विपक्ष का ध्यानभंग, पीएम का ध्यान लगाना आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कैसे?
पीएम नरेंद्र मोदी अपनी आस्था को प्रकट करते ही रहते हैं और यह संदेश देने में संकोच नहीं करते कि प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ वह एक आस्थावान हिंदू भी हैं। वह पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के लिए जाने जाते हैं और यदि विपक्षी नेता इससे परिचित नहीं तो यह उनका ही दोष है। विपक्ष को इससे भी अवगत होना चाहिए।
लंबे प्रचार अभियान के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तमिलनाडु में कन्याकुमारी के स्वामी विवेकानंद राक मेमोरियल के ध्यान मंडपम में साधना करने का जो निर्णय लिया, उस पर विपक्ष की आपत्ति समझ से परे है। किसी विपक्षी नेता को यह लग रहा है कि प्रधानमंत्री के ध्यान लगाने के फैसले से मतदान के अंतिम चरण में भाजपा के पक्ष में कुछ प्रभाव पड़ सकता है तो किसी ने यह सुझाव दिया कि उन्हें ध्यान करने के बजाय आराम करना चाहिए, क्योंकि 4 जून को उनकी सत्ता जाने वाली है।
क्या प्रधानमंत्री ने किसी विपक्षी नेता से यह सुझाव मांगा था कि चुनाव प्रचार के बाद उन्हें क्या करना चाहिए अथवा कहां पर ध्यान लगाना चाहिए? कुछ विपक्षी नेता इस नतीजे पर भी पहुंच गए कि प्रधानमंत्री का ध्यान लगाना आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। किसी ने नहीं बताया कि आखिर चुनाव प्रचार के उपरांत किसी नेता की ओर से ध्यान लगाना आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कैसे है? ऐसा लगता है कि विपक्षी नेताओं को प्रधानमंत्री की साधना पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करनी ही थी और वह उन्होंने खुलकर कर दी। ऐसा करके उन्होंने एक तरह से प्रधानमंत्री का काम आसान ही कर दिया, क्योंकि उनकी निरर्थक आपत्तियों के चलते देश भर में यह चर्चा होने लगी कि पीएम के ध्यान लगाने से विपक्ष का ध्यानभंग हो गया है।
यह पहली बार नहीं है, जब प्रधानमंत्री ने किसी मंदिर में जाकर साधना की हो अथवा किसी अन्य पावन स्थल पर ध्यानमग्न हुए हों। वह अपनी आस्था को प्रकट करते ही रहते हैं और यह संदेश देने में संकोच नहीं करते कि प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ वह एक आस्थावान हिंदू भी हैं। वह पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के लिए जाने जाते हैं और यदि विपक्षी नेता इससे परिचित नहीं तो यह उनका ही दोष है। आखिर विपक्षी नेता यह कैसे भूल गए कि पिछले आम चुनाव के बाद भी प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड की एक गुफा में लगभग 18 घंटे ध्यान किया था। इस बार वह स्वामी विवेकानंद के नाम वाले स्मारक में करीब 45 घंटे ध्यानरत रहेंगे। यह कोई छिपी बात नहीं कि वह स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते रहे हैं।
विपक्ष को इससे भी अवगत होना चाहिए कि प्रधानमंत्री अपनी जीवनशैली के माध्यम से देश में आध्यात्मिक चेतना जगाने का भी प्रयास करते रहते हैं। क्या यह कोई अनुचित बात है? प्रधानमंत्री की ध्यान साधना पर वही आपत्ति जाता सकता है, जिसे ध्यान की महत्ता का पता न हो। ध्यान केवल मानसिक शांति का ही उपाय नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक रूप से भी एक प्रभावशाली प्रक्रिया है। ध्यान व्यक्ति को जीवन की चुनौतियों और संघर्षों के बीच स्थिर बनाता है। अच्छा तो यह होगा कि भारतीय राजनीति में आध्यात्मिक चेतना का कुछ समावेश हो, ताकि वह कलह से मुक्त हो सके।
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