ए. सूर्यप्रकाश। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआइआर प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक मोर्चे पर तकरार जारी है। तकरार में एक मुद्दा नागरिकता और मताधिकार का भी है। आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई भी होनी है। राजनीतिक कोलाहल से इतर देखा जाए तो यह संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके गहरे निहितार्थ हैं, क्योंकि संविधान यह प्रविधान करता है कि 25 साल से अधिक का कोई मतदाता देश के किसी भी हिस्से से विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री और यहां तक कि प्रधानमंत्री भी बन सकता है।

इसलिए यह चुनाव आयोग का दायित्व बन जाता है कि ऐसा कोई भी व्यक्ति मतदाता न बनने पाए जो भारत का नागरिक न हो। यह सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग को संविधान ने पर्याप्त अधिकार भी दिए हैं। अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को निर्वाचक नामावली के रखरखाव तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से निर्वाचनों के संचालन की शक्ति देता है और उसके कार्यों को परिभाषित करता है। वहीं, अनुच्छेद 326 में यह उपबंध है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के निर्वाचन, वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे, भारत का प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु इस संबंध में विधि द्वारा यथानिर्धारित तिथि को 18 वर्ष से कम न हो और जो अन्यथा अयोग्य घोषित न किया गया हो, ऐसे किसी भी निर्वाचन में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा।

नागरिकता का यही संदर्भ जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1950 की धारा 16 में है। इसके अनुसार जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं, वह मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का भी पात्र नहीं। इस तरह संविधान और संसद द्वारा पारित निर्वाचन संबंधी कानून दोनों स्पष्ट रूप से यह प्रविधान करते हैं कि केवल भारतीय नागरिक को ही मतदान का अधिकार मिल सकता है। जनप्रतिनिधि कानून की धारा 14 यह भी निर्धारित करती है कि जहां तक मतदाता सूची को तैयार करने का सवाल है तो यह कवायद संबंधित वर्ष की जनवरी, अप्रैल, जुलाई या अक्टूबर से शुरू की जा सकती है। धारा 21 चुनाव आयोग को लोकसभा या राज्य विधानसभा चुनाव से पहले उपयुक्त तिथि के संदर्भ में अपेक्षाओं के अनुरूप मतदाता सूची तैयार करने या उसे संशोधित करने का अधिकार प्रदान करती है। इसे देखते हुए मतदाता सूची से जुड़ी चुनाव आयोग की कवायद पर सवाल उठाना बेतुका ही कहा जाएगा। इसका विरोध करने वाले राजनीतिक दलों के तर्क गले नहीं उतरते।

इस संदर्भ में एक बहुत दिलचस्प मामला है। यह मामला किसी और से नहीं, बल्कि खुद नेहरू-गांधी परिवार से जुड़ा है। इसमें गैर-भारतीय नागरिक के मतदाता बनने और फिर एक जागरूक नागरिक द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद उस नाम को मतदाता सूची से हटाना पड़ा था। यह जनवरी 1980 की बात है। दिल्ली में मतदाता सूची संशोधित की जा रही थी। उस संशोधन में सोनिया गांधी का नाम शामिल किया गया था, जबकि उस समय वे इटली की नागरिक थीं। उस समय जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 लागू था। उसके अंतर्गत सूची में शामिल होने के लिए मतदाता को अपना नाम, पता, जन्मतिथि की जानकारी के साथ यह उद्घोषणा भी करनी थी कि वह भारत का/की नागरिक है। इन दावों के सत्यापन के बाद ही चुनाव प्राधिकारी संस्था संबंधित व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में दर्ज करती थी। उस कानून में यह प्रविधान भी था कि किसी गलत दावे या गलत प्रतिनिधित्व के मामले में ऐसा करने वाले व्यक्ति को छह महीनों की कारावास तक हो सकती थी।

सोनिया गांधी का मूल नाम एंटोनिया माइनो था। उनका विवाह 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी से हुआ था। नागरिकता अधिनियम के अंतर्गत आवेदन करने पर पांच साल बाद 1973 में वे भारत की नागरिक बन सकती थीं, लेकिन उन्होंने इसके लिए आवेदन ही नहीं किया। अपनी इतालवी नागरिकता के बावजूद नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र की मतदाता सूची में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी और मेनका गांधी के साथ उनका नाम भी जोड़ दिया गया था। संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत के बाद इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को राजनीति में उतारा।

चूंकि राजीव औपचारिक राजनीति में उतर गए थे और उस स्थिति में सोनिया के लिए अपनी इतालवी नागरिकता को कायम रखना विरोधियों के हाथों में एक मुद्दा थमा देता, इसलिए सोनिया गांधी ने अंतत: 7 अप्रैल, 1983 को नागरिकता के लिए आवेदन किया और 30 अप्रैल, 1983 को उन्हें भारतीय नागरिकता मिल गई। हालांकि इससे पहले ही बिना भारतीय नागरिकता के उनका नाम मतदाता सूची में जोड़ दिया गया था। इसे लेकर एक प्रबुद्ध नागरिक ने दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी और 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से हटाना पड़ा था। नागरिकता और मताधिकार के जिस विवाद के केंद्र में स्वयं सोनिया गांधी रहीं, उसे देखते हुए कांग्रेसियों का यह राग अलापना समझ नहीं आता कि नागरिकता के पहलू का मतदान अधिकार से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए।

समझ नहीं आता कि विपक्षी दलों के नेता बिहार में मतदाता सूची के सत्यापन की कवायद को लेकर क्यों आसमान सिर पर उठाए हुए हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष राहुल गांधी तो यहां तक कहने में लगे हैं कि चुनाव आयोग को भाजपा के निर्देश पर काम न करते हुए कानून के हिसाब से अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

चुनाव आयोग को बिल्कुल ऐसा ही करना चाहिए कि वह प्रत्येक कानूनी कसौटी के अनुसार आगे बढ़े। इस संदर्भ में उसे अपेक्षित अधिकार भी मिल हुए हैं। अनुच्छेद 326 से लेकर निर्वाचन संबंधी कानून यह स्पष्ट करते हैं कि केवल भारतीय नागरिक ही देश के मतदाता हो सकते हैं। चुनाव आयोग अपने इस कर्तव्य से बंधा हुआ है। वह ऐसी गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं छोड़ सकता कि कोई गैर-भारतीय नागरिक मतदाता सूची का हिस्सा बन जाए।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)