी होंगे।

(लेखिका समाजशास्त्र की प्रोफेसर हैं)