बंधन और मोक्ष
हमारे जीवन में दो मार्ग हैं, एक बंधन का मार्ग और दूसरा मोक्ष का मार्ग। ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि मृत्यु के बाद जब शरीर रूपी बंधन से मुक्ति मिलती है तब मोक्ष मिलता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मनुष्य जीवित रहते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
हमारे जीवन में दो मार्ग हैं, एक बंधन का मार्ग और दूसरा मोक्ष का मार्ग। ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि मृत्यु के बाद जब शरीर रूपी बंधन से मुक्ति मिलती है तब मोक्ष मिलता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मनुष्य जीवित रहते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है। महाभारत में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, 'कर्म करते हुए और उन कर्मों को मन से परमसत्ता को अर्पण करते हुए यदि कोई पुरुषार्थ करता है, तो वह इसी जीवन में मोक्ष पा लेता है। दरअसल, कर्म करते हुए व्यक्ति को अनेक बंधनों को काटना पड़ता है, जिनमें लोभ, मोह व अहंकार प्रमुख हैं। चूंकि बंधन हमेशा दुष्प्रवृत्तियों के ही होते हैं, इसलिए इनसे छुटकारा पा लेना ही मोक्ष है।
यह दूरदर्शिता हमारे मन में बैठ जाए, तो मोक्ष का तत्वज्ञान समझते हुए हम जीवन को सफलता की चरम सीमा तक पहुंचा सकते हैं। हमें मानव जीवन मिला ही इसलिए है कि हर व्यक्ति इस परम पुरुषार्थ के लिए कर्म करे और परमतत्व की प्राप्ति के लिए इस प्रयोग को सार्थक बनाए। बंधन और मोक्ष में फर्क सिर्फ इतना है कि जब आसुरी संपदा हमारे पास बढ़ेगी, तो हम बंधन की ओर बढ़ेंगे, लेकिन जब दैवीय संपदा हमारे पास बढ़ेगी तो हम मोक्ष की तरफ बढ़ जाएंगे। बंधन का मकडज़ाल हमें जकड़े रहता है, लेकिन इससे छुटकारा पाना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है, क्योंकि हर व्यक्ति के लिए मोक्ष जरूरी है। व्यक्ति जो कुछ भी करता है, उसमें क्रोध, मोह नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका निर्णय समाज हित में होना चाहिए। महाभारत का युद्ध हुआ, लेकिन इसके लिए श्रीकृष्ण ने पांडवों के मन में द्वेष नहीं, बल्कि अखंड भारत के कल्याण की भावना जगाई और एक संस्कारी राजा का आदर्श रखते हुए ईश्वर के लिए कर्म करने की भावना जगाकर युद्ध करने को कहा। शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि आत्मा तब तक एक शरीर से दूसरे शरीर में भटकती रहती है, जब तक कि मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती। इसलिए मोक्ष प्राप्ति के लिए किए जाने वाले कर्म को जीवन जीने की कला कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मोक्ष प्राप्ति के लिए हमें अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए, सुनने व मनन की क्षमता को बढ़ाना चाहिए और निरंतर अध्ययन करते रहना चाहिए। स्पष्ट है कि मोक्ष जीते जी भी पाया जा सकता है।
[आचार्य अनिल वत्स]














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