अवधेश कुमार : पंजाब में अमृतपाल और उसके साथियों के विरुद्ध कार्रवाई से पूरे देश ने राहत महसूस की है। अमृतपाल के चाचा सहित उसके प्रमुख साथियों को मिलाकर डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। पिछले करीब छह महीने से अमृतपाल की गतिविधियों ने पंजाब समेत पूरे देश को भयभीत कर दिया था। अमृतपाल की हरकतों को पहले ही सख्ती से रोक दिया जाता तो नौबत यहां तक नहीं आती। उस पर एनएसए लगाकर लुकआउट सर्कुलर जारी करना पड़ा है।

हरियाणा एवं पंजाब उच्च न्यायालय की तीखी टिप्पणियां पंजाब सरकार एवं आम आदमी पार्टी को भले नागवार गुजर रही हों, किंतु सच्चाई तो यही है। न्यायालय ने पूछा है कि आखिर 80 हजार की पुलिस क्या कर रही थी? बीते दिनों अमृतसर जिले के अजनाला थाने का पूरा दृश्य आतंकित करने वाला था। ऐसा नहीं है कि अमृतपाल के साथियों के भारी संख्या में पहुंचने और उत्पात मचाने की सूचना खुफिया एजेंसियों को तब नहीं थी। पंजाब सरकार ने खतरे को देखते हुए भी कार्रवाई से बचने की आत्मघाती प्रवृत्ति अपनाई थी। पूरे देश को आश्चर्य हुआ जब थाने पर हमले के बाद पुलिस ने अमृतपाल के साथी को रिहा करने की घोषणा कर दी, जिस पर अपहरण कर मारपीट का आरोप था। हालांकि बाद में वह न्यायालय के आदेश से ही रिहा हुआ, पर पुलिस ने उसकी जमानत का विरोध नहीं किया। ध्यान रखिए कि वर्तमान कार्रवाई मुख्यमंत्री भगवान मान की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद हो रही है। इसका अर्थ बताने की आवश्यकता नहीं। पुलिस की वर्तमान चुस्ती और सख्ती बताती है कि पहले भी ऐसा हो सकता था।

जम्मू-कश्मीर के बाद पंजाब ऐसा सीमावर्ती राज्य है जहां हिंसा एवं अलगाववाद ने पूरे देश को लंबे समय तक दहलाया है। आतंकवाद ने वहां 70 हजार से ज्यादा लोगों की जान ली है। सीमा पार पाकिस्तान से हो रहे षड्यंत्रों एवं अमेरिका, यूरोप सहित अन्य देशों से अलगाववादियों को मिल रहे सहयोग का ध्यान रखते हुए भगवंत मान सरकार की पहली प्राथमिकता सुरक्षा व्यवस्था ही होनी चाहिए थी, लेकिन राज्य सरकार के व्यवहार से ऐसा कभी झलका नहीं। पूरे देश ने देखा कि खालिस्तानी झंडा लिए कुछ लोग पंजाब की सड़कों पर नारे लगा रहे हैं और पुलिस उन्हें सुरक्षा दे रही है। इससे अलगाववादियों-आतंकियों सहित पूरी दुनिया में भारत विरोधियों का हौसला बढ़ा होगा।

अमृतपाल पिछले वर्ष सितंबर में दुबई से आया और धीरे-धीरे वह इतनी बड़ी हैसियत प्राप्त कर गया तो क्यों? पंजाब के आम लोगों को तो पता था कि वहां स्थिति बिगड़ रही है। क्या प्रदेश सरकार को इसका आभास नहीं था? दमदमी टकसाल में जब अमृतपाल को जरनैल सिंह भिंडरांवाले की गद्दी दी जा रही थी तो उसकी सूचना निश्चय ही मान सरकार के पास पहुंची होगी। भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक नारों से गूंजता कार्यक्रम हस्तक्षेप की मांग कर रहा था। इसलिए यह प्रश्न तो उठेगा कि सरकार आंखें क्यों मूंदे रही?

विचार करने वाली बात है कि एक ट्रक ड्राइवर अमृतपाल अचानक दुबई से पंजाब लौटता है और धीरे-धीरे हीरो बन जाता है। उसके अंदाज यही बता रहे थे कि उसे पूरी तरह तैयार करके पंजाब भेजा गया है। कहा जा रहा है कि वह आनंदपुर टास्क फोर्स बना रहा था। हम जानते हैं कि 1973 में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव से ही खालिस्तान की मांग को हवा मिली थी। इसमें पंजाब को स्वायत्त प्रदेश बनाने की मांग की गई थी। इसमें रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा को छोड़कर सारी शक्तियां राज्य को देने की मांग की गई थी।

अमृतपाल के पीछे की शक्तियों ने पंजाब को आग में झोंकने के षड्यंत्र के तहत ही उसे भेजा होगा। भिंडरांवाले को भी उभरने में समय लगा था जबकि अमृतपाल दो-ढाई महीने के अंदर ही पंजाब का जाना-पहचाना चेहरा बन गया। उसने योजनाबद्ध तरीके से पंजाब में नशे के विरुद्ध समाज के सोच पर फोकस किया और जगह-जगह नशा मुक्ति केंद्र खोले। नशा मुक्ति केंद्र अमृतपाल के लिए निजी सेना तैयार करने का स्थान बन गए। नशा विरोधी अभियान के साथ अलगाववादी संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ पर उसका नियंत्रण बहुत कुछ कह रहा था। अमृतपाल के कार्यक्रम जगह-जगह लोगों में डर पैदा कर रहे थे, क्योंकि उसके साथी हिंसा, तोड़फोड़ और हंगामे के पर्याय बन बन गए थे।

अब अमृतपाल का पकड़ा जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि उससे पता चलेगा कि देश और विदेश की कौनसी शक्तियां उसके पीछे हैं। पंजाब की स्थिति संभालने के लिए भी काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। भगवंत मान सरकार अभी तक नियमित पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति नहीं कर पाई है। अभी तक तदर्थ नियुक्ति से काम चलाया जा रहा है। यह स्थिति बदलेगी तभी पुलिस को सही नेतृत्व मिल सकेगा। अमृतपाल के उभार एवं वर्तमान स्थिति से सीख लेकर न केवल भयानक भूल सुधारने, बल्कि भविष्य की दृष्टि से पूर्वोपाय करने की भी आवश्यकता है।

अजनाला में अमृतपाल के लोगों ने जिस तरह पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल बनाकर प्रवेश किया उससे पंजाब के अंदर नाराजगी भी है। निश्चित रूप से इस नाराजगी का लाभ सरकार और पंजाब की शांति के लिए कार्यरत सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों को मिलेगा। पंजाब के बहुसंख्यक लोग न कभी अलगाववाद के साथ थे, न हो सकते हैं। किसी भी सरकार के लिए यह बहुत बड़ी ताकत है, किंतु इसका लाभ तभी मिलेगा जब अलगाववादी समूहों के प्रति प्रशासन का बर्ताव हमेशा कठोर रहे। राजनीतिक नेतृत्व के सोच बदलने के बाद ही पुलिस-प्रशासन पंजाब की दृष्टि से अनुकूल भूमिका निभा सकेगा।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)