जागरण संपादकीय: श्वेत क्रांति के नए दौर की शुरुआत, दूध उत्पादन को बढ़ावा दे रही मोदी सरकार
इस समय देश के 84 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर चारे की खेती होती है जो कुल कृषि भूमि का चार प्रतिशत है। देश में पशु चारा की खेती के लिए जमीन का मिलना मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि इसे वाणिज्यिक फसलों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी समस्या लगातार सिमटते प्राकृतिक चारागाहों की है।
रमेश कुमार दुबे। बीते दिनों केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने दस हजार नई प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) की शुरुआत करते हुए कहा कि अगले पांच साल में दो लाख पैक्स बनाने का लक्ष्य समय से पहले हासिल हो जाएगा। पैक्स के जरिये कृषि उत्पादों की देसी-विदेशी बाजारों तक पहुंच बनेगी। उल्लेखनीय है कि वैश्विक दूध उत्पादन में भारत की 24 प्रतिशत हिस्सेदारी है, लेकिन विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है।
दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने पैक्स के जरिये श्वेत क्रांति 2.0 की शुरुआत की है। यह पहल आपरेशन फ्लड की सफलता पर आधारित है, जो 1970 में शुरू हुई थी और सहकारी समितियों के माध्यम से भारत को विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना दिया। श्वेत क्रांति 2.0 का वित्त पोषण राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के माध्यम से होगा। इस धन का उपयोग दूध संग्रहण केंद्र स्थापित करने, कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं बढ़ाने और प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि के लिए किया जाएगा।
वास्तव में अभी दूध उत्पादन से जुड़े 6.5 करोड़ ग्रामीण परिवार सहकारी क्षेत्र के दायरे से बाहर हैं। उचित मूल्य न मिलने के कारण इन ग्रामीण परिवारों को शोषण का सामना करना पड़ रहा है। डेरी कारोबार से जुड़े देश के आठ करोड़ ग्रामीण परिवारों में से मात्र 1.5 करोड़ परिवार ही सहकारी क्षेत्र से जुड़े हैं। मोदी सरकार ने इन 6.5 करोड़ ग्रामीण परिवारों को सहकारी क्षेत्र से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इससे डेरी किसानों की बाजार तक बेहतर पहुंच बनेगी। श्वेत क्रांति 2.0 को चार प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित किया गया है।
इसमें महिला किसानों को सशक्त बनाना, स्थानीय दूध उत्पादन को बढ़ाना, डेरी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और डेरी निर्यात को बढ़ावा देना शामिल हैं। श्वेत क्रांति 2.0 का प्राथमिक लक्ष्य अगले पांच वर्षों में देश भर में दूध संग्रह को 50 प्रतिशत तक बढ़ाना है। इसका उद्देश्य वित्त वर्ष 2028-29 तक दैनिक दूध खरीद को 660 लाख किलोग्राम से बढ़ाकर 1007 लाख किलोग्राम करना है।
डेरी ऐसा क्षेत्र है जिसमें अधिकतर महिलाएं कार्यरत हैं। डेरी क्षेत्र के कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है। अकेले गुजरात में डेरी क्षेत्र से जुड़ी महिलाएं सालाना 60,000 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही हैं। स्पष्ट है श्वेत क्रांति 2.0 महिलाओं का सशक्त बनाने का कारगर हथियार साबित होगी।
भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वित्त वर्ष 2022-23 में 23 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ। डेरी उद्योग भारत के कृषि उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा है। उत्पादित दूध का लगभग 63 प्रतिशत बाजार में पहुंचता है जिनमें से अधिकांश असंगठित क्षेत्र से आता है जबकि सहकारी समितियां संगठित क्षेत्र के उत्पादन को नियंत्रित करती हैं। उल्लेखनीय है कि सहकारी समितियां आपरेशन फ्लड की रीढ़ रही हैं। वर्तमान में देश में 1.7 लाख डेरी सहकारी समितियां हैं, जो 30 प्रतिशत गांवों को कवर करती हैं।
देश के कुल दूध उत्पादन का 10 प्रतिशत इन सहकारी समितियों के माध्यम से आता है, लेकिन इनका कवरेज असमान है। कवरेज बढ़ाने के लिए एनडीडीबी अगले पांच वर्षों में 56,000 नई सहकारी समितियां स्थापित करने और 46,000 मौजूदा समितियों में सुधार की योजना पर काम कर रहा है। एनडीडीबी का ध्यान उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों पर है, जहां डेयरी सहकारी समितियां कम विकसित हैं।
सरकार ने डेरी किसानों के लिए देश भर में रुपे किसान कार्ड और डेरी सहकारी समितियों में सूक्ष्म एटीएम की भी शुरुआत की है। श्वेत क्रांति की ही उपलब्धि है कि भारत लंबे से समय विश्व का अग्रणी दूध उत्पादक बना हुआ है। आज वैश्विक स्तर पर जहां दूध उत्पादन में सालाना दो प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है वहीं भारत में यह छह प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
वैश्विक दूध उत्पादन में भारत की 24 प्रतिशत हिस्सेदारी है, लेकिन विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है। आज भारत का डेरी एवं पशुपालन उद्योग देश की जीडीपी में पांच प्रतिशत योगदान कर रहा है। यदि कृषि क्षेत्र को देखें तो यह योगदान 24 प्रतिशत है, जिसका कुल मूल्य दस लाख करोड़ रुपये है। खेती के घाटे का सौदा बनने के दौर में यह किसानों की नियमित आय का एक प्रमुख स्रोत है।
श्वेत क्रांति 2.0 की राह में सबसे बड़ी चुनौती पशु चारे की है। चारा उत्पादन बढ़ाने सबंधी केंद्र के तमाम प्रयासों के बावजूद हरे चारे की 11 प्रतिशत और सूखे चारे की 33 प्रतिशत कमी है। भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी ने पशु चारे की कई उन्नत किस्में जारी की है, जो वर्ष भर गुणवत्तापूर्ण पशु चारे की आपूर्ति कर सकती हैं, लेकिन इन नई तकनीकी पहलों की किसानों में स्वीकार्यता बहुत कम है।
इस समय देश के 84 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर चारे की खेती होती है, जो कुल कृषि भूमि का चार प्रतिशत है। देश में पशु चारा की खेती के लिए जमीन का मिलना मुश्किल होता जा रहा है, क्योंकि इसे वाणिज्यिक फसलों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी समस्या लगातार सिमटते प्राकृतिक चारागाहों की है। पिछले एक दशक में देश के 31 प्रतिशत चरागाह खत्म हो गए। अब मात्र 1.2 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर चरागाह बचे हैं। श्वेत क्रांति 2.0 की सफलता के लिए इस समस्या को भी दूर करना होगा।
(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।