भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात पर देश ही नहीं, दुनिया की भी निगाहें थीं। एक तो इसलिए कि मोदी उन चुनिंदा शासनाध्यक्षों में से एक हैं, जिनसे डोनाल्ड ट्रंप ने प्रारंभिक दौर में ही मुलाकात करना बेहतर समझा और दूसरे इसलिए कि भारत अब एक बड़ी ताकत बन चुका है और वैश्विक मामलों में उसका रुख-रवैया मायने रखता है।

इस मुलाकात को लेकर जिज्ञासा का एक कारण यह भी था कि बाइडन प्रशासन के समय अमेरिका और भारत के संबंधों में एक खिंचाव आ गया था। एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा था कि बाइडन प्रशासन भारतीय हितों की वैसी चिंता नहीं कर रहा है, जैसी करनी चाहिए।

मोदी और ट्रंप की मुलाकात ने यह तो रेखांकित किया कि दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी लौट आई है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि अमेरिका भारत की समस्त चिंताओं का समाधान करने जा रहा है। इसका संकेत इससे मिलता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के मामले में भी पारस्परिक टैरिफ की नीति पर चलने की घोषणा कर दी।

यदि ट्रंप प्रशासन इस घोषणा पर वास्तव में अमल करता है तो जापान, यूरोपीय संघ के देशों के साथ भारत सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में हो सकता है। पारस्परिक टैरिफ से भारतीय उत्पादों के लिए अमेरिकी बाजार में स्थान बनाना कठिन हो सकता है। इसके नतीजे में अमेरिका में भारतीय निर्यात घट सकता है। इससे भारत के आर्थिक हितों को नुकसान होगा, क्योंकि जीडीपी में निर्यात की अहम भूमिका है और अमेरिका हमारा प्रमुख व्यापारिक सहयोगी देश है।

यह ठीक है कि ट्रंप ने बांग्लादेश के मामले में भारत के मन मुताबिक बात कही, सीमा पार यानी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से मिलकर लड़ने का वादा किया और मुंबई हमले की साजिश में शामिल रहे पाकिस्तान मूल के कनाडाई आतंकी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की घोषणा की, लेकिन अमेरिका में खालिस्तान समर्थकों की भारत विरोधी गतिविधियों पर कुछ नहीं कहा।

भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान ऊर्जा, तकनीक के साथ अन्य कई क्षेत्रों में जो अनेक समझौते हुए, उनसे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के संबंधों में और प्रगाढ़ता आने जा रही है।

इसका पता इससे भी चलता है कि विकसित भारत के लक्ष्य में सहायक बनने वाले विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका से सहयोग की राह प्रशस्त होती दिख रही है और अब भारत अमेरिका से कच्चा तेल और गैस खरीदने के साथ आधुनिक रक्षा उपकरण एवं तकनीक हासिल करने में भी समर्थ होगा, लेकिन क्या लड़ाकू विमान एफ-35 की खरीद हमारी प्राथमिकता सूची में शामिल है?

इसमें संदेह नहीं कि भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात ने मैत्री संबंधों को मजबूत करने का माहौल बनाया, लेकिन यह समय बताएगा कि ट्रंप भारत की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हैं या नहीं?