अपने बेतुके बयानों और फैसलों से अपनी फजीहत करा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने नई धमकी दी है कि वे 24 घंटे के भीतर भारत पर टैरिफ और बढ़ाएंगे। इसका मतलब है कि भारत से अमेरिका जाने वाली वस्तुओं पर अमेरिकी आयात शुल्क 25 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा।

उनके जो मन में आए, वह करने को स्वतंत्र हैं, लेकिन यदि वे यह समझ रहे हैं कि भारत उनकी दादागीरी के आगे झुक जाएगा तो अब इसकी संभावना न्यून है, क्योंकि उन्हें जवाब देना शुरू कर दिया गया है। भारत कूटनीतिक शिष्टाचार के चलते उन्हें उनकी जैसी भाषा में तो जवाब नहीं दे सकता और देना भी नहीं चाहिए, लेकिन उसे उनकी धमकियों के आगे झुकना भी नहीं है। वे अब हद पार कर अमेरिकी राष्ट्रपति पद की मर्यादा से खेल रहे हैं।

उनका अहंकार सिर चढ़कर बोल रहा है। यह भी दिख रहा है कि वे कुंठा से ग्रस्त होकर विवेक खो रहे हैं। भारत को एक कुंठित-अहंकारी अमेरिकी राष्ट्रपति के अहं को तुष्ट करने के बजाय उसका सामना साहस और संयम से करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। भारत को ट्रंप की ओर से पेश की जा रही चुनौतियों का सामना करने के लिए फौरी एवं दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी।

इसमें सफलता तब मिलेगी, जब हमारे कारोबारी भी राष्ट्रधर्म समझेंगे। उन्हें अपने उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादकता ठीक करनी होगी। आयातकों को खास तौर पर उन अमेरिकी अथवा चीनी वस्तुएं खरीदने का लोभ छोड़ना होगा, जो भारत में बन सकती हैं। इससे ही स्वदेशी का मंत्र कारगर साबित हो सकता है।

ट्रंप यह तय करने वाले कोई नहीं कि भारत रूस अथवा अन्य किसी देश से क्या खरीदे? अमेरिका की तरह भारत भी एक संप्रभु राष्ट्र है। यदि भारत रूस से तेल खरीद रहा है तो अमेरिका से भी ले रहा है। यदि भारत रूस से तेल न ले तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसके दाम चढ़ जाएंगे और इसके दुष्परिणाम विश्व के अनेक देशों के साथ अमेरिका को भी भोगने पड़ेंगे।

क्या ट्रंप यह बताएंगे कि अमेरिका रूस से यूरेनियम और उर्वरक क्यों खरीद रहा है? इसी तरह यूरोपीय देश उससे गैस, खनिज आदि क्यों खरीद रहे हैं? ट्रंप यह समझने को तैयार नहीं कि भारत के टैरिफ किंग होने के उनके दावे की पोल खुद अनेक अमेरिकी अर्थशास्त्री खोल रहे हैं। विश्व बैंक का भी यह आकलन है कि अमेरिका के मुकाबले भारत की टैरिफ दरें मामूली ही अधिक हैं।

आखिर भारत अमेरिका से वह सब क्यों खरीदे, जो उसे चाहिए ही नहीं? ट्रंप यह समझें तो बेहतर कि भारत तब अमेरिका से नहीं दबा था, जब वह आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं था और उसे परमाणु परीक्षण के चलते प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था। भारत को ट्रंप का सामना करते हुए यह भी देखना होगा कि उसे रूस या चीन पर निर्भर नहीं होना है।