[राहुल लाल] भारत की अर्थव्यवस्था एवं व्यापार का तानाबाना बांग्लादेश से कहीं अधिक विस्तृत एवं विविधतापूर्ण है। विदेश से प्रेषित धन और प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के बीच बेहतर संतुलन भी भारतीय अर्थव्यवस्था में कहीं व्यापक है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भी बांग्लादेश काफी पीछे है। परियोजनाओं के लिए वहां फास्ट ट्रैक क्लियरेंस की सुविधा नहीं है। दूसरी ओर गंभीर चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर आगे बढ़ती दिख रही है। आज भारत में बेशक आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती छाई है, लेकिन आइएमएफ के अनुमानों के अनुसार अगले साल सबसे तेज आर्थिक वृद्धि भारत की ही रहेगी।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने हाल ही में भारत की जीडीपी में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट का अनुमान लगाया है, जबकि कुछ माह पूर्व उसने 4.5 फीसद गिरावट का अनुमान व्यक्त किया था। इसमें जिस बात ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी का आंकड़ा। आइएमएफ के अनुमान के मुताबिक 2020 में एक औसत बांग्लादेशी की प्रति व्यक्ति आय एक औसत भारतीय की आय से अधिक होगी। आइएमएफ के अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का आंकड़ा 1,888 डॉलर हो जाएगा, जबकि भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 1,877 डॉलर तक पहुंचेगा। सवाल उठता है कि यह कैसे संभव है? आमतौर पर देशों की तुलना जीडीपी के आधार पर की जाती है।

भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश से 10 गुना बड़ी है और हर साल तेजी से बढ़ी है। हालांकि प्रति व्यक्ति आय में एक और कारक शामिल है, कुल जनसंख्या। कुल जनसंख्या से कुल जीडीपी को विभाजित करके प्रति व्यक्ति जीडीपी निकाली जाती है। ऐसे में ज्यादा जनसंख्या प्रति व्यक्ति जीडीपी के आंकड़े को कम कर देता है और भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 2004 के बाद से तेजी से जीडीपी वृद्धि दर देखी जा रही है। वर्ष 2000 से 2016 के बीच दोनों अर्थव्यवस्थाओं में कोई बड़ा सापेक्ष बदलाव नहीं आया, क्योंकि भारत बांग्लादेश की तुलना में और भी तेजी से बढ़ा। आइएमएफ ने जहां भारत के लिए ऋणात्मक वृद्धि दर का अनुमान लगाया है, वहीं बांग्लादेश के लिए यह अनुमान 3.4 प्रतिशत का है।

पिछले वर्ष भी जब भारत की आíथक विकास दर घटकर पांच फीसद के पास पहुंच गई थी, तब बांग्लादेश की वृद्धि दर आठ फीसद थी। वित्त वर्ष 2016-17 की प्रथम तिमाही में भारत 9.2 फीसद के विकास दर से चल रहा था, परंतु उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार घटती रही। कोरोना के पूर्व ही हमारी विकास दर वित्त वर्ष 2019-20 की आखिरी तिमाही में तीन फीसद तक पहुंच चुकी थी। वहीं कोरोना के कठोर लॉकडाउन के बाद भारतीय विकास दर ऋणात्मक 24 फीसद तक पहुंच गई। जब भारतीय अर्थव्यवस्था की गति धीमी थी, उसी समय बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से वृद्धि कर रही थी। यही कारण है कि कोरोना के बाद भी बांग्लादेश की विकास दर का अनुमान लगभग चार प्रतिशत लगाया जा रहा है। बांग्लादेश में कोरोना जनित लॉकडाउन के बाद 31 मई से ज्यादातर चीजें खुल गईं। वहीं भारत में सितंबर के आखिर तक कई चीजों पर पाबंदियां लगी रहीं। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया। वहीं बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से उभर रही है, इसमें कोई दो राय नहीं है।

बांग्लादेश ने ऐसे किया कमाल

बांग्लादेश ने न केवल विनिर्माण और निर्यात आधारित उत्पादन और रोजगार में वृद्धि के साथ संरचनात्मक बदलाव किए हैं, बल्कि उसने सामाजिक संकेतकों, आय स्तर और ग्रामीण इलाकों में उद्यमिता के स्तर में भी उल्लेखनीय वृद्धि की है। इसमें लघु वित्त संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विश्व बैंक के वर्ष 2014 के एक अध्ययन में, बांग्लादेश को माइक्रो क्रेडिट कार्यक्रमों के दीर्घावधि लाभों को देखा जा सकता है। इससे ज्ञात होता है कि माइक्रो क्रेडिट कार्यक्रमों से ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि हुई। फलत: वर्ष 2000 से 2010 के दशक में कुल गरीबी 10 फीसद से ज्यादा कम हो गई। लघु कर्ज कार्यक्रमों द्वारा निचले स्तर के लोगों के आíथक और सामाजिक विकास की दिशा में प्रयास के लिए 2006 में ग्रामीण बैंक और उसके संस्थापक मोहम्मद युनूस को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। बांग्लादेश के माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के काम में महिलाएं केंद्र में रहीं। विश्व बैंक की 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि बांग्लादेश ने लैंगिक समानता के कई पहलुओं में सफलता हासिल की है, जिसमें महिलाओं के लिए जीवन के हर क्षेत्र में अवसर पैदा हुए हैं। इससे प्रजनन दर में कमी आई है व स्कूलों में लैंगिक समानता में वृद्धि हुई है।

भारत को भी बड़े फैसले लेने की जरूरत

भारत सरकार को मांग में वृद्धि के लिए बड़े निर्णय लेने की आवश्यकता है। हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मांग में वृद्धि के लिए कई घोषणाएं की हैं। प्रारंभिक तौर पर भले ही ये छोटे कदम हों, पर अर्थव्यवस्था को ऐसे ही छोटे-छोटे कदमों से तीव्रता मिलती है। बांग्लादेश की कम जनसंख्या वृद्धि दर और तेज आíथक विकास को देखते हुए भारत और बांग्लादेश की प्रतिव्यक्ति आय के मामले में होड़ तेज होने की संभावना है। इन सबके बावजूद भारत और बांग्लादेश के अर्थव्यवस्था में तुलना उचित नहीं है। बांग्लादेश के विकास में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बांग्लादेश के साथ मुक्त व्यापार समझौता कर भारत ने उसे अपने बाजार में अत्यंत सुलभ पहुंच भी उपलब्ध कराई है।

भारतीय कपड़ा उद्योग को झटका

भारत में भी कृषि के बाद कपड़ा उद्योग रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। भारतीय कपड़ा उद्योग को वर्ष 2016 की नोटबंदी से झटका लगा। हालांकि इससे यह क्षेत्र उबर ही रहा था, तभी 2017 में इसे जीएसटी से दोबारा झटका लग गया। इसके साथ ही आधुनिकीकरण के अभाव के कारण भारतीय कपड़े वैश्विक बाजार में महंगे होते जा रहे हैं, जबकि ऑटोमेटेड मशीनों के कारण बांग्लादेश के कपड़े वैश्विक बाजार में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। गुजरात में सूती वस्त्र की 118 मिलें थीं, जिसमें अकेले अहमदाबाद में 67 मिलें सूती वस्त्र उत्पादन करती थीं। परंतु अब उनमें से कई फैक्टियां बंद होकर मॉल में बदल गई हैं। बांग्लादेश ने कपड़ों के निर्यात में वृद्धि के लिए इसमें ग्लोबल वेल्यू चेन (जीवीसी) एकीकरण पर बल दिया। इससे उसके कपड़ों की ग्लोबल ब्रांडिंग भी हुई। भारत के शीर्ष निर्यात क्षेत्रों में शामिल मोटर वाहन, कपड़ा तथा आभूषण का जीवीसी एकीकरण उच्चतम स्तर पर था, लेकिन पिछले चार वर्षो से इन तीनों क्षेत्रों में भारत का जीवीसी एकीकरण गिरा है। बांग्लादेश ने चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर का प्रयोग भी अवसर के रूप में किया। वर्ष 2018 से प्रारंभ हुए इस तनाव के बीच चीन ने कपड़ा उद्योग के स्थान पर भारी भरकम उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया। ऐसे में चीन से कपड़ा क्षेत्र में जो स्थान रिक्त हुए, उसे बांग्लादेश ने अविलंब पूर्ण कर दिया। कोरोना के कारण चीन से जब कंपनियां बाहर जाने का प्लान बना रही थीं, तब भी बांग्लादेश ने उन्हें आकर्षित करने का प्रयास किया तथा लगभग 25 कंपनियों ने चीन से बांग्लादेश का रुख किया। इसमें से 18 कंपनियां जापान की हैं।

आपदा को अवसर में बदल हासिल की अपेक्षित कामयाबी

बांग्लादेश ने विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को बुलंदी पर पहुंचाया है। वर्ष 1974 में भयावह अकाल का सामना करने वाला यह देश खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बन चुका है। जनसंख्या नियंत्रण के मामले में बांग्लादेश ने अच्छी सफलता हासिल की है। वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश की आबादी 4.2 करोड़ थी और पाकिस्तान की आबादी 3.37 करोड़ थी। लेकिन आज बांग्लादेश की आबादी 16.5 करोड़ है, जबकि पाकिस्तान की आबादी 20 करोड़ है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बुलंदी पर पहुंचाने में कपड़ा उद्योग का महत्वपूर्ण योगदान है। कपड़ा उद्योग में बांग्लादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। वहां कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फीसद की दर से बढ़ रहा है। वर्ष 2018 में जून तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का लक्ष्य है कि 2021 में जब बांग्लादेश अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाए तो यह आंकड़ा 50 अरब डॉलर तक पहुंच जाए। बांग्लादेश ने कपड़ा उद्योग में भी आपदा को अवसर में बदला। बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग के लिए वर्ष 2013 में राना प्लाजा किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। दरअसल कपड़ा फैक्ट्री वाली यह बहुमंजिला इमारत ढह गई और 1,100 से ज्यादा लोग मारे गए। इसके बाद वहां की सरकार ने नियम कानूनों में कई तरह के बदलाव किए और फैक्टियों को अपग्रेड किया गया। वर्ष 2013 के बाद से वहां ऑटोमेटेड मशीनों का व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा है। सरकार ने छोटी-छोटी इकाइयों का समूहीकरण कर उन्हें बड़ी इकाइयों में बदला। इस क्षेत्र में महिलाओं की भी मजबूत उपस्थिति है। कपड़ा उद्योग से बांग्लादेश में करीब 40 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। बांग्लादेश के कुल निर्यात में रेडीमेड कपड़ों का योगदान 80 फीसद है।

पूर्वी भारत में अपनाया जा सकता है यह मॉडल

क्या पूर्वी भारत में बांग्लादेश के आर्थिक विकास मॉडल से प्रेरणा ली जा सकती है? दरअसल पूर्वी भारत और बांग्लादेश में भौगोलिक तौर पर कई समानताएं नजर आती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम आदि बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र हैं। बाढ़ की यही स्थिति बांग्लादेश की भी है। इसके अतिरिक्त जिस तरह बांग्लादेश उच्च जनसंख्या घनत्व का क्षेत्र है, भारत के इस क्षेत्र में भी यही स्थिति है। बांग्लादेश ने नियोजित रूप से उच्च श्रम प्रधान कपड़ा क्षेत्र को प्रोत्साहित किया, जिससे न केवल आर्थिक विकास हुआ, बल्कि काफी संख्या में लोगों को रोजगार मिला। इससे वहां मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई और अर्थव्यवस्था की गति तीव्र हुई। पूर्वी भारत के लिए इसी तरह के नियोजन की आवश्यकता है। यह क्षेत्र कृषि प्रधान है, परंतु यहां कृषि से संबंधित औद्योगिक क्षेत्र नदारद हैं। पिछली सदी के सातवें दशक में हरित क्रांति से पश्चिमी भारत तो लाभान्वित हुआ, परंतु पूर्वी भारत उससे अछूता रह गया। बांग्लादेश की तरह भारत सरकार को इस क्षेत्र में श्रम प्रधान उद्योगों, विशेषकर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कपड़ा उद्योग इत्यादि पर बल देना चाहिए। भारत का यह क्षेत्र लंबे समय से विभिन्न सरकारों की उपेक्षा का शिकार रहा है। इस क्षेत्र में तीव्र आर्थिक विकास के बिना न्यू इंडिया सपने को पूरा नहीं किया जा सकता।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]