सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को धन्यवाद कि उसने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की ओर से सरकारी बंगला न खाली करने पर केंद्र सरकार को पत्र लिखा कि उनसे बंगला खाली कराया जाए। यह अभूतपूर्व है। दिल्ली अथवा देश के अन्य हिस्सों में सरकारी बंगलों में किसी को भी तय अवधि से ज्यादा रहने की सुविधा नहीं दी जानी चाहिए। ऐसा कुछ विशेष परिस्थितियों में ही हो सकता है और अतीत में होता भी रहा है।

यह ठीक है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने आठ माह बाद भी सरकारी बंगला खाली न कर पाने के कुछ कारण गिनाए हैं और इन कारणों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन इतना तो है ही कि उन्हें नैतिकता के उच्च मानदंडों का पालन करना चाहिए। इसलिए करना चाहिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर वे अपने फैसलों और फैसलों से इतर संबोधनों के जरिये नैतिक आचरण पर बल देते रहे हैं।

सरकारी बंगला विवाद से उनकी प्रतिष्ठा को आघात पहुंचेगा। यह सही है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी बंगले में रहने के लिए तय किराया दे रहे हैं, लेकिन यह किराया कुल मिलाकर मामूली ही होता है और जिस इलाके में वे रह रहे हैं वह तो अति विशिष्ट क्षेत्र है।

यह पहली बार नहीं है जब सरकारी बंगले को लेकर कोई विवाद उठा हो। इस तरह के विवाद पहले भी उठते रहे हैं। से सांसदों, पूर्व मंत्रियों की गिनती करना कठिन है जिन्होंने सांसद अथवा मंत्री न रहने के बाद सरकारी बंगला छोड़ने में आनाकानी की। कुछ नेताओं से तो जबरन बंगला खाली कराना पड़ा।

यह भी एक तथ्य है कि कुछ नेता एवं पूर्व अधिकारी अथवा कथित विशिष्ट व्यक्ति सरकार की कृपा से लंबे समय तक सरकारी बंगलों में काबिज रहे। कुछ लोगों की ओर से यह भी कोशिश की गई कि उनके नेता की स्मृति संजोने के नाम पर उन्हें अथवा उनके स्वजनों को सरकारी बंगला सदैव के लिए आवंटित कर दिया जाए।

दुर्भाग्य से ऐसे कुछ नेता अपनी कोशिश में कामयाब भी हो गए। ऐसा इसीलिए होता रहा, क्योंकि सरकारी बंगलों में किसे रहना चाहिए और किसे नहीं, इसके लिए जो नियम-कानून बने हुए हैं वे कुल मिलाकर कागजी ही अधिक हैं। इन नियमों पर सही तरीके से पालन मुश्किल से ही होता है। दिल्ली में केंद्र सरकार के बंगलों में अपात्र लोगों के रहने के किस्से तो चर्चा में आ जाते हैं, लेकिन राज्यों के ऐसे किस्से दबे-छिपे ही अधिक रहते हैं।

सच तो यह है कि कई राज्यों की राजधानियों में न जाने कितने अपात्र लोग सरकारी बंगलों में रह रहे हैं। सरकारी बंगले राष्ट्र की संपत्ति हैं। किसी भी सरकार को इन्हें किसी को मनमाने तरीके से आवंटित करने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों में सरकारों को आदेश-निर्देश दिए हैं, लेकिन उन पर पालन शायद ही हो रहा होगा।