विचार: बदलाव की तेज लहर लाई एआइ, भारत के लिए अवसर और चुनौतियां
एआइ को लेकर आम धारणा है कि यह नौकरियां छीन लेगी पर सच्चाई यह है कि यह नई नौकरियां भी पैदा कर रही है। हालांकि जल्द ही दोहराए जाने वाले और नियमित काम एआइ से स्वतः ही हो जाएंगे लेकिन इसके चलते कई नए पेशे भी उभरे हैं-जैसे एआइ ट्रेनर मशीन लर्निंग डेवलपर डाटा एनोटेटर एआइ एथिसिस्ट प्राम्प्ट इंजीनियर आदि
जसप्रीत बिंद्रा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-एआइ हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। यह हमारे जीने, काम करने, सीखने और सोचने के तरीके को तेजी से बदल रही है। हमारे स्मार्टफोन में वायस असिस्टेंट से लेकर कंपनियों के निर्णयों तक, एआइ हर जगह मौजूद है। जैसे-जैसे भारत एआइ-संचालित अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, यह जरूरी हो गया है कि हम मशीनी कौशल यानी एआइ को समझें।
आज एआइ की शक्ति कृषि से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा से लेकर वित्त तक हर क्षेत्र में बदलाव ला रही है। भारत में किसान अब एआइ आधारित सेंसर और ड्रोन के जरिए फसल की निगरानी और सिंचाई का प्रबंधन कर रहे हैं, जिससे उत्पादन बढ़ा है और संसाधनों की बर्बादी घटी है। स्वास्थ्य क्षेत्र में एआइ अब कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों की पहचान पहले से कहीं अधिक तेज और सटीक तरीके से कर पा रही है। भारतीय स्टार्टअप दूरदराज इलाकों में एआइ की मदद से एक्स-रे और एमआरआइ की व्याख्या कर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ा रहे हैं। फाइनेंस, रिटेल, परिवहन, मैन्यूफैक्चरिंग- हर क्षेत्र में एआइ आधारित बदलाव की लहर चल रही है। नैसकाम के अनुसार यदि एआइ को रणनीतिक रूप से अपनाया गया तो वह 2025 तक भारत की जीडीपी में 500 अरब डालर का योगदान दे सकती है।
एआइ को लेकर आम धारणा है कि यह नौकरियां छीन लेगी, पर सच्चाई यह है कि यह नई नौकरियां भी पैदा कर रही है। हालांकि जल्द ही दोहराए जाने वाले और नियमित काम एआइ से स्वतः ही हो जाएंगे, लेकिन इसके चलते कई नए पेशे भी उभरे हैं-जैसे एआइ ट्रेनर, मशीन लर्निंग डेवलपर, डाटा एनोटेटर, एआइ एथिसिस्ट, प्राम्प्ट इंजीनियर आदि। भारत की युवा, तकनीकी रूप से दक्ष जनसंख्या इसे अपनाने के लिए उपयुक्त स्थिति में है।
सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘इंडिया एआइ’ प्रोग्राम और शिक्षा एवं उद्योग के साथ साझेदारी देश की एआइ क्षमता निर्माण में मदद कर रही है। देशभर में डाटा साइंस, मशीन लर्निंग और एआइ एथिक्स से संबंधित कोर्स तेजी से बढ़ रहे हैं। बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे शहर एआइ केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं, लेकिन हमें इसे केवल आशावाद का चश्मा पहन कर ही नहीं देखना चाहिए। एआइ तमाम मौजूदा नौकरियों को खत्म करेगी-विशेष रूप से बीपीओ, कस्टमर सर्विस, बेसिक कोडिंग और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में। मैकिंजे के अनुसार वर्ष 2030 तक दुनिया भर में 80 करोड़ नौकरियां स्वचालित हो सकती हैं।
भारत में जहां बड़ी संख्या में लोग अनौपचारिक और कम-कौशल वाली नौकरियों में हैं, उनके लिए यह गंभीर संकट बन सकता है। एआइ युग में जिन कौशलों की जरूरत है, वे अब भी बहुत सीमित लोगों के पास हैं। अगर तुरंत डिजिटल साक्षरता और व्यावसायिक एआइ प्रशिक्षण में निवेश नहीं किया गया, तो भारत पीछे छूट सकता है। सरकार, उद्योग और शिक्षा जगत को मिलकर शिक्षा प्रणाली को फिर से परिभाषित करना होगा। भविष्य उन्हीं का होगा जो सीखना, पुराना भूलना और नए सिरे से सीखना जानते हैं।
एआइ सिस्टम डाटा पर आधारित होते हैं और दुर्भाग्य से डाटा में समाज के मौजूदा भेदभाव और पूर्वाग्रह भी शामिल होते हैं। चेहरा पहचानने वाले सिस्टम अक्सर कुछ नस्लीय समूहों को गलत तरीके से पहचानते हैं। ऋण मंजूरी या नौकरी चयन में भेदभाव करने वाले एल्गोरिदम अब कल्पना नहीं, हकीकत हैं। भारत जैसे देश में जहां जाति, वर्ग और लिंग आधारित असमानताएं पहले से मौजूद हैं, वहां एआइ उचित रूप से नियंत्रित नहीं हुआ, तो वह इन्हें और बढ़ा सकता है। हवाई अड्डों और सार्वजनिक आयोजनों में चेहरे की पहचान तकनीक अपनाने से आमजन की निगरानी का खतरा बढ़ गया है। अगर एआइ का दुरुपयोग हुआ, तो यह नागरिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र को खतरे में डाल सकता है।
अमेरिका और चीन अरबों डालर एआइ अनुसंधान में झोंक रहे हैं। भारत को अपना अलग रास्ता चुनना होगा, जो नैतिक, समावेशी, सस्ता हो तथा जमीनी समस्याओं का हल करे। भारतीय स्टार्टअप और शोधकर्ताओं के पास ‘एआइ फार भारत’ बनाने का अवसर है, जो कम संसाधन वाले क्षेत्रों में काम कर सकें, भारतीय भाषाओं को समझें और हमारी सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करें। ओपन-सोर्स माडल, अनुवाद टूल्स, कृषि या टेलीमेडिसिन में एआइ भारत की ताकत बन सकती है। इसके लिए लगातार निवेश, स्पष्ट नीति और वैश्विक सहयोग की जरूरत होगी।
भारत ने डिजिटल व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा अधिनियम बनाया है और एआइ पर कुछ दिशानिर्देश जारी किए हैं, लेकिन हमें एक समग्र और सुसंगत एआइ नियामक ढांचा चाहिए। इसमें पारदर्शिता, मानव निगरानी, जवाबदेही और समुचित अपील प्रणाली शामिल होनी चाहिए। नियम इतने सख्त भी न हों कि नवाचार रुक जाए। हमें एक ऐसा संतुलन बनाना होगा, जो भारत को एआइ में अग्रणी बनाए और साथ ही नागरिकों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करे। भारत के पास एआइ अपनाकर आउटसोर्सिंग अर्थव्यवस्था से ज्ञान महाशक्ति बनने का मौका है। अगर हम इसे सही तरीके से अपनाएं तो डिजिटल लोकतंत्र, समावेशी विकास और सतत भविष्य की दिशा में एआइ भारत का साथी बन सकती है। भविष्य एआइ बनाम मानव का नहीं, बल्कि एआइ के साथ मानव का होगा।
(लेखक एआइ एंड बियांड के सह-संस्थापक हैं)
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