दीपिका नारायण भारद्वाज। आठ साल पहले एक इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर दो बच्चों की मां बबली एक युवक बंटी (बदले हुए नाम) से बात शुरू करती है। जल्द ही यह बातचीत प्यार में बदल जाती है और दोनों कई बार होटल, लाज या कहीं भी मिलते हैं। शारीरिक संबंध बनते हैं। बबली को न अपने पति की कोई चिंता रहती है और न ही बच्चों की। पढ़ी-लिखी महिला अपनी मर्जी से, सोच-समझकर वर्षों शारीरिक संबंध बनाती है। ॉ

धीरे-धीरे प्यार इतना परवान चढ़ता है कि दोनों शादी करने का सोचते हैं। बबली कई वर्षों तक पति को धोखा देने के बाद उससे तलाक ले लेती है, पर इस मोड़ तक आते-आते बंटी बदल जाता है और शादी करने से मना कर देता है। ऐसी कहानी आपने बहुत बार सुनी होगी।

आगे जो बबली करती है, वह नई कहानी है। यह कहानी है दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध का मजाक उड़ाने, यौन शोषण के नाम पर बदला लेने और सहमति से सैकड़ों बार बने शारीरिक संबंधों को अपराध का चोला पहनाने की।

सालों तक सहमति से बने संबंधों के बाद बबली ने बंटी पर दुष्कर्म का मुकदमा यह कहते हुए कर दिया कि वह इतने वर्षों से उसे शादी का झांसा दे रहा था। न कोई सुबूत, न जांच। बंटी पर दुष्कर्म जैसे संगीन अपराध का मुकदमा दायर हो गया। ऐसे मामलों में पुरुष कितना भी बेकसूर हो, पुलिस उसे तुरंत गिरफ्तार कर लेती है।

बंटी ने गिरफ्तारी के डर से हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली। इस पर बबली सुप्रीम कोर्ट चली गई, ताकि बंटी की अग्रिम जमानत खारिज करा सके, लेकिन शायद पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने यह कड़वा सच कहा कि अगर सहमति नहीं थी तो बबली को इतनी बार बंटी के साथ होटल जाने की क्या जरूरत थी? उसकी यह टिप्पणी चर्चा का विषय बनी।

दो बच्चों की मां बबली को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि शादीशुदा होते हुए गैर मर्द के साथ संबंध बनाने के लिए उस पर भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इस मामले को कोई आम इंसान भी फर्जी बता देगा, लेकिन बंटी ने लंबे समय तक इस मुकदमे के साथ मानसिक प्रताड़ना और बदनामी का सामना किया।

इसलिए किया, क्योंकि एक महिला ने कहा कि शादी का झांसा देकर उससे दुष्कर्म हुआ है। यह इकलौता मामला नहीं है। भारत में इस समय ऐसे हजारों मुकदमे हैं। युवतियां-महिलाएं एक साल, दो, पांच, दस साल तक सहमति से बनाए संबंधों के बाद भी झूठा आरोप लगाते हुए दुष्कर्म के मुकदमे करा रही हैं।

आज जब महिलाएं अंतरिक्ष जा रही हैं, प्लेन उड़ा रही हैं, तब कई पढ़ी-लिखी महिलाएं किसी से भी शारीरिक संबंध बना रही हैं और बाद में कह रही हैं कि उनकी सहमति नहीं थी, उनसे शादी का झूठा वादा किया गया। विंडबना यह कि पुलिस, समाज और अक्सर अदालतें भी उन पर यकीन कर रही हैं। एक तरफ युवतियां माई बाडी-माई च्वाइस की बात कर रही हैं, शादी के बाहर या बिना विवाह संबंध बना रही हैं और दूसरी तरफ पुरुष शादी न करे तो उसे दुष्कर्मी कह रही हैं। यह कैसा दोहरा चरित्र है?

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो शादी का कथित झांसा देकर दुष्कर्म के मामले वर्ष 2015 में कुल दुष्कर्म के मामलों के 21 प्रतिशत थे, पर 2021 तक यह आंकड़ा 51 प्रतिशत तक पहुंच गया। साफ है कि दुष्कर्म के मुकदमों में लगभग आधे ऐसे हैं, जिनमें महिला ने पहले सहमति से संबंध बनाए और फिर कहा कि सहमति तो शादी के लिए दी थी। इस तर्क से तो यदि कोई शादीशुदा व्यक्ति तलाक मांगता है तो उसे भी दुष्कर्मी बोला जा सकता है, क्योंकि महिला कह सकती है कि उसकी सहमति हमेशा साथ रहने की थी।

भारत के अलावा किसी अन्य बड़े लोकतांत्रिक देश में शादी का झांसा जैसी अवधारणा नहीं है और न ही पुरुषों को ब्रेकअप करने की वजह से जेल भेजा जाता है। हाल में क्रिकेटर यश दयाल को ऐसे ही मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत मिली।

जज ने पूछा, कोई महिला पांच साल तक शादी के झांसे में कैसे रह सकती है? जहां कुछ जज ये प्रश्न कर रहे हैं, वहीं दुष्कर्म संबंधी कानून का दुरुपयोग चरम पर पहुंच गया है। अब ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं, जहां एक ही महिला ने अलग-अलग पुरुषों पर चार-छह-दस मुकदमे करा दिए कि सबने शादी का झांसा देकर उसका शोषण किया। ऐसे मामलों में पुलिस ने सच जानने के बाद भी मुकदमे दर्ज किए और पुरुषों को जेल भेजा।

कानून के दुरुपयोग के मामले बढ़ते जा रहे हैं। पिछले दिनों कोलकाता में 26 साल के युवक के माता-पिता ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि बेटे को शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के मामले में जेल भेज दिया गया। उसका एक युवती से तीन साल से संबंध था, पर शादी न होने की वजह से उसने दुष्कर्म का मुकदमा कर दिया। अब यदि वह निर्दोष साबित होता है, तो भी उसका सब कुछ लुट चुका है।

अनगिनत युवा शादी के झांसे के झूठे मुकदमों में जिंदगी गंवा रहे हैं। आखिर पढ़ी-लिखी महिलाओं की समझ को बच्चों से भी कम क्यों आंका जा रहा है? महिला सशक्तीकरण का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि महिला जब चाहे अबला बन जाए और जब चाहे सहमति से बनाए संबंधों को दुष्कर्म बता दे। सुप्रीम कोर्ट को ऐसे झूठे मामलों में महिलाओं को फटकार लगाने के साथ उन्हें सजा भी देनी चाहिए। एक गंभीर अपराध को मजाक बनाना भी एक अपराध ही है।

(लेखिका फिल्मकार, सोशल एक्टिविस्ट और ‘एकम न्याय’ फाउंडेशन की संस्थापक हैं)