सहजता
मनुष्य का सुख अनेक बातों और अनुभवों से निर्धारित होता है, लेकिन सहजता से जीवनयापन करने से स्वाभाविक सुख और आनंद अवश्य मिलता है।
मनुष्य का सुख अनेक बातों और अनुभवों से निर्धारित होता है, लेकिन सहजता से जीवनयापन करने से स्वाभाविक सुख और आनंद अवश्य मिलता है। बिना किसी अपेक्षा, उपेक्षा, मूल्य, तुलना, पुरस्कार या तिरस्कार भावना के अपना वास्तविक कार्य करना सहज मानवीय प्रवृत्ति है। सहजता की भावना से पूर्ण व्यक्ति अपने कार्यों में अभिनय, आडंबर या अतिरंजना कदापि नहीं चाहेगा। एक प्रकार से वह भौतिक कार्य में संलग्न रहते हुए भी सुख महसूस करता है और दृश्यमान क्रियाकलापों से उभरने वाले भावनागत जंजाल का अपने सहज भावों की शक्ति से प्रतिरोध करता है। क्षुद्र मानवीय लालसाओं पर विजय पाने का यह सुगम उपाय है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी अंतरात्मा से संवाद करके इस मूल्यवान प्रवृत्ति से स्वयं को जोड़ सकता है। जब मनुष्य-जीवन के समस्त भौतिक कार्यों को करने की मंशा किसी प्रतिवाद या प्रतिक्रिया रहित हो, तो कार्य गति सहज स्वरूप में होती है। कार्य या परिश्रम के दौरान किसी भी प्रकार के मिश्रित भावों व विचारों का नहीं होना बड़ी महान घटना होती है। दुखद यही है कि ऐसा घटनाक्रम बहुत थोड़े समय के लिए होता है। सामान्यत: हमारे जीवन में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं, जब हम कोई काम बिना किसी भावनागत लाग-लपेट के कर रहे होते हैं।
इच्छाशक्ति के अभाव में हम ऐसे समय को बढ़ाने का अभ्यास नहीं करते। भौतिकता और भावनाओं का ऐसा संतुलन सहजता का प्रतीक है। शारीरिक परिश्रम के समय संपूर्ण ध्यान परिश्रम पर ही रहे और भावनाओं की परिधि में मन-मस्तिष्क आ ही न पाए, इससे अच्छा लक्ष्य-साधनेका उपाय मानव के पास हो ही नहीं सकता। साधारण मनुष्यों का वास्तविक जीवन भावों की अपेक्षा भूगोल पर अधिक निर्भर है और यदि वे भूगोल छोड़कर भावनाओं के अधिकारी बनने का प्रयास करते हैं तो भावों के आरोह के मध्य सकारात्मक सामंजस्य नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप उनका जीवन परिश्रम के फल से भी वंचित रह जाता है और भावनाओं की श्रेष्ठता भी प्राप्त नहीं कर पाता। इस स्थिति में साधारण मनुष्य के पास एक ही रास्ता है, जिसके बलबूते वह अपने जीवन का कायाकल्प कर सकता है।
[विकेश कुमार बडोला]
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