विचार: आर्थिक कायापलट करने वाली पहल, माइक्रोचिप सिर्फ एक इलेक्ट्रॉनिक पुर्जा नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था की धड़कन
सेमीकंडक्टर उद्योग में प्रतिस्पर्धा का आधार अनुसंधान है। भारत को अपने आइआइटी एनआइटी और निजी विश्वविद्यालयों को चिप डिजाइन और अनुसंधान से जोड़ना होगा। सरकार को नई तकनीकों पर काम करने वाले स्टार्टअप्स और रिसर्च सेंटर को आर्थिक सहायता और टैक्स में छूट प्रदान करनी होगी। भारत आज जिस गति से तकनीकी प्रगति की ओर बढ़ रहा है उसमें माइक्रोचिप उद्योग को सबसे बड़ा गेमचेंजर माना जा रहा है।
डॉ. सुरजीत सिंह। अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ से उबरने का प्रयास करती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए डिजिटल डायमंड ने एक बड़ी उम्मीद जगाते हुए विदेशी निवेशकों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा है। हाल में आयोजित हुए सेमीकान इंडिया 2025 सम्मेलन में इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पूरी तरह स्वदेशी 32-बिट माइक्रो चिप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेंट की। इसे मात्र 30 महीनों में तैयार कर सेमीकंडक्टर आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
आज की दुनिया में माइक्रोचिप सिर्फ एक इलेक्ट्रानिक पुर्जा नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था की धड़कन है। मोबाइल, लैपटाप, आटोमोबाइल, रक्षा उपकरण, मेडिकल मशीनें हर जगह चिप्स की आवश्यकता है। बिना इनके हमारे रोजमर्रा के गैजेट्स और मशीनें अधूरी हैं। स्मार्टफोन, लैपटाप, टीवी, स्मार्टवाच, इंटरनेट की गति आदि सभी सेमीकंडक्टर पर चलते हैं।
आधुनिक गाड़ियां अब पूरी तरह इलेक्ट्रानिक सिस्टम पर आधारित हैं, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों में बैटरी मैनेजमेंट, सेंसर और नेविगेशन के लिए चिप बेहद जरूरी हैं। स्वास्थ क्षेत्र में काम आने वाली कई तरह की अत्याधुनिक मशीनों जैसे एमआरआइ, सीटी स्कैन आदि में भी चिप की जरूरत होती है। बड़े पावर प्लांट्स, 5जी नेटवर्क, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड सर्विसेज सब सेमीकंडक्टर की बदौलत ही चलते हैं।
भारत प्रतिवर्ष 20 से 25 अरब डालर से ज्यादा के सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रानिक चिप आयात करता है। आने वाले वर्षों में ये तस्वीर बदल सकती है, क्योंकि नए मिशन के तहत भारत खुद अपने सेमीकंडक्टर बना सकता है। भारत का मकसद सिर्फ घरेलू जरूरतें ही पूरी करना नहीं है, बल्कि दुनिया के सेमीकंडक्टर बाजार में अपनी बड़ी हिस्सेदारी बनाना भी है। 2023 में भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 38 अरब डालर था, जो वित्त वर्ष 2024-25 में बढ़कर 40 से 50 अरब डालर का हो गया। 2030 तक यह बाजार एक ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर से भी ज्यादा का हो जाएगा।
यदि भारत इसमें से पांच से 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी भी हासिल करता है तो देश की जीडीपी दो से तीन प्रतिशत तक बढ़ सकती है। इससे भारत के पांच ट्रिलियन डालर इकोनमी बनने में तेजी आएगी। सेमीकंडक्टर के चार नए प्रोजेक्ट लांच हो चुके हैं, जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सहयोग से छह प्रोजेक्ट लांच होने के क्रम में हैं। भारत आज ताइवान, कोरिया, अमेरिका, चीन आदि देशों की महारत को चुनौती देने के लिए तैयार है। वैश्विक स्तर पर ताइवान का योगदान 66 प्रतिशत, 17 प्रतिशत दक्षिण कोरिया एवं आठ प्रतिशत योगदान चीन का है।
माइक्रोचिप बनाने के लिए अत्याधुनिक प्लांट में हजारों इंजीनियर, तकनीशियन और आपरेटरों की आवश्यकता होती है। चिप निर्माण में सिलिकान वेफर, रसायन, विशेष गैसें और पैकेजिंग सामग्री का उपयोग होता है। इनकी आपूर्ति और प्रबंधन के लिए देशभर में छोटे-बड़े उद्योग और कंपनियां जुड़ेंगी, जिससे अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर करोड़ों की संख्या में उत्पन्न होंगे। भारत पहले से ही आइटी और चिप डिजाइन में दुनिया का एक मजबूत केंद्र है। चिप डिजाइन, टेस्टिंग और साफ्टवेयर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में लाखों उच्च कौशल वाले रोजगार उपलब्ध होंगे।
माइक्रोचिप उद्योग से जुड़े परिवहन, गोदाम, सुरक्षा, सफाई और तकनीकी सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा। सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के बाजार पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री के लिए विशेष कोर्स, प्रशिक्षण केंद्र और अनुसंधान संस्थान विकसित किए जाएं, जिसके माध्यम से न केवल प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार होगा, बल्कि शिक्षा क्षेत्र में भी शिक्षक, शोधकर्ता और ट्रेनर के रूप में बड़ी संख्या में नई नौकरियां निकलेंगी।
सेमीकंडक्टर उद्योग में भारी मात्रा में पानी और बिजली की भी खपत होती है। भारत को इस उद्योग के विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन पर भी ध्यान देना होगा। इसके लिए ग्रीन एनर्जी, रीसाइक्लिंग और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को प्राथमिकता देनी होगी।
भारत को विशेष औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण करना होगा। चिप निर्माण एक अत्यंत तकनीकी प्रक्रिया है, जिसके लिए प्रशिक्षित इंजीनियर और टेक्नीशियन चाहिए। इसके लिए भारत को इंजीनियरिंग कालेजों, आइटीआइ और विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर से जुड़े विशेष कोर्स शुरू करने होंगे। विदेशी विशेषज्ञों से प्रशिक्षण और सहयोग भी जरूरी होगा, ताकि मानव संसाधन वैश्विक मानकों के अनुरूप तैयार हो सके।
सेमीकंडक्टर उद्योग में प्रतिस्पर्धा का आधार अनुसंधान है। भारत को अपने आइआइटी, एनआइटी और निजी विश्वविद्यालयों को चिप डिजाइन और अनुसंधान से जोड़ना होगा। सरकार को नई तकनीकों पर काम करने वाले स्टार्टअप्स और रिसर्च सेंटर को आर्थिक सहायता और टैक्स में छूट प्रदान करनी होगी। भारत आज जिस गति से तकनीकी प्रगति की ओर बढ़ रहा है, उसमें माइक्रोचिप उद्योग को सबसे बड़ा गेमचेंजर माना जा रहा है। इससे न सिर्फ चिप का आयात कम होगा, बल्कि कीमत कम होने से स्वदेशी एवं विदेशी बाजार में बढ़त हासिल करने में भी हम आगे होंगे। इससे 2047 तक देश को विकसित बनाने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)
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